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साठवा पव
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निश्चित होवें मै आपकी आज्ञा प्रमाण करूंगा । ऐसा कहकर महाहर्षित भया पर्वत समान त्रैलोक्यकंटक नामा गजेंद्रपर चढ युद्धको उद्यमी भला कैसा है गजेन्द्र, इन्द्रके गज समान अर इन्द्रजीतको अतिप्रिय अपना सब साज लेय मंत्रियों पति ऋद्धि इंद्र मन रावण का पुत्र कपियोंपर क्रूर भया सो महालका स्वामी मानी थाना प्रमाण ही वानरवशियोंका बल अनेक प्रकार आयुधोसे जो पूर्ण हुता सो सब विह्वल किया । सुग्रीत्रकी सेना में ऐसा सुभट कोई न रहा जो इन्द्रजीत के वाणनिकर घायल न भया । लोक जानते भए जो यह इंद्रजीत कुमार नाही अग्निकुमारों का इन्द्र है थवा सूर्य है । सुग्रीव पर भामंडल ये दोऊ अपनी सेनाको इंद्रजीत कर दबी देख युद्धको उद्यमी भए । इनके योधा इन्द्रजीत के योधानिसे अर ये दोनो इन्द्रजीत से युद्ध करने लगे तो परस्पर योवा योधावोंको हंकार हंकार बुलावते भए । शस्त्रोंसे आकाशमें अंधकार होय गया, योधावोंके जीनकी आशा नहीं, गजसे गज, रथसे रथ, तुरंगसे तुरंग, सामंतोंसे सामंत उत्साहकर युद्ध करते भए । अपने अपने नाथके अनुरागविषै योधा परस्पर अनेक आयुधनिकर प्रहार करते भए । ताही समय इन्द्रजीत सुग्रीवको समीप आया देख ऊंचे स्वरकर अपूर्व शस्त्ररूप दुर्वचननिकर छेदता भया - अरे वानरवंशी पापी स्वामिद्रोही ! रावण से स्वामीको तज स्वामी के शत्रुका किंकर भवा । अब मुझसे कहां जायगा तेरे शिरको तीक्ष्ण बाणनिकर तत्काल छेदूंगा । वे दोनों भाई भूमिगोचरी तेरी रक्षा करें । तब सुग्रीव कहता भया - ऐसे वृथा गर्व के वचन कर कहा तू मानशिखर पर चढा है सो रही तेरा मान भंग करू ंगा । जब ऐसा कहा तब इन्द्रजीतने कोपकर धनुष चढाया बाण चलाया
र सुग्रीवने इन्द्रजीत पर चलाया दोनों महा योथा परस्पर बाणनिकर लडते भए, आकाश बाणोंसे आच्छादित होय गया। मेघवाहनने भामण्डलको हंकारा सो दोनों भिडे अर विराधित अर वज्रनक्र युद्ध करते भए सो विराधितने वज्र क्र के उरस्थल में चक्रनामा शस्त्रकी दई र वज्रकने विराधितदई, शूरवीर घात पाय शत्रुघाव न करें तो लज्जा है, चक्रोंसे वक्तर पीसे गए तिनके अग्निकी कणका उछली सो मानों आकाशसे उलकाओंके समूह पडे हैं। लंकानाथ के पुत्रने सुग्रीवपै अनेक शस्त्र चलाए । लंकेश्वर के पुत्र संग्राममें अचल हैं जा समान दूजा योध नाहीं, तत्र सुर्य वने वज्रदंडसे इन्द्रजीत के शस्त्र निराकरण किए। जिनके पुण्यका उदय है तिनका घात न होय फिर क्रोधकर इन्द्रजीत हाथीसे उतर सिंहके रथ चढा समाधानरूप हैं बुद्धिजाकी नानाप्रकारके दिव्य शस्त्र अर सामान्यशस्त्र इनमें प्रवीण सुग्रीव पर मेघवाण चलाया सो संपूर्ण दिशा जलरूप होय गई तब सुग्रीवने पवनवाण चलाया सो मेघवारा बिलाय गया अर इंद्रजीतकाछत्र उडाया अर ध्वजा उडाई अर मेघवाहननं भामंडल पर अग्निबाण चलाया सो भामडलका धनुष भस्म होय गया अर सेना में अग्नि प्रज्वलित भई तब भामंडलने मेघबहनपर मेघवाण चलामा सो अग्निवाण विलाय गया अर अपनी सेनाकी बहुरि रक्षा करी । मेघवाहनने भामंडलको रथरहित किया तब भामंडल दूजे रथ चढ़ युद्ध करने लगा। मेघवाहनने तामसवाण चलाया सो भामण्डलकी सेना में अंधकार होय गया अपना पराया कुछ सूझे नाही मानोंमूर्छाको
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