________________
तिहत्तरण पर
४३१ गौणता होय है अर पराए मुख सुने प्रशंसा होय है तातें मैं कहा कहू तुम सब नीके जानो हो, विचारी सीता कहा ? लक्ष्मी भी मेरे तुल्य नाही तातै सीताकी अभिलाषा तजो, मेरा निरादर कर तुम भूमिगोचरिणीको इच्छो हो, मो मंदमति हो जैसे बालबुद्धि वैडूर्य मणिको तज अर कांचको इच्छे ताका कछू दिव्य रूप नाही तिहारे मनमें क्या रुची यह ग्राम्यजाकी नारी समान अन्पमति ताकी कहा भभिलाषा अर मोहि आज्ञा देवो सोई रूप धरू तिहारे चित्तकी हरणहारी मैं लक्ष्मीका रूप धरूअर आज्ञा करो तो शची इन्द्राणीका रूप धरू कहो तो रतिका रूप धरू । हे देव, तुम इच्छा करो सोई रूप करू', यह वार्ता मंदोदरीकी सुन रावणने नीचा मुख किया अर लज्जावान भया । बहुरि मंदोदरी कहती भई-तुम परस्त्री आसंक्त होय अपनी प्रात्मा लघु किया विषयरूप आमिषकी आसक्ती है जाके सो पापका भाजन है धिक्कार है ऐसी क्षुद्र चेष्टाको।
यह वचन सुन रावण मंदोदरी से कहता भया–हे चन्द्रवदनी, कमललोचने, तुम यह कही जो कहो जैसा रूप बहुरि धरू सो औरोंके रूपसे तिहारा रूप कहा घटती है तिहारा स्वतः ही रूप मोहि अति बल्लभ है । हे उत्तमे, मेरे अन्य स्त्रीनिकर कहा ? तब हर्षितचित्त हो कहती भई-हे देव, सूर्य को दीपका उद्योत कहा दिखाइये, मैं जो हितके वचन आपको कहे सो औरो को पूछ देखो मैं स्त्री हूँ मेरेमें ऐमी बुद्धि नाहीं शास्त्रमें यह कही है जो धनी सबही नय जाने हैं परन्तु दैव योग थकी प्रमादरूप भया होय तो जे हितु हैं ते समझायें जैसे विष्णुकुमार स्वामी को विकियाऋद्धिका विस्मरण भया तो औरोंके कहे कर जाना, यह पुरुष यह स्त्री ऐसा विकल्प मन्दबुद्धिनिके होय है जे बुद्धिमान हैं हितकारी वचन सबही मान लेंय आपका कृपाभाव मो ऊपर है तो मैं कहूँ हूं। तुम परस्त्रीका प्रेम तजो, मैं जानकीको लेकर रामपै जाऊ अर रामको तिहारे पास ल्याऊ, अर कुम्भकर्ण इन्द्रजीत मेघनादको लाऊ अनेक जीवनिकी हिंसा कर कहा ? ऐसे व वन मन्दोदरीने कहे तब रावण अतिक्रोधकर कहता भया-शीघ्रही जावो जावो जहां तेरा मुख न देखू तहां जावो । अहो तू आपको वृथा पंडित माने है आपकी ऊंचता तज परपक्षकी प्रशंसामें प्रवरती, तू दीन चित्त है योषायोंकी माता तेरे इन्द्रनीत मेघनाद कैसे पुत्र पर मेरी पटराणी राजा मयकी पुत्री तोमें एती कायरता कहाँसे आई ? ऐसा कहा तब मन्दोदरी बोली-हे पति ! सुनो जो ज्ञानियोंके मुख बलभद्र नारायण प्रतिनारायणका जन्म सुनिये है पहिला बलभद्र विजय नारायण त्रिपृष्ठ, प्रतिनारायण अश्वग्रीव, दूजा वलभद्र अचल नारा यण द्विपृष्ट प्रतिहरि तारक इसभांति अब तक सान बलभद्र हो चुके सो इनके शत्रु प्रतिनारायण इन्होंने हते अब तिहारे समय यह बलभद्र नारायण भए हैं अर तुम प्रतिवासुदेव हो भागे प्रतिवासुदेव हठ कर हते गए तैसे तुम नाशको इच्छो हो । जे बुद्धिमान हैं तिनको यही कार्य करना जो या लोक परलोकमें सुख होय अर दुःखके अंकुरकी उत्पत्ति न होय सो करनी । यह जीव चिरकाल विषयसे तृप्त न भया तीन लोकमें ऐसा कौन है जो विषयोंसे तृप्त होय ? तुम पाप कर मोहित भए हो सो वृथा है पर उचित तो यह है तुमने बहुत काल भोग किए अब मुनि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org