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________________ पैसठना पर्ण रावणसों अतिप्रसन्न होय मोहि सोंपी । रावणा याचनाविप कायर मोहि न इच्छै तब धरणेन्द्रने हठकर दई सो मैं महा विकरालस्वरूप जाके लागू ताके प्राण हरू, कोई मोहि निवारवे समर्थ नाहीं एक या विशल्या संहरीको टार, मैं देशों की जीन नहारी मो मैं या के दर्शन तेही भग जाऊं याके प्रभावकर मैं शक्तिरहित भई, तपका ऐषा प्रभाव है जो चाहे तो सूर्य को शीतल करे अर चन्द्रमाको उष्ण करै याने पूर्व जन्मविष अति उग्र तप किए। मिझन' के फूल समान याका सुकुमार शरीर सो याने तपविष लगाया ऐठा उग्र तप किया जो मुनिहते न बनै, मेरे मन में संपारमें यही सार भासे है जो ऐसे तप प्राणी करें वर्षा शीतल पाताप अरमहा दुस्सह पवन तिनसे यह सुमेरुकी चूलिका समान न कांपी, थन्य याका साहम, धन्य याका धर्मविगै दृढमन, यासासा तप और स्त्रीजन करने समर्थ नाही, सर्वथा जिनेंद्रचन्द्र के मतके अनुसार जे तपको थारण करें है ते तीन लोकको जीते हैं अथवा या बातका कहा आश्चर्य जो तपकर मोक्ष पाइये ताकर और कहा कठिन ? मैं पराए आधीन जो मोहि चलावै ताके शत्र का मैं नाश करू', सो याने मोहि जीती अब मैं अपने स्थानक जाऊहूं सो तुम तो मेरा श्राराध क्षमा करहु । या भांति शक्तिदेवीने कहा तव तत्त्वका जाननहारा हनूमान ताहि विदाकर अपनी सेनामें पाया अर द्रोणमेषकी पुत्री विशल्या अति लज्जो की भरो रामके चरणारविन्दको नमस्कारकर हाथ जोड ठाढी भई विद्याधर लोक प्रशंसा करते भए अर नमस्कार करते भए अर आशीर्वाद देते भए जैसे इंद्र के समीप शची जाय ष्ठेि तैसे यह विशन्या सुलक्षणा महा भाग्यवती सखियोंके वचनसे लक्ष्मण के समीप तिष्ठी, वह नव यौवन जाके मृगी कैसे नेत्र, पूर्णमासीक चन्द्रमा समान मुख जाका अर महा अनुरागकी भरी उदारमन पृथिवी विष सुखसे सूते जो लक्ष्मण तिनको एकांतविणे स्पर्श कर अर अपने सुकुमार करकमल सुन्दर तिनकर पतिके पांव पलोटने लगी और मलयागिरि चन्द्रनसे पतिका सर्व अंग लिप्त किया अर याकी लार हजार कन्या आई थी तिनने याके करसे चन्दन लेय विद्याधरनिके शरीर छांटे सो सब पायल माछे भए अर इंद्रजीत कुम्भकर्ण मेघनाद घायल भए हुते सो उनको हू चन्दनके लेपसे नीके किये सो परम आनन्दको प्राप्त भए जैसे कर्मरोगरहित सिद्धएरमेष्ठी परम आनन्द को पावें पर भी जे योधा घायल भए हुते हार्थ घोडे पियादे सो सब नीके भए घावोंकी शल्य जाती रही सय कटक अच्छा भया अर लक्ष्मण जैसे सूता जागै तैले व णके नाद सुन अति प्रसन्न भए भर लक्ष्मण मोहशय्या छोडते भए स्वास लिए आंख उधडी, उठकर क्रोथके भरे दशों दिशा निरखि एमे वचन कहते भए कहां गया रावण कहां गया वो रावण ? ये वचन सुन राम अति हर्षित भए, फूल गए हैं नेत्र कमल जिनके, महा आनन्दके भरे बडे भाई, रोमांच होय गया है शरीरमें जिनके पर अपनी भुजानिकर भाईस मिलते भए पर कहने भए-हे भाई ! वह पापी तोहि शक्तिसे अचेत कर आपको कृतार्थ मान घर गया अर या राजकन्याके प्रसादतें तू नीका भया भर जामवन्तको श्रादि दे। सब विद्यावरानने शक्तिके लागवे आदि निकसवे पर्यन्त सव वृत्तान्त कहा पर लक्ष्मणने विशन्या अनुरागकी दृष्टिकर देखी । कैसी है विशल्या १ श्वेत श्याम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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