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________________ अठत्तर प ४४५ निन्द्य है सो यह न समझा, कुबुद्धि निदानकर दुखित भया मरण कर नंदी के इन्द्रमुखी नामा स्त्री are गर्भ में आया सो गर्भमें श्रावते ही बडे बडे राजानिके स्थानकनिविषै कोटका निपात दरवाजनिका निपात इत्यादि नानाप्रकार के चिह्न होते भये, तब बड़े बड़े राजा याको नानाप्रकार के निमित कर महानर जान जन्महीसे अति चादर संयुक्त दूत भेज भेज कर द्रव्य पठाय सेवते भये । यह बडा भया याका नाम रतिवर्थन सो सब राजा याको सेवें, कोशांबी नगरीका राजा इन्दु भी सेवा करै । नित्य आय प्रणाम करें। या भांति यह रतिवर्धन महाविभूति कर संयुक्त या बडा भाई प्रथम मर कर स्वर्ग लोक गया, सो छोटे भाईके जीवको संबोधवेके अर्थ चुल्लकका स्वरूप धर आया सो यह मदोन्मत्त राजा मदकर अन्धा होय रहा सो क्षुल्लकको दुष्ट लोकनिकर द्वार में पैठने न दिया तब देवने चुल्लकका रूप दूरकर रतिवर्धनका रूप किया तत्काल ताका नगर उजाड उद्यान कर दीया पर कहता भया अब तेरी कहा वार्ता १ तब वह पायन पड स्तुति करता मया तब ताको सकल वृत्तांत कहा- जो आपां दोऊ भाई थे। मैं बडा, तू छोटा । सो चुल्लकके व्रत धारे सो मैंने नंदीसेठ को देख निदान किया सो मरकर नंदी के घर उपजा, राजविभूति पाई और मैं स्वर्ग में देव मया । यह सब वार्ता सुन रतिवर्धनको सम्यक्त्व उपजा, मुनिः मया अर नंदीको आदि दे अनेक राजा रतिवर्धन के संग मुनि भए । रतिवर्धन तप कर जहां माईका जीव देव हुना वहां ही देव भया बहुरि दोऊ माई स्वर्गत चयकर राजकुमार भये । एकका नाम उर्व दूजे का नाम उर्वस राजा नरेन्द्र राणी विजयाके पुत्र बहुरि जिनधर्मका आराधनकर स्वर्ग में देव भए वहसि चयकर तुम दोऊ भाई रावण के राखी मंदोदरी ताके इन्द्रजीत मेघनाद पुत्र भये पर नंदी सेठके इन्दुमुखी रतिवर्धनकी माता सो जन्मांतर में मंदोदरी भई । पूर्व जन्ममें स्नेह हुता सो अब हू माताका पुत्र से अतिस्नेह भया । कैसी है मंदोदरी ? जिनधर्म में आसक्त है चिच जाका । यह अपने पूर्व भव सुन दोऊ भाई संसारकी मायासे विरक्त भए ! उपजा है महा वैराग्य जिनको जैनेश्वरी दीक्षा आदरी अर कुम्भकर्ण मारीच राजा मय पर भी बडे बडे राजा संसारतें महा विरक्त होय मुनि भए, तजे हैं विषय कषाय जिन्होंने, विद्याथरोंके राजकी विभूति तृणवत् तजी, महा योगीश्वर हो अनेक ऋद्धिके धारक भए, पृथिवी में बिहार करते भव्यनिको प्रतिबोधते भए, श्रीमुनिसुव्रतनाथ के मुक्ति गए पीछे तिनके तीर्थ में यह बडे बडे महा पुरुष भए, परम तप के धारक अनेक ऋद्धि संयुक्त | वह भव्य जीवनिको बारम्वार बंदिवे योग्य हैं अर मन्दोदरी पति र पुत्रनिके विरह कर अति व्याकुल भई महा शोककर मूर्छाको प्राप्त भई बहुरि सचेत होय कुरवीमृगीकी न्याई विलाप करती भई । दुख रूप समुद्र-: मग्न होय, हाय पुत्र इन्द्रजीत, मेघनाद ! यह कहा उद्यम किया, मैं तिहारी माता अति दीन ताहि क्यों तजी ? यह तुमको कहा योग्य जो दुखकर तप्तायमान जो माता ताका समाधान किए बगेर उठ गए। हाय पुत्र हो ! तुम कैसे सुनिव्रत धरोगे। तुम देवनि सारिखे महा भोगी शरीरको लडावनहारे भूमिपर कैसे फू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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