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________________ वासठवां पर्ण से सूकता देख आप कोपकर युद्ध करनेको उद्यमी भया सो रावणरूप प्रलय कालकी पवनस वानरवंशी के पातसे उडने लगे तब विभीषण महायोधा बानरवंशीनिको धीर्य बंधाय तिनकी रक्षा करवेको आप रावणसे युद्ध को सन्मुख भया । तब रावण लहुरे भाईको युद्ध में उद्यमी देख क्रोधकर निरादर वचन कहता भया-रे बालक ! तू भ्राता है सो मारवे योग्य नाहीं मेरे सन्मुखतें दूर हो, मैं तोहि देख प्रसन्न नाहीं । तब विभीषण रावण सूकही-कालके योगसे तू मेरी दृष्टि पडा तब मोपै कहां जायगा ? तब रावण अति क्रोधकर कहता भया-रे पुरुषत्वरहित क्लिष्ट धृष्ट पापिष्ठ कुचेष्टि नरकाधिकारी तो सारिखे दीनको मारे मोहि हर्ष नाही, तू निर्बल रंक अवध्य है अर तो सारिखा मूर्ख और कौन जो विद्याधरोंकी सन्तानमें होय कर भूमिगोचरियोंका आश्रय करै जैसे कोई दुर्बुद्धि पापकर्मके उदयतें जिन धर्मको तज मिथ्यात्वका सेवन करे तब विभीषण बोला-हे रावण ! बहुत कहने कर कहा तेरे कल्याणकी बात तुझे कहूहूं सो सुन-ऐती भई तोहू कछु विगडा नाहीं जो तू अपना कल्याण चाहे है तो रामसे प्रीति कर सीता रोमको सौंप अर अभिमान तज रामको प्रसन्न कर, स्त्रीके निमित्त अपने कुलको कलंक मत लगावै अथवा तू मेरे वचन नहीं माने है मो जानिये है तेरी मृत्यु नजीक पाई है, समस्त बलवन्तोंमें मोह महावलपान है, तू मोहकर उन्मत्त भया है। ये वचन भाई के सुनकर रावण अति क्रोधरूप भया, तीक्ष्ण वाण लेय विभीषणपर दौडा और भी रथ घोडे हाथियोंके असवार स्वामी भक्तिविषी तत्पर महायुद्ध करते भये । विभीषणने हू रावणको आवता देख अर्धचन्द्र वाणसे रावणकी ध्वजा उडाई अर रावणने क्रोधकर वाण चलाया सो विभीषणका धनुष तोडा पर हाथ तेवाण गिरा तव विभीषणने दूजा धनुष लेय वाण चलाया सो रावणका धनुष तोडा । या भांति दोऊ भाई महायोधा परस्पर जोरसे युद्ध करते भए अर अनेक सामन्तनिका क्षय भया तब इन्द्रजीत महायोधा पिताभक्त पिताका पक्ष कर विभीषण पर आया तब ताहि लक्ष्मणने रोका जैसे पर्वत सागरको रोके पर श्रीरामने कुम्भकर्णको घेरा अर सिंहकटिसे नील अर स्वयंभूसे नल अर शंभूसे दुर्मति अर घटोदरसे दुख, शक्रासनसे दुष्ट, चंद्रनखसे काली, भिन्नांजनसे स्कंध, विघ्नसे विराधित अर मपसे अंगद अर कुम्भकर्णका पुत्र जो कुम्भ तास हनूमानका पुत्र अर सुमालीसे सुग्रीव अर केतुसे भामंडल, कामस दृहरथ, क्षोभसे बुध इत्यादि बडे २ राजा परस्पर युद्ध करते भए अर समस्त ही योथा परस्पर रण रचते भए। वह वाहि बुलावै बराबरके सुभट, कोई कहै हैं मेरा शस्त्र आवै है उसे झेल, कोई कहै है तू हमसे युद्ध योग्य नाही वालक है वृद्ध है रोगी है निर्वल हैं तू जा फलाने सुभट युद्ध योग्य है सो आवो या भांतिके वचनालाप होय रहे हैं कोई कहै हैं याहि छेदो, कोई कहै है बाण वलावो, कोई कहैं मार लेयो पकड लेवो बांध लेवो ग्रहण करो छोडो चूर्ण करो घाव लगे ताहि सहा घाव देहु आगे होयो मूर्थित मत होवो सावधान होवो तू कहा डरे है मैं तुझे न मारू कायरनिकून मारना भागों को न मारना, पडे को न मारना आयुधरहित पर चोट न करनी तथा रोगसे असा मूर्छित दीन बाल वृद्ध यति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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