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पद्म-पुराण
जानकर विनशन जाय है । यह हृदय महा निर्दई है । हाय विधाता हम तेरा कहा बुरा किया जो तैने निर्दई होकर हमारे सिरपर ऐसा दुःख डारा हे प्रीतम जब हम मान करती तब तुम उरसे लगाय हमारा मन दूर करते पर वचन रूप अमृत हमको ध्यावते महा प्रेम जनावते हमारा प्रेमरूप कोप ताके दूर करवेके अर्थ हमारे पांयन पडते सो हमारा हृदय वशीभूत हो जाता अत्यन्त मनोहर कीडा करते, हे राजेश्वर हमसे प्रीतिरो परम आनन्दकी करगहारीं वे क्रीडा हम याद आ हैं सो हमारा हृदय अत्यन्त दाहको म होय है तातें अब उठो हम तिहारे पायन पडे हैं नमस्कार करें हैं जे अपने प्रियजन होंय तिनसे बहुत कोप न करिए प्रीतिमें कोप न करिए प्रीतिमें कोप न सोहै । हे श्रेणिक, या भांति रावण की राणीय विलाप करती भई जिनका विलाप सुनकर कौनका हृदय द्रवीभूत न होय ?
अथानन्तर श्रीराम लक्ष्मण भामण्डल सुग्रीवादिक सहित अति स्नेहके भरे विभीषणको उरसे लगाय आंसू डारते महा करुणावन्त वीर्य वन्यावनेविषै प्रवीय ऐसे वचन कहते भएलोक वृत्तांत से सहित हे राजन् ! बहुत रोपवे कर कहा ? व विषाद तजो यह कर्मकी चेष्टा तुम कहा प्रत्यक्ष नाहीं जानो हो ? पूर्व कर्मके प्रभाव कर प्रमोदको धरते जे प्राणी तिनके अवश्य कष्टकी प्राप्ति होय है उसका शोक कहा पर तुम्हारा भाई सदा जगतके हितमें सावधान परम प्रीतिका भाजन समाधान रूप बुद्धि जिसकी राजकार्य में प्रवीण प्रजाका पालक सर्वशास्त्रनिके अर्थ कर योगा है वित्त जाने, सो बलवान मोहकर दारुण अवस्थाको प्राप्त भया अर विनाशको प्राप्त भया जब जीवनिका विनाश काल आवै तब बुद्धि अज्ञान रूप होय जाय है । ऐसे शुभ वचन रामने कहे बहुरि भामण्डल अति माधुर्यताको वरे वचन कहते भये । हे विभीषण महाराज ! तिहारा भाई रावण महा उदारचित्त कर रण में युद्ध करता संता वीर मरमकर परलोककू प्राप्त भया । जाका नाम न गया ताका कछु ही न गया । ते धन्य हैं जिन सुभटता कर प्राण तजे । ते महा पराक्रमके धारक वीर तिनका कहा शोक १ एक राजा अरिंदमकी कथा सुनो।
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अक्षयपुर नामा नगर तहां राजा अरिंदम जाके महा विभूति सो एक दिन काहू तरफसे अपने मन्दिर शीघ्रग मी घोडे चढा अकस्मात् आया सो राणीको श्रृंगार रूप देख महलकी अत्यंत शोभा देख राणीको पूछा- तुम हमारा आगम कैसे जाना ? तब राणीने कही - कीर्तिथर नामा मुनि अवधि ज्ञानी आज आहारको आए थे तिनको मैंने पूछा- राजा कब आगे सो तिन्होंने कहा राजा आज अचानक आयेंगे । यह बात सुन राजा मुनिपै गए अर ईर्षाकर पूछता भया - हे मुनि, तुमको ज्ञान है तो कहो मेरे चित्तमें क्या है तब मुनिने कही तेरे चित्तमें यह हैं कि मैं कब मरूंगा सो तू आजसे सातवें दिन वज्रपातसे मरेगा श्रर विष्टामें कीट होगा। यह मुनिके वचन सुन राजा श्ररिंदम घर जाय अपने पुत्र प्रीतिकरको कहता भया - मैं मरकर विष्टाके घर में स्थूल कीट होंऊंगा ऐसा मेरा रंगरूप होयगा सो तू तत्काल मार डारियो । ये वचन पुत्रको कह आप सातवें दिन मरकर विष्टामें कीडा भया सो
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