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पद्म पुराण
योधा परस्पर बात करते भये जो कदाचित् इन्द्रजीत मेघनाद कुम्भकरण रावणकी चिता जरती देख क्रोध करें तो ऋपिवंशिनिमें इनके सन्मुख लडने को कोई ममर्थ नाहीं, जो कपिवंशी जहां बैठा था तहांसे उठ न सका अर भामण्डलने अपने सब योधानिकू कहा जो इन्द्रजीत मेघनादको यहां तक बंधेहीति यत्न से लाइयो, अबार विभीषणका भी विश्वास नाहीं है जो कदाचित् भाई भतीजे निको निर्धन देख भाईका बैर चितारे सो याको विकार उपज आवे, भाईके दुखकर बहुत तप्तायमान हैं। यह विचार भामण्डलादिक तिनको अति यत्नकर राम लक्ष्मणके निकट लाए सो वे महाविरक्त राग द्वेपरहित जिनके मुनि डोपवेके भाव महा सौम्य दृष्टिकर भूमि निरखते द्यावें, शुभ हैं श्रानन जिनके, वे महा धीर यह बिचारे हैं कि या असार संसार सागर में कोई सारताका लवलेश नाहीं, एक धर्मही सत्र जीवनका बांधव है सोई सार है । ये मनमें विचारे हैं जो आज से छूटें तो दिगम्बर होय पाणिपात्र आहार करें । यह प्रतिज्ञा धरते रामके समीप आए । इन्द्रजीत कुम्भकरर्णादिक विभीषणकी ओर आय तिष्ठे यथायोग्य परस्पर संभाषण भया बहुरि कुम्भकर्णादिक श्रीराम लक्ष्मण कहते भए - अहो तिहारा परम धैर्य परम गंभीरता अद्भुत चेष्टा देवनिहू कर न जीता जाय ऐसा राचसनिका इन्द्र रावण मृत्युकू प्राप्त किया, पंडितनिके अति श्रेष्ठ गुणनिका धारक शत्रु हू प्रशंना योग्य है। तत्र श्रीराम लक्ष्मण इनको बहुत साता उपजाय अति मनोहर बचन कहते भये । तुम पहिले महा भोगरूप जैसे तिष्ठे तैसे तिष्ठो । तत्र वह मा विरक्त कहते भर अब इन भोगनिसे हमारे कछु प्रयोजन नाहीं । यह विषसमान महा मोहके कारण महा भयंकर महा नरक निगोदादि दुःखदाई जिनकर कबहूं जीवके साता नाहीं । विचक्षण हैं ते भोगको कबहूँ न बांछे । राम लक्ष्मणने घना ही कहा तथापि तिनका चित्त भोगामक्त न भया । जैसे रात्रि में दृष्टि अन्यकार रूप होय पर सूर्य के प्रकाश कर वही दृष्टि प्रकाशरूप होय जाय तैसे ही कुम्भकर्णादिककी दृष्टि पहिले भांगासक्त हुती सो ज्ञानके प्रकाश कर भोगनित विरक्त भई । श्रीरामने तिनके बंधन छुडाये पर इन सबनि सहित पद्म सरोवर में स्नान किया । कैसा है सरोवर १ सुगंध है जल जाका, ता सरोवर में स्नान कर कपि श्रर राक्षस सब अपने अपने स्थानक गये ।
अथानन्तर कैयक सरोवरके तीर बैठे विस्मयकर व्याप्त हैं चित्त जिनका शूरवीरों की कथा करते भये, कैयक क्र ूर कर्मको उलाहना देते भये, कैयक हथियार डारते भये, कैयक रावणके गुणोंकर पूर्ण है चित्त जिनका सो पुकारकर रुदन करते भये, कैयक कर्मनकी विचित्र गतिका वर्णन करते भए श्रर कैवक संसार वनको निन्दते भये । कैसा है संसार वन ? जाकी निकसना अति कठिन है कैक भोगने अरुचिको प्राप्त भये राज्यलक्ष्मीको महा चंचल निरर्थक जानते भये र कैक उत्तम बुद्धि कार्यकी निंदा करते भये, कैयक रावणकी गर्व की भरी कथा करते भये, श्रीरामके गुण गावते भये, कैयक लक्ष्मणकी शक्तिका गुण वर्णन करते भये, कैपक सुकृतके फलकी प्रशंसा करते भये, निर्मल हैं चित्त जिनका, घर घर मृतकों की क्रिया होती भई, बाल वृद्ध सबके मुख यही कथा | लंकामें सर्वलोक रावण के शोककर अश्रुपात डारते चातुर्मास्य करते भये शोककर
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