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पहा राण दिशा व्याप्त होय गई, राम लक्षण यह वृत्तांत जान हर्षको प्राप्त भये, समस्त वानरवंशी अर राक्षसवंशी विद्याधर इंद्रजीत कुम्भकर्ण मेघनाद आदि सर्व राम लक्ष्मणके संग केवलीके दर्शनके लिये जाययको उद्यनी भये । श्रीराम लक्ष्मण हाथी चढे अर कई एक राजा रथपर चढे कई एक तुरंगनिपर चढे छत्र चमर ध्वजाकर शोभायमान महा भक्तिका संयुक्त देवनिसारिखे महा सुगन्ध हैं शरीर जिनके अति उदार अपने बाहननितें उतर महा भक्तिकर प्रणाम करते स्तोत्र पाठ पढते केवलीके निकट आये। अष्टांग दण्डात् कर भूमिमें तिष्ठे, धर्म श्रवणकी है अभिलाषा जिनके, केवली के मुखत धर्म श्रवण करते भये । दिव्यध्वनिमें यह व्याख्यान भया जो ये प्राणी अष्ट कर्मसे बंधे महादुखके चक्र पर चढे चतुर्गतिमें भ्रमण कर हैं। प्रात रौद्र ध्यानकर युक्त नामा प्रकारके शुभाशुभ कमनि को करे हैं, महा मोहिनी कमने ये जी बुद्धि हिन किये जाते सदा हिंसा करे हैं असत्य वचन कहे हैं, पराये मर्म भेदक वचन क हैं, परनिंदा कर हैं पर द्रव्य हरे हैं, परस्त्रीका सेवन करे हैं, प्रमाणरहित परिग्रहको अंगीकार करे हैं, बढा है महालोभ जिनके । वे कै। हैं महा निन्द्यकर्म कर शरीर तज अधोलोमें जाय हैं तहां दुःखके कारण सप्त नरक तिनके नाम रत्नप्रभा, शर्करा, बालुका, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, महातमप्रभा, सदा महा दुःखके कारण सप्त नरक अंधकारकर युक्त दुगंध सूधा न जाय देखा न जाय स्पर्मा न जाय महा भयंकर महाविकराल हे भूमि जिनकी सहा रुदन दुर्वचन त्रास नानाप्रकार छेदन भेदन तिनकर सदा पीडित नारकी खोटे कर्मनितें पापबन्ध कर बहुत काल सागरों पयंत महा तीव्र दुःख भोगवे हैं ऐसा जान पंडित विवेकी पाप बंधसे रहित होष थमम चित्त धरो कैसे हैं विवेकी ? व्रत नियमके धरणारे नि:कपटस्वभाव अनेक गुण निकर मंडि वे नानाप्रकारके तपार स्वर्ग लोकको प्राप्त होय हैं। बहुरि मनुष्य देह पाय मोक्ष प्राप्त होय हैं अर जे धर्म । अभिलाषासे रहित हैं ते कल्याणके मार्ग रहित बारम्ब र जन्म मरण करने महादुखी संसार में भ्रण करे हैं । जे भव्यजीव सर्वज्ञ वीतरागक वचनकर धर्ममें तिष्ठे हैं ते मोक्षमार्गी शील सत्य शौच सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रकार जब लग अष्ट कर्मका नाश न करें तवग इन्द्र अहमिंद्र पदके उत्तम सुख भोगवे हैं । नानाप्रकार के अद्भुत सुख भाग हा से चय कर महाराजाधिराज होय बहुरि ज्ञान पाय जिनमुद्राथर महा तपकर केवल ज्ञान उपाय अष्ट कर्म रहित द्धि होय हैं, अनन्त अविनाशी आत्मिकस्वभावमयी परम आनन्द भोगवे हैं। यह व्याख्य न सुन इंद्रजीत मेघनाद अपने पूर्वभव पूछते भये। सो कंवली कहे हैं-एक कौशांबी नामा गरी तहां दो भाई दलिद्री एकका नाम प्रथम, दूजेका नाम पश्चिम । एकनि वहार करते भवदत्तनामा मुनि वहां पाए सो ये दोनों भाई धर्म श्रवण कर ग्यारमी प्रतिमाके धारक क्षुल्लक श्रावक भए सो मुनिके दर्शनको कौशांबी नगरीका इंद्रनामा राजा आया सो मुनि महाज्ञानी राजाको देख जान्या याके मिथ्यादर्शन दुनिवार है अर ताही समय नंदीनामा श्रेष्ठी महाजिनभक्त मुनिके दर्शनको आया ताका राजाने आदर किया ताको देख प्रथम अर पश्चिम दोऊ भाईनिमें से छोटे भाई पश्चिमन निदान किया जो मैं या धर्मके प्रसादकर नंदी सेठके पुत्र होऊ सो बडे भाईने भर गुरुने बहुत सम्बोधा जो जिनशासनमें निदान महा
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