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पद्म-पुराण आरक्त तीन वर्ण कमल तिन समान हैं नेत्र जाके अर शरदकी पूर्णिमाके चन्द्रमा समान है मुख जाका अर कोमल शरीर क्षीण कटि दिग्गजके कुम्भस्थल समान स्तन हैं जाके नव यौवन मानों साक्षात् मूर्तिदन्ती कामकी क्रीडा है मानो तीन लोककी शोभा एकत्रकर नामकर्मने याहि रचा है ताहि लक्ष्मण देख आश्चर्यको प्राप्त होय मनमें विचारता भया, यह लक्ष्मी है अक इद्रकी इंद्राणी है अथवा चंद्रकी कांति है यह विचार करे है अर विशल्याकी लारकी स्त्री कहती भई हे स्वामी ! तिहारा यासू विवाहका उत्सव हम देखा चाहे हैं तब लक्ष्मण मुलके पर विशल्याका पाणिग्रहण किया अर विशल्याकी सर्व जगतमें कीर्ति विस्तरी। या भांति जे उत्तम पुरुष हैं पर पूर्वजन्ममें महा शुभ चेष्टा करी हैं तिनको मनोग्य वस्तुका संबंध होय है अर चांद सर्यकीसी उनकी कांति होय है ॥ इति श्रीरविषेणा बार्यविरचित महा पद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषावचनिकाविर्षे विशल्याका
समागम वर्णन करनेवाला पंसठबां पर्व पूर्ण भया ।। ६५ ।। अथानन्तर लक्ष्मणका विशल्यासू विवाह अर शक्तिका निकासना यह सब समाचार रावणने हलकारनिके मुख सुने अर सुनकर मुलकि कर मंदबुद्धि कर कहता भया-शक्ति निकसी तो कहा ? अर विशल्या व्याही तो कहा ? तब मारीच आदि मंत्री मंत्र में प्रवीण कहते भए-हे देव ! तिहारे कल्याण की बात यथार्थ कहेंगे तुम कोप करो अथवा प्रसन्न होवो सिंहबाहनी गरुडबाहनी विद्या राम लक्ष्मणको यत्न विना सिद्ध भई सो तुम देखी अर तिहारे दोऊ पुत्र अर भाई कुम्भकर्णको तिन्होंने बांध लिए सो तुम देखे अर तिहारी दिव्य शक्ति सो निरर्थक भई तिहारे शत्रु महाप्रबल हैं उनकर जो कदाचित् तुम जीते भी तो भ्राता पुत्रोंका निश्चय नाश है तातें ऐमा जानकर हम पर कृपा करो, हमारी विनती अब तक आपने कदापि भंग न करी तातें सीताको तजो अर जो तिहारे धर्म बुद्धि सदा रही है सो राखों सर्व लोकको कुशल होय राघवसे संधि करो यह बात करने में दोष नाहीं, महागुण है तुम ही कर सर्व लोकविणे मर्यादा चले है धर्मकी उत्पत्ति तुमसे है जैसे समुद्रतें रत्ननिकी उत्पत्ति होय ऐसा कहकर बडे मंत्री हाथ जोड नमस्कार करते भए अर हाथ जोड विनती करते भए । सबने यह मंत्र किया जो एक सामंत दूतविद्याविणै प्रवीण संधिके भर्थि रामपै पठाइये सो एक बुद्धिसे शुक्रसमान महा तेजस्वी प्रतापवान मिष्टवादी ताहि बुलाया सो मंत्रिनिने महासुन्दर महाअमृत औषधि समान वचन कहे परन्तु रावणने नेत्रकी समस्या कर मंत्रिनिका अर्थ दक्षित कर डाला जैन कोई विषसे महा औषधिको विषरूप कर डारे तैसे रावण संधिकी बात विग्रहरूप जताई, सो दत स्वामीको नमस्कारकर जायवेको उद्यमी भया । कैसा है दूत ? बुद्धिके गर्वकर लोकको गोपद समान मिरखे है, आकाशके मार्ग जाता रामके कटकको भयानक देख दूतको भय न उपजा । याके बादित्र सुन बानरवंशियोंकी सेना क्षोभको प्राप्त भई, रावणके आगमकी शंका करी जब नजीक आया तब जानी यह रावण नाहीं कोई और पुरुष है तब बानरवंशियों की सेनाको विश्वास उपजा दूत द्वारे आय पहुंचा तब द्वारपालने भामण्डलसे कही । भामंडल ने रामसे विनतीकर केतेक लोकनि सहित निकट बुलाया अर ताकी सेना कटकमें उतरी।।
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