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चौहत्तरवां पर्ण नाकर शोभित ऐसे सोहते भए मानों कारी घट के समूह ही हैं मनोहर है प्रभा जिनकी ऐसे हाथियोंके रथ चढा रापण सोहता भया भुजबन्ध कर शोभायमान हैं भुजा जाकी मानों साक्षात् इंद्र ही है विस्तीर्ण हैं नेत्र जाके अनुपम है आकार जाका अर तेजकर सकल लोकमें श्रेष्ठ १० हजार श्राप समान विद्याधर तिनके मंडलकर युक्त रणमें आया, सो वे महा बलवान देवों सारिखे अभिप्रायके वेत्ता रावणको आया देख सुग्रीव हनूम न क्रोधको प्राप्त भए अर जब रावण चढा तब अत्यन्त अपशकुन भए भयानक शब्द भया अर आकाशमें गृध्र भ्रमते भए आच्छादित किया है सूर्यका प्रकाश जिन्होंने मो ये क्षरके सूचक अपशकुन भए परंतु रावण के सुभट न मानते भए युद्धको अाए ही पर श्रीरामचन्द्र अपनी सेनामें तिष्ठते सो लोकोंसे पूछते भए-हे लोको! या नगरीके समीप यह कोन पर्वत है तब सुषेणादिक तो तत्कालही जवाब न देय सके अर जांबुवादिक कहते भए--यह बहुरूपिणी विद्यासे रचा पद्मनाग नामा रथ है घनेनिको मृत्युका कारण, अंगदने नगरमें जायकर रावणको क्रोध उपजाया सो अब बहुरूपिणी विद्या सिद्ध भई, हमसे महाशत्रुता लिए है सो तिनके वचन सुनकर लक्ष्मण सारथीसे करता भया-मेरा रथ शीघ्रही चलाय तब सारथीन रथ चलाया श्रर जैसे समुद्र गाजै ऐसे वादित्र बाजे । वादित्रोंके नाद सुनकर योधा, विकट है चेष्टा जिनकी, लक्ष्मणके समीप श्राए । कोई एक रामके कटकका सुभट अपनी स्त्रीको कहता भया-हे निये, शोक तज, पीछे जावो मैं लंकेश्वरको जीत तिहारे समीप श्राऊंगा, या भांति गर्वकर प्रचण्ड जे योवा वे अपनी अपनी स्त्रीनिको धीर्य बंधाय अन्तःपुरसे निकसे, परस्पर स्पर्धा करते, वेगसे प्रेरे हैं बाहन रथांदिक जिन्होंने ऐसे महा योधा शस्त्रके धारक युद्धको उद्यमी भए । भृतस्वननामा विद्याधरोंका अधिपति महा हाथियोंके रथ चढा निकसा, गंभीर है शब्द जाका । या विधि और भी विद्याधरनिके अधिपति हर्षसहित रामकं सुभट कर हैं आकार जिनके क्रोधायमान होय रावणके योधानिस, जैसा समुद्र गाजे तैसे गाजते गंगाकी उतंग लहर समान उछलते, युद्धके अभिलाषी भये अर राम लक्ष्मण डेर.निसे निकसे, कैस हैं दोनों भाई पृथिवीमें व्याप्त हैं अनेक यश जिनके, कर आकारको धरे सिंहानिके रथ चढे, बखर पहिरे महाबलवान उगते सूर्यसमान श्रीराम शोभते भए अर लक्ष्मण गरुडकी है ध्वजा जाके पर गरुड के स्थ चढा, कारी घटा समान है रंग जाका अपनी श्यामताकर श्याम करी है दशो दिशा जाने, मुकुटको धरे, कुंडल पहरे धनुष चढाये, बखतर पहरे, वाण लिये, जैसे सांझके समय अंजनगिरि सोहै तैसे शोभता भया।
गौतम स्वामी कहे हैं-हे श्रेणिक ! बडे २ विद्याधर नानाप्रकारके वाहन अर विमाननिपर चढ़े युद्ध करिवको कटकसे निकसे । जेब श्रीराम चढ़े तव अनेक शुभशकुन आनन्दके उपजावनहारे भए, रामको चढा जान रावण शीघ्र ही महा दावानल समान है प्राकार जाका युद्धको उद्यमी भया, दोनों ही कटकके योधा जे महासामंत तिनपर आकाशसे गंधर्व अर अप्सरा पुष्पवृष्टि करती भई, अंजनगिरिसे हाथी महावतोंके प्रेरे मदोन्मत्त चले पियादों कर वेढे अर सूर्यके रथ समान रथ, चंचल हैं तुरंग जिनके सारथिनिकर युक्त जिन पर महा योधा चढे युद्धको
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