________________
पल-पुराण प्राप्त भए तव मेघवाहनने भामण्डलको नागपाशसे पकडा मायामई सर्प सर्व अंगमें लिपट गए जैसे चन्दनके वृक्षके नाग लिपट जाय कैसे हैं नाग ? भयंकर जे फण तिनकर महा विकराल हैं भामडएल पृथिवीपर पडा अर याही भांति इन्द्रजीतने सुग्रीवको नागपाशकर पकडा सो धरती पर पडा।
तब विभीषण जो विद्याबलमें महाप्रवीण, श्रीराम लक्ष्मणसे दोनों हाथ जोड सीस नवाय कहता भया-हे राम महाबाहो ! महावीर इन्द्रजीतके बाणोंसे व्याप्त सब दिशा देखों धरती आकाश वाणोंसे आच्छादित है, उल्कापातके स्वरूप नागवाण तिनसे सुग्रीव अर भामण्डल दोनों भूमिविणे बंधे पडे हैं मंदोदरीके दोनों पुत्रोंने दोनो महाभट पकडे अपनी सेनाके जेदोनों मूल हुते वे पडे गए, तब हमारे जीवनेसे कहा इन विना सेना शिथिल होय गई है, देखो दशों दिशाको लोक भागे हैं पर कभकर्णने महा युद्धकर हनूमानको पकडा है कुम्भकरणके बाणोंसे हनूमान जरजरे भए, छत्र उड गए, ध्वजा उड गई धनुष टूटा वक्तर टूटा रावण के पुत्र इन्द्रजीत भर मेघवाहन युद्ध में लग रहे है अब वे आयकर सुपीव भामण्डल को ले जायगे सो वे न लेजावे तासे पहिले श्राप उनको ले पावें । वे दोनों चेष्टारहित हैं सो मैं उनके लेवनेको जाऊहूँ अर श्राप भामण्डल सुग्रीवकी सेना निर्नाथ होय गई है सो ताहि थांभो या भांति विभीषण राम लक्ष्मणसे कहे है ताही समय सुग्रीव का पुत्र अंग छाने २ कुम्भकर्ण पर गया अर ताका उत्तरासनवस्त्र परे किया सो लज्जाके भारकर व्याकल भया वस्त्रको थामे तौलग हनूमान इसकी भुजाफांससे निकसि गया जैसा नवा पकडा पक्षी पिंजरेसे निकम जाय । हनुमान नवीन जन्मको धर अर अंगद दोनों एक विमान बैठे ऐसे शोभते भए मानों देव ही हैं अर अंगदका भाई अंग अर चंद्रोदयका पुत्र विर धित इन सहित लक्ष्मण सग्रीवकी अर भामण्डलकी सेनाको धैय बंधाय थांभते भए अर विभीषण इन्द्रजीत मेवबाहन पर गया सो विभीषणको आवता देख इन्द्रजीत मनमें विचारता भया जो न्याय विचारिए तो हमारे पितामें अर इनमें कहा भेद है ? तातें इनके सन्मुख लडना उचित नाहीं सो याके सन्मुख खडान रहना यही योग्य है अरे ये दोनों भामण्डल सुग्रीव नागपाशमें बंधे सो निःसंदेह मृत्युको प्राप्त भए अर काकासे भाजिए तो दोष नाही ऐका विचार दोनों भाई महा अभिमानी न्यायके वेत्ता विभीषणसे टरि गए अर विभीष त्रिशनका है आयुध जिसके रथसे उतर सुग्रीव भामण्डलके समीय गया सो दोनों को नागपाशसे मूर्छित देख खेद खिन्न होता भया तब लक्ष्मण ने राम से कही हे नाथ ! ए दोनों विद्या धरोंके अधिपते महासेन के स्वामी महा शक्तिके धनी भामण्डल सुग्रीव रावणके पुत्रोंने शक्तिरहित कीए मूर्छि होय पड़े हैं मी इन वगैर आप रावण को कैसे जीतेंगे तब रामको पुण्यके उदयतें गरुडेंद्रने वर दिया हुता सो चितारा, लक्ष्मण राम कहते भए
हे भाई ! वंशस्थल गिरिपर देशभूषण कुलभूषण मुनिका उपसर्ग निवारा ता समय गरुडेंद्रने वर दिया हुता ऐसा कह महालोचन रामने गरुडेंद्रको चितारा सो सुख अवस्थाविर्षे लिष्ठे था सो सिंहासन कम्पायमान भया तब अवधिकर राम लदमणको काम जान चिंतावेग नामा देवको दोय विद्या देय पठाया सो आयकर बहुत आदरसे राम लक्ष्मणसे मिजा भर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org