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पद्म पुराण तीत्र तप कर शरीर कृश किया कुज्ञानके अधिकारी दोनो मूए सो विजिया की दक्षिण श्रेणिमें अरिंजयपुर, तहां का राजा अग्निकुमार राणी अश्विनी ताके ये दोय पुत्र जगत् प्रसिद्ध रावणके सेनापति भए अर ते दोनों भाई इंधक अर पल्लव देवलोकतें चयकर मनुष्य ए बहुरि श्रावकके व्रत पाल स्वर्गमें उत्तर दे भए पर स्वर्गत चयकर किसकंधापुर विौं नल नील दोनों भाई भए। पहिले हस्त प्रहस्तके जीवने नल नीलके जीव मारे हुने सो नल नीलने हस्त प्रहम्त मारे जो काहुको मारे है सो ताकर मारा जाय है पर जो काहूको पाले है सो ताकर पालिए है अर जो जास उदासीन रहे है मो भी तासू उदासीन रहे । जाहि देख नि:कारण क्रोथ उपजे सो जानिए परभवका शत्रु है अर जाहि देख चित्त हर्षित होय सो नि[संह पर भवका मित्र है, जो जलविङ्ग जहाज फट जाय है अर मगर मच्छादि बाधा करे हैं अर थलविणे म्लेछ बाधा करे हैं सो सब पापका फल है। पहाडसमान माते हाथी पर नानाप्रकारके आयुध धर अनक योधा अर महा तेजको धरें अनेक तुरंग अर वक्तर पहिरे बडे बडे सामंत इत्यादि जो अपार सेनासे युक्त जो राजा अर निःप्रमाद तो भी पुण्यके उदयविना युद्ध में शरीरकी रक्षा न होय गके घर जहां तहां तिष्ठता अर जाके कोऊ सहाई नाहीं ताकी उप अर दान रक्षा करें, न देव सहाई न बांधव सहाई अर प्रत्यक्ष देखिए है, धनवान् शूरवीर कुटुम्बका धनी सर्व कुटुम्बके मध्य मरण करे है कोऊ रक्षा करने समर्थ नाहीं पात्रदा-से व्रत अर शील अर सम्यक्त अर जीवोंकी रक्षा होय है । दयादानसे जाने धर्म न उपार्जा अर बहुत काल जीया चाहे सो कैसे बने ? इन जीवनिके कर्म तप विना न विनशें ऐका जानकर जो पंडित है तिनको बेरीयों पर भी क्षमा करनी। क्षमा समान और तप नाही, जे विचक्षण पुरुष है वे ऐनी बुद्धि न धरें कि यह दुष्ट विगाड करें है। या जीवका उपकार अर लिगाड केवल कर्माधीन है कर्म ही सुख दुःश्व का कारण है । ऐसा जानकर जे विचक्षण पुरुष हैं ते बाह्य सुख दुःखके निमित्त कारण अन्य पुरुषों पर राग द्वेष भाव न धरें। अन्धकारसे आच्छादित जी पंथ तामें नेत्रवान् पृथिवीपर पडे सप पर पग थर अर सूर्य के प्रकाशसे मार्ग प्रकट होय तब नत्रवान् सुखसे गमन करे तैसे जो लग मिथ्यात्वरूप अन्धकारसे मार्ग नाही अवलोके तौलग नरकादि विवरमें पडै अर जब ज्ञान सूर्यका उद्योत होय तब सुखसे अविनाशीपुर जाय पहुंचें ॥ इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापमपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनिकाविषै हस्त प्रहस्त नल नीलके पूर्वभवका वर्णन करनेवाला उनसठनो पर्वा पण भया ।। ५६ ।।
-०()अथानन्तर हस्त प्रहस्त, नल नीलने हते सुन बहुत योधा क्रोधकर युद्धको उद्यमी भये । मारीच सिंहजघन स्वयंभू शंभू ऊर्जित शुक सारण चन्द्र अर्क जगत्वीभत्स निस्वन ज्वर उग्र क्रमकर बज्राक्ष आत्मनिष्ठुर गंभीरनाद संनद संवृद्ध वाहू अनुचिदन इत्यादि राक्षस पक्षके योधा वानरवंशियोंकी सेनाको क्षोभ उपजायते भये । तिनको प्रबल जान बानरबंशियोंके मेधा युद्ध को उद्यमी भये। मदन मदनांकुर संताप प्रथित आक्रोश नन्दन दुरित अनष पुष्पास्त्र विघ्न प्रियं
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