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अठत्तरण पणे प्रीनिकर कीटके हनिवे को गया सो कीट मरनेके भयकर विष्टामें पैठिगया । तब प्रीतिकर मुनिपै जाय पूछना भया-हे प्रभो ! मेरे पिताने कही थी जो मैं मलमें कीट होऊगा सो तू हनियो अब वह कीट मरवेसे डरै अर भागे है तब मुनिने की--तू विषाद मत कर यह जीव जिस गतिमें जार है वहां ही रम रहे है इसलिए तू आत्मकल्याण कर, जाकर पापोंसे छूटे अर यह जीव सवही अाने अपने कम का फल भोगवे हैं कोई काहला नाहीं यह संसारका स्वरूप महा दुखका कारण जान प्रीति कर मुनि भया, मर्व बांया नजी, तात हे विभीषण ! यह नानाप्रकार जगतकी अवस्था तुम कहा न जानो हो, बिहारा भाई महा शूरवीर देवयोगसे नारायण ने हता ? संग्राममें अहत महा प्रधान पुरुष ताका मोव क्या ? तुम अपना चित्त कल्याणमें लगावो। यह शोक दुख का कारण ताको तजो यह वचनकर प्रीति करकी कथा भामण्डलके मुखसे विभीषणने सुनी, कैसी है प्रीतिकर मुनिकी कथा प्रतिबोध देवे में प्रवीण अर नाना स्वभाव कर संयुक्त अर उत्तम पुरुषों कर कहिवे योग्य सो सर्व विद्या परनिने प्रशंसा करी। सुनकर विभीषण रूप सूर्य शोकरूप मेष पटलसे रहित भया लोकोत्तर आचारका जाननेवाला ॥ इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनिकाविषै
विभीषणका शोक निवारण वणनेव ला सततरवां पर्व पूर्ण भया ॥ ७ ॥
अथानन्तर श्रीरामचन्द्र भामण्डल सुग्रीवादि सबनिस्कहतै भये, जो पंडितों के बैर बैरी के मरण पर्यन्त ही है। अब लंकेश्वर परलोकको प्राप्त भए सो यह महानर हुते, इनका उत्तम शरीर अग्नि संस्कार करिए तब सबनि प्रमाण करी अर विभीषण महित राम लक्ष्मण जहां मंदोदरी श्रादि अठारह हजार राणीनि सहित जैसे कुरुचि करै तैने विलाप करती हुती सो वाहनसे उतर समस्त विद्याधरनि महित दोऊ वीर तहां गये सो वे राम लक्ष्मण को देख अति विलाप करती भई, तोड डारे हैं सर्व श्राभूषण जिन्होंने अर धूलकर धूमरा है अंग जिनका तब श्रीराम महादयावन्त नानाप्रकारके शुभ वचननिकर सर्व राणीनिकों दिलासा करी धीर्य बंधाया अर
आप सब विद्याधरनिको लेकर रावणके लोकाचारको गए, कपूर अगर मलियागिरि चन्दन इत्यादि नानाप्रकारके सुगन्ध द्रव्यनिकर पद्मसरोवर पर प्रतिहरि का दाह धया बहुरि सरोवर के तीर श्रीराम मिष्ठे, कैसे हैं राम ! महा कृपालु है चित्त जिनका, गृहस्थाश्रममें ऐसे परिणाम कोई बिरलेके होय हैं। बहुरि आज्ञा करी-कुम्भकर्ण इन्द्रजीत मेघनादको सब सापन्तनिसहित छोडो तब कैयक विद्याधर कहते भए–वे महा क्रूरचित हैं अर शत्रु हैं छोडवे योग्य नाही बंधनही में मरें। तब श्रीराम कहते भए-यह क्षत्रियनिका धर्म नाहीं, जिनशासन में क्षत्रीनिकी कथा कहा तुमने नाहीं सुनी है। सूतेको बंधे को डरतेको शरणामतकू दन्तमें तृण लेतेको भागेको बाल वृद्ध स्त्रीनिकून हने, यह क्षत्रीका धर्म शास्त्रनिमें प्रसिद्ध है। तब सबान कही आप जो आज्ञा करो सो प्रमाण, रामकी आज्ञा प्रमाण बडे २ योधा नानाप्रकारके आयुधनिकू थरें तिनके ल्यायवेको गए, कुम्भकरण इन्द्रजीत मेघनाद मारीच तथा मन्दोदरीका पिता राजा मय इत्यादि पुरुषनिको स्थूल बन्धनसहित सावधान योधा लिए आवे हैं सो माते हाथी समान चले आव हैं तिनको देख वानरवंशी
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