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________________ छियासठयां ६ रामसे नमस्कारकर दूत वचन कहता भया–हे घुरन्द्र ! मेरे वचननिकर मेरे स्वामीने तुमको कुछ कहा है सो चित्त लग य सुनहु, युद्धकर कछु प्रयोजन नाही आगे युद्ध के अभिमानी बहुत नाशको प्राप्त भये तातै प्रीतिही योग्य है युद्धकर लोकनिका क्षय होय है अर महा दोष उपजे हैं अपवाद होय है आगे संग्राम की रुचिकर राजा दुर्वनै शंक धवलांग असुर सम्बरादिक अनेक राजा नाशको प्राप्त भये तातै मेरे महिन तुमको प्रीति ही योग्य है। अहो जैसे सिंह महा पर्वतकी गुफाको पायकर सुखी होय है तैसे अपने मिलापकर सुख होय है । मैं रावण जगत प्रसिद्ध कहा तुमने न सुना जाने इन्द्रसे राजा बन्दीगृहमें किए जैसे कोई स्त्रीनिको अर सामा न्यलोकोंको पकडै तैसे इन्द्र पकडा अर जाकी आज्ञा सुर असुरनिकर न रोकी जाय, न पाताल विष न जलमें न आकाशविर्ष आज्ञाको कोई न रोक सके, नाना प्रकारके अनेक युद्धोंका जीतनहारा वीर लक्ष्मी जाको बरै ऐसा मैं मो तुमको सागरांत पृथिवी विद्याधरोंसे मंडित दंह अर लंकाके दोय भागकर बांट दुई-भावार्थ-समस्त राज्य अर आधीलंका दहं तुम मेरा भाई अर दोनों पुत्र मोपै पठावो पर सीता मोहि देशो जाकर सब कुगल होय अर जो तुम यों न करोगे तो जो मेरे पुत्र भाई बन्धनमें हैं तिनको तो बलात्कार छुटाय लूगा अर तुमको कुशल नाहीं । तब राम बोले-मोहि राज्यसे प्रयोजन नाही अर और स्त्रियोंसे प्रयोजन नाही, सीता हमारे पठावो हम तिहारे दोऊ पुत्र अर भाईको पठ वें अर तिहारे लंका तिहारे ही रहो अर समस्त राज्य तुम ही करी । मैं सीतासहित दुष्ट जीवनिसंयुक्त जो वन तामें सुखम् विचरूगा। हे दूत ! तू लंकाके धनीसे जाय कह याही बातमें तिहारा कल्याण है, और भांति नाही। ऐसे श्रीरामके सर्व पूज्य वचन सुख साताकर संयुक्त तिनको सुनकर दूत कहता भया-हे नृपति ! तुम राज काजविणे समझो नाहीं, मैं तुमको बहुरि कल्याणकी बात कहू हूं निर्भय हो समद उलंव पाए हो सो नीके न करी अर यह जानकीकी भाशा तुमको भली नाही। यदि लंकेश्वर कोप भया तव जानकीकी कहा बात ? तिहारा जीवना भी कठिन है अर रजनीतिविणे ऐसा कहा है जे बद्धिमान् हैं तिनको निरन्तर अपने शरीर की रक्षा करनी, स्त्री अर धन इनपर दृष्टि न थरनी अर जो गरुडेन्द्रन सिंहबाहन गरुडवाहन तुपे भेजे तो कहा ? अर तुम छल छिद्रकर मेरे पुत्र अर सहोदर बांधे तो कहा ? जोलग में जीबू हूं तो लग इन बातोंका गर्व तुमको वृथा है जो तुम युद्ध करोगे तो न जानकीका न तिहारा जीवन, तातें दोऊ मत खोवो, सीताका हठ छांडहु अर रावणने यह कही है--जे बडे २ राजः विद्याधर इन्द्रतुल्य पराक्रम जिनके सो समस्त शास्त्रशिष प्रवीण अनेक युनिके जीनिहारे ते मैं नाशको प्राप्त किए हैं तिनके कैलाशपर्वत के शिखर हाडनके समूह देखो। जब ऐसा दूतने कहा तब भामण्डल क्रोधायमान भया ज्वाला समान महा विकराल मुख ताकी ज्योलिसे प्रकाश किया है आकाशमें जाने। भामण्डलने कही-रे पापी दूत ! स्याल चातुर्यतारहित दुवुद्धि वृथा शंकारहित कहा भा है सीताकी ? कडा वार्ता ? सीता तो राम लेडींगे यदि श्रीराम को तब रावण राक्षस कुचेष्टित पशु कहा ? ऐसा कह वाके मारवेको खड्ग सम्हारा । तब लक्ष्मणने हाथ पकड़े अर भने किया। कैसे हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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