________________
wrimmmmmmmmmmmamtakaudinavianimalkannadankankson
पैन पराण जगावनेका उद्यम किया सो भरत जागते भए तब ये मिले सीताका हरण रावणसे युद्ध अर लक्ष्मणके शक्तिका लगना ये समाचार सुन भरतको शोक अर क्रोध उपजा अर ताही समय युद्धकी मेरी दिवाई सो संपूर्ण अयोध्याके लोग व्याकुल भए अर विचार करते भए यह राज. मन्दिरमें कहा कलकलाहट शब्द है ? आधीरात के समय कहा अतिवीर्यका पुत्र आय पडा ? कोईयक सुभट अपनी स्त्रीसहित सोता हुता ताहि तजकर वक्तर पहिरे अर खड्ग हाथमें समारा अर कोई मृगनैनी भोरे बालकको गोद में लेय अर कुचोंपर हाथ धर दिशावलोकन करती भई अर कोई एक स्त्री निद्रारहित भई सोते कंथको जगारती भई अर कोई एक भरत जीका सेवक जागकर अपनी स्त्रीको कहता भया–हे प्रिये ! हा सोवे है ? आज अयोध्यामें कछु भला नाहीं राजमन्दिरमें प्रकाश होरहा है अर रथ, हाथी, घोडे, प्यादे, राजद्वारकी तरफ जाय हैं जो सयाने मनुष्य हुने ते सब सावधान होय उठ खडे हुये अर कई एक पुरुष स्त्रीसे कहते भए ये मुर्ण कलश अर मणि रत्नों के पिटारे तहखानोंमें अर सुन्दर वस्त्रों की पेटी भूमिगृह में धरो और भी द्रव्य ठिकाने धरो अर शत्रुघ्न भाई निद्रा तम हाथी चह मंत्रीशेसहित शस्त्रधारक योधावोंको ले राजद्वार आया और भी अनेक राजा राजद र आए सी भरत सबको युद्ध का आदेश देय उद्यमी भया तब भामण्डल हनूमान अंगद भरतको नमस्कार कर कहते भये-हे देव ! लंकापुरी यहांसे दूर है अर बीच समुद्र है तब भरतने कही-कहा करना ? तब उन्होंने विशन्याका वृत्तान्त कहा-हे प्रभो ! राजा द्रोण मेघ की पुत्री विशल्या ताके स्नानका उदक देशो शीघ्रही कृपा करो जो हम ले तांप सूर्यका उदय भए लदाण का जीवना कठिन है तब भरतने कडी ताके स्नानका जल क्या ? वादी लेजावो | मोहि मुनिने कही हुती यह विशल्या लक्ष्मणकी स्त्री होयगी तब द्रोणमेषके निकट एक निज मनुष्य ताही समय पठाया सो द्रोगा मेघने लक्ष्मणके शक्ति लगी सुन अति कोप किया अर युद्धको उद्यमी भया अर ताके पुत्र मंत्रिनि सहित युद्धको उद्यमी भए तब भरत अर माता के कई न आप द्रोणमेघको जाकर ताको समझाय विशाल्यको पठावना ठहराया तब भामण्डल हनुमान अंगद विशल्याको विमानमें बैठ य एक हजार अधिक राजाकी कन्या सहित लेग रामकटक में पाए, एक क्षणमात्रमें संग्राम भूमि प्राय पहुंचे, विमानसे कन्या उतरी, ऊपर चमर दुरै हैं कन्याके कमल सारिखे नेत्र सो हाथी, घोडे, बडे २ योधानिको देखती भई ज्यों ज्यों विशल्या कटकमें प्रवेश करै त्यों त्यों लक्ष्मणके शरीरमें साता होती भई, वह शक्ति देवरूपणी लक्ष्मण के अंगा निकर्स ज्योतिके समू से युक्त मानो दुष्ट स्त्री घरसे निकसी. देदीप्यमान अग्निके स्फूलिंगोंके समूह आकाशमें उबलते सो वह शक्ति हनूमानने पकडी, दिव्य स्त्रीका रूपधर तब हनूमानको हाथ जोड कहती भई-हे नाथ ! प्रसन्न होतो माहि छांडो मेरा अपराथ नाही हमारी यही रीति है कि हमको जो साथै, हम ताकं वशीभूत हैं मैं अमोघविजया नामा शक्ति विद्या तीन लोकविष प्रद्धि हूं मो कैलाशपर्वतविष बलमुन प्रतिमा जोग धरि तिने हुते पर रावणने भगवान्के चैत्याल में गान किया अर अपने हाथनिकी नस बजाई अर जिनेंद्रके चरित्र गाए, तब घरोंद्रका आसन कंपायमान भया सो धरणेंद्र परम हर्ष धर पाए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org