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पहा राण ही भवमें साधु सेवाकर परम यश पाइए है अर अति उदार चेष्टा होय है अर पुण्यकी विधि प्राप्ति होय है अर जैसा साधु सेवासे कल्याण होय है तैना न माता न पिता न मित्र न भाई कोई जीवनिका न करे । साधु या प्राणीकू धर्म उत्तम बुद्धि देय कल्याण करे। या भांति साधु सेवाकी प्रशंसामें लगाया है चित्त जिन्होंने, जिनेन्द्रके मार्ग की उन्नतिमें उपजी है श्रद्धा जिनके, ते राजा बलभद्र नारायण का प्राश्रय कर महा विभूतिकर शोमते भए। भव्य जीव रूप कमल तिनको प्रफुल्लित करनहरी यह पवित्र कथा ताहि सुनकर ये सर्व ही हर्षके समुद्रवि मग्न भए अर श्रीराम लक्ष्मणकी सेवामें अति प्रीति करते भये पर भामण्डल सुग्रीव हनूमान् मूलारूप निद्रा से रहित भये हैं नेत्र कमल जिनके श्री भगवानकी पूजा करते भये । वे विद्याधर श्रेष्ठ देवों सारिखे सर्वथा थर्ममें श्रद्धा करते भये, पुण्याधिकारी जीव हैं सो या लोकमें परम उत्सवके योगको प्राप्त होय हैं यह प्राणी अपने स्वार्थस संसारमें महिमा नाही पावै है, केवल परमार्थसे महिमा होय है. जैसा सूर्य पर पदार्थको प्रकाश करे तैसे शोभा पावै ॥ इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ नाकी भाषा वचनिकाविौं सुग्रीन भामंडल का नागमशन छूटना अ. हतूनानका कु भकण की भुजापाशते छूटना राम लक्ष्मणको सिंहगिमान गरुडनिमानकी प्राप्ति कहनेवाला इकसठगां पर्ण पर्ण भया ॥६॥
अथानन्तर श्रीरामके पक्षके योधा महापराक्रमी रणरीतिके वेत्ता शूरवीर युद्धको उद्यमी भये वानरवंशिनि की सेनासे आकाश व्याप्त भया अर शंख आदि वादित्रोंके शब्द अर गजोंकी गर्जना अर तुरंगोंके हीसिवेका शब्द सुनकर कैलाशका उठावनहारा जो रावण अति प्रचंड है बुद्धि जाकी महामानी देवन सारिखी है विभूति जाके म..प्रतापी बलवान सेनारूप समुद्रकर संयक्त शस्त्रोंके तेजकर पृथिवीमें प्रकाश करता पुत्र भ्रातादिकसहित लंकासे निकसा, युद्धको उद्यमी भया, दोऊ सेनाके योधा वखतर पहिर संग्राम के अभिलाषी नानाप्रकार बाहनपर आरूढ अनेक आयधोंके धरणहारे पूर्वोपार्जित कर्मसे महाक्रोधरूप परस्पर युद्ध करते भये, चक्र करौंत कुठार धनुषवाण खड्ग लोहयष्टि वज़ मुगदर कनक परिध इत्यादि अनेक आयुधनिकर परस्पर युद्ध भया, घोडनिके असवार घाडेके असवारों से लडने लगे, हाथियोंके असवार हाथियोंके असवारोंसे, रथके रथियोंसे महावीर लडने लगे, मिहोंके असवार सिंहोंके अस. वारोंसे. पयादे पयादोंसे भिडते भये । बहुत देरमें कपिध्वजोंकी सेना राक्षसोंके योधावोंसे दवी तब नल नील संग्राम करने लगे सो इनके युद्धकर राक्षसनिकी सेना चिगी तब लंकेश्वरके योधा समुद्र की कल्लोल सारिखे चंचल अपनी सेनाको कंपायमान देख विद्युद्वचन मारच चन्द्रार्क सुखसारण कृतांत मृत्यु भूननाद संकोषन इत्यादि महा सामन्त अपनी सेनाको धीर्य बंधायकर कपिध्वजोंकी सेनाको दवावते भये । तब मर्कटवंशी योधा अपनी सेनाको चिगी जान हजारां यद्धको उठे, सो उठोही नाना प्रकारके आयुधनिकर राक्षसनिकी सेना को हणते भये, अति उदार है चेष्टा जिनकी, तब रावण अपनी सेनारूप समुद्रको कपिध्वजरूप प्रलय कालकी अग्नि
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