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अठत्तरमा पर्व द्रवीभूत भया है हृदय जिनका, सकल लोकनिके नेत्रनिसे जलके प्रवाह बहे सो पृथिवी जलरूप होय गई अर तत्वोंकी गौणता दृष्टि पड़ी मानों नेत्रोंके जलके भयकर आताप घुसकर लोकोंके हृदय मे पैठा सर्वलोकोंके मुखसे यह शब्द निकसे-धिक्कार धिक्कार अहो बडा कष्ट भया हाय हाय यह क्या अद्भुत भया या मांति लोक विलाप करै हैं आंसू डाएँ हैं, कैयक भूमिमें शय्या करते भये मौन धार मुख नीचा करते भये निश्चल है शरीर जिनका मानों काष्ठके हैं कैयक शस्त्रोंको तोड डारते भये कैयकोंने आभूषण डार दिये अर स्त्रीके मुखकमलसे दृष्टि संकोचा, कैयक अति दीर्घ उष्ण विस्वास नाखे हैं सो कलुष होय गये अधर जिनके मानों दुःखके अंकुरे हैं अर कैयक संसारके भोगनिसे विरक्त होय मनमें जिनदीक्षाका उद्यम करते भये।
___अथानन्तर पिछले पहिर महासंघ सहित अनन्तवीर्य नामा मुनि लंकाके कुमुवायुध नामा वनमें छप्पन हजार मुनि सहित पाए जैसे तारानि कर मण्डित चन्द्रमा सोहै तैसे मुनिनिहर मण्डित सोहते भए, जो ये मुनि रावणके जीवते श्रावते तो राम्ण मारा न जाना लक्ष्मणके पर रावणके विशेष प्रीति होती जहां ऋद्धिधारी मुनि मिष्ठे उहा सर्व मंगल होवें अर कंवली विरजे वहां चारों ही दशाओंमें दोयसौ योजन पृथिवी स्वर्ग तुल्य निरुपद्रव होय अर जीवनिक वैर भाव मिट जावै जैसे आकाशमें अमूल अवकाशप्रदानता निलेपता अर पवनमें मुार्यता, निसंगता, अग्निमें उष्णता, जल में निर्मला, पृथिवी में सहनशीलता तैस स्वतः स्वभाव महा मुनिके लोकको आनन्ददायकता होय है अनेक अद्भुत गुणोंके धारक महा मुनि तिन सहित स्वामी विराजे, गौतम स्वामी कहे हैं-हे श्रेणिक ! तिनके गुण कौन वर्णन कर सके जैसे स्वर्ण का कुम्भ अमृतका भरा अति सोहै तैये मह'मुलि अनेक ऋद्धिके भरे सोहते भर निर्जत स्थानक वहां एक शिला ता ऊपर शुक्ल ध्यान धर तिष्ठे सो ताही रात्रिमें केवलज्ञान उपना जिनके परम अद्भुत गुण वर्णन किये पापनिका नाश होय तब भग्नवासी असुरकुमार, नागकुमार गरुडकुमार, विद्युतकुमार, अग्निकुमार, पवनकुमार, मेघाम र, दिक्कुमार, दीपकु र, उदधिकमार, ये दशप्रकार तथा अष्ट प्रकार व्यंतर किनर किंपुरुष महोरग गर्व यक्ष राक्षस भूत पिसाच, तथा पंच प्रकार ज्योतिषी सूर्य चंद्र ग्रह तारा नक्षत्र, सोलह स्वर्गके सर्वही स्वर्गवासी ये चतुरनिकायके देव सौधर्म इन्द्रादिक सहित थातुकोखंडद्वीपकेविष श्रीतीर्थकर देवका जन्म भया हुता सो समेरु पर्वतमें क्षीर सागरके जलकर स्नान करार जन्म कल्यानकका उत्सब कर प्रभुको माता पिताको सोंप तहां उत्सव सहित तांडवनृत्य कर प्रभुती बारम्बार स्तुति करते भये । कैसे है प्रभु ? बाल अवस्था को धरे हैं परन्तु बालअवस्थाकी अज्ञान चेष्टाने रहित हैं। तहां जन्म कल्याणकका समय साधकर सब देव लंकामें अनन्तवीर्य केवलीके दर्शनको आए । कैयक विमान चढ़े पाए, कैयक राजहंसनिपर चढे आये अर कई एक अश्व सिंह व्याघ्रादिक अनेक वाहननिपर चढे आये, ढोल मृदंग नगारे वीण बांसुरी झांझ मंजीरे शंख इत्यादि नाना प्रकारके वादित्र बजावते मनोहर गान करते आकाश मंडलको आच्छादते केवली निकट महा भक्तिरूप अर्ध रात्रि के समय आये, तिनके विमाननिकी ज्योति कर प्रकाश होय गया अर वादित्रनिके शब्दकर दशों
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