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________________ पल-पुराण स्त्री भरतार चले हैं तिनको पीछेसे जाय कहती भई-हे कान्त ! तिहारा उत्तरासन लेवो तब पति सन्मुख होय लेते भए । कैनी है कमलनयनी ? पतिके मुख देखवेकी है लालसा जाके पर कैयक प्राणवल्लभा पतिको दृष्टि से अगोचर होते संते सखियों सहित मूळ खाय पडी अर कोई एक पति पाछे अाय मौन गह सेजर पडी मानों काठको पुली ही है अर कोई एक शूरवीर श्रावक व्रतका धारक पीठ पीछे अपनी स्त्रीको देखता भया अर आगे देवांगनाओं को देखता भया । भावार्थ-जे सामनन अणुवार थरक हैं वे देवलोकके अधिकारी हैं अर जे सामन्स पहिले पूर्णमासीके चन्द्रमा समान सौम्यवदन हुने वे युद्धके आगमनमें काल समान कर श्राकार होय गए सिरपर टोप धरे धक्ता पहिरे शस्त्र लिए तेज भागते भए। .. अथानन्तर चतुरंग सेनासंयुक्त धनुष छत्रादिक कर पूर्ण मारीच महा वैजको धरे युद्धका अभिलाषी आय प्राप्त भया फिर विमलचन्द्र पाया महा धनुषधारी और सुनन्द आनन्द नन्द इत्यादि हजारों राजा आए सो विद्या कर निरमापित दिव्यरय तिनपर चढे अग्नि कैसी प्रभा को धरे मानों अग्निकुमारदेव ही हैं कैयक तीक्ष्ण शस्त्रों कर सम्पूर्ण हिमवान पर्वत समान जे हाथी उनकर सब दिशावोंको याच्छ दते हुए पाए जसे जुिरीसे संयुक्त मेघमाला श्रावै और कैयक श्रेष्ठ तुरंगों पर चढे मंचों हथियारों कर संयुक्त शीत्र ही जोतिष लोकसो उलंघ आवते भए । नाना प्रकारके बडे बडे बादित्र और तुरंगोंका हीसना गजोंका गर्जना पयादोंके शन्द योधानिके सिंहनाद बन्दीजनांक जय जय शब्द ओर गुणी जनों के गीत वीर रसके भरे इत्यादि और भी अनेक शब्द भेले भए, थरती आकाश शब्दायमान भए, जैसे प्रलय कालके मेघपटल होवें तैसे निकसे मनुष्य हाथी घोडे रथ पियादे परम्पर अत्यंत विभूति कर देदीप्यमान बडी भुजानिसे बखतर पहिरे उतंग हैं उरस्थल जिनके विजयके अभिल पी और पयादे खडग सम्हालें हैं महा चंचल आगे २ चले जाय हैं स्वामी के हर्ष उपजावनहारे तिनके समूहकर आकाश पृथ्वी और सर्व दिशा ब्याप्त भई, ऐसे उपाय करते भी या जीवके पूर्व कर्मका जैमा उदय है तैसा ही होय है. यह प्राणी अनेक चेष्टा करै है परन्तु अन्यथा न होय जैसा भवितव्य है तैसा ही होय सूर्य ह और प्रकार करने समर्थ नाहीं॥ इति श्रीरविणेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ. ताकी भाषा ननिकानिङ्ग रानणका युद्ध में उद्यमी होने का वर्णन करनेवाला तिहत्तरबां पर्ण पूर्ण भया ।। ७३ ।। अथानन्तर लंकेश्वर मंदोदरीसू कहता भया-हे प्रिये ! न जानिये बहुरि तिहारा दर्शन होय वा न होय तब मंदोदरी कहती भई -हे नाथ ! सदा वृद्धिको प्राप्त होवो, शत्रुवोंको जीत शीघ्र ही आय हमको देखोगे अर संग्रामसे जीते. आरोगे ऐसा कहा अर हजारा स्त्रियोंकर अवलोका संता राक्षसोंका नाथ मंदिरसे वाहिर गया. महा विकटताको धर विद्याकर निरमापा ऐंद्रीनामा रथ ताह देखतो भया जाके हजार हाथी जुपें मानों कारी घटाका मेघ ही है वे हाथी मदोन्मत्त झरे है मद जिनके, मोतियोंकी माला तिनकर पूर्ण महा घटाके नादकर युक्त ऐरावतसमान नानाप्रकारके रंगोंसे शोभित जिनका जीतना कठिन अर विनयके थाम अत्यन्त गर्ज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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