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________________ ४०२ पद्म-पुराण व्रती स्त्री शरणागत तपस्वी पागल पशु पक्षी इत्याहि सुपट न मार यह सामन्तनिकी वृत्ति है। कोई अपने वंशियोंको भागते देख धिक्क र शब्द कहे हैं और को हैं तू कायर है नष्ट है मति कापै कहां जाय है धीरा रहो अपने ममूहमें खडा रहु तो क्या होय है तोस्कोन डरे तू काहे को क्षत्री ? शूर और कायर निके परखने का यह समय है मीठा मीठा अन्न तो बहु । खाते यथेष्ट भोजन करते अब युद्ध में पीछे को होयो ? ___ या भांति वीरोंकी गर्जना अर बादित्रोंका बाजना तिनसे दशोदिशा शब्दरूप भई कार तुरंगोंके खुरकी रजसे अंधकार हो गया चक्र शक्ति गदा लोहयष्टि कनक इत्यादि शस्त्रोंसे युद्ध भया म नों ये शस्त्र काल की डाढ ही हैं । लोग घायल भए. दोनों सेना ऐसी दीखें मानों लाल अशोकका वन है अथवा टेसू का वन है अथवा पारिभद्र जातिके वृक्षोंका वन है। कोऊ योधा अपने वक्तरको टूटा देख दूजा वक्ता पहाता भया जैसे साधु व्रतम दूषण उपना देख बहुरि पीछे दोष स्थापना करे पर कोई दांतोंसे तरवार थांभ कमर गाढो कर बहुरि युद्धको प्रवृत्ता कोई यक सामंत माते हाथिनिके दांतोंके अग्रभागसे बेदारा गया है वक्षस्थल जाका सो हाशीके चालते जे कान तेई भए बीना उससे मनो हवासे सुखरूप कर रहे हैं अर काईयक सुगट निराकुल बुद्धि हुया हाथीके दांतोंपर दोनों भुजा पसार सोचे है मानों स्वामीके कार्यरूप समुद्र में उतरा अर कैयक योधा युद्धसे रुधिरका नाला बहावते भए जैसे पर्वतमें गेरुकी खानसे लाल नीझरने ब हैं और कैपक योवा पृथिली में साम्हने मुंहसे पडे, होठ डसते शस्त्र जिनके करमे, टेढी भौंह विकराल बदन या रीतिसे प्राण तजे हैं और केएक भव्यजीव महाभग्रामसे अत्यंत घाल हाय कषायका त्यागकर सन्यास धार अविनाशी पदका ध्यान करते देह को तज उत्तम लोकको पावेहैं कैएक थीरवीर हाथीयोंके दांगोंको हाथसे पकडकर उपाडते भए सो रुधिरकी छटा शरीरसे पडे है शस्त्र हैं ह थोंमें जिनके अर कैएक काम आय गए तिनके मन्तक भिर पडे अर सैकडो घड नाचे हैं कैएक शस्त्ररहित भए अर पावसे जरजरे भए तृषातुर होय जल पी नेको बैठे हैं जीवनेकी आशा नाहीं ऐसे भयंकर संग्रामके होते परस्पर अनेक योधात्रों का क्षय भया । इन्द्रजीत तीक्ष्ण वाणनिसे लक्ष्मण को आच्छ दने लगा अर लक्ष्मण उसको, सो इद्रजीतने लक्ष्मण पर तामस बाण चलाया सो अंधकार होयगया तब लक्ष्मने सूर्यबाण चलाया उससे अन्धकार दूर भया बहुहि इन्द्रजीतने आशीविष जातिके नागवाण चलाए सो लक्ष्मण अर लक्ष्मण का रथ नागोंसे वेष्टित होने लगा तब लक्षाणने गरुडबाणके योगसे नागवाणका निराकरण किया जैसे योगी महातपसे पूर्योपार्जित पापों के समूहको निर करण करें र लदाणने इन्द्रजीतको रथरहित किया । कैसा है इन्द्रजीत ? मंत्रियोक मध्य मिष्ठे है अर हाथियों की घटाओंसे वॉष्टत है सो इन्द्रजीत दूजे स्थपर वह अपनी सेनाको वचनसे कृपाकर रक्षा करता ता लक्ष्मण पर प्वाण चलावता भया ताहि लक्ष्मणने अपनी विद्यासे निवार इन्द्रजीतपर आशीविष जातिका नागवाण चलाया सो इन्द्रजीत नागमःणसे अचेत हाय भूमिमें प.जैसे भामंडल पड़ा हुना अर रामने कुम्भकरणको रथरहित किया बहुरि कुम्भारण, सूयाण रानपर चलाया सोरामने वाका बाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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