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________________ साठा पर्व ३६५ कर इत्यादि अनेक वानरवंशी योधा राक्षसोंसे लडते भये । याने वाको ऊंचे स्वरसे बुलाया वाने याको बुलाया इनके परस्पर संग्राम भया, नाना प्रकार के शात्रों से आकाश व्याप्त होय गया । संताप तो मारी से लडता भया र प्रथेन सिंहजवनसे पर विघ्न उद्यानसे पर आक्रोश सार से ज्वर नन्दनसे इन समान योधावों में अद्भुत युद्ध भया तब मारीचने संतापका निपात किया अर नन्दनने ज्वरके वक्षस्थल में बरछी दई अर सिंहकटिने प्रथितके अर उद्यामकीर्तिने विघ्नको हा । ता समय सूर्य अस्त भया अपने अपने पतिको प्राणरहित भये सुन इनकी स्त्री शोकके सागर में मग्न भई सो उनकी रात्रि दीर्घ होती भई । दूजे दिन महा क्रोध भरे सामन्त युद्धको उद्यमी भये वज्राक्ष पर क्षुभितार मृगेन्द्रदमन अरविधि शंभू र स्वयम्भू चन्द्रार्क श्रर वज्रीदर इत्यादि राक्षस पक्ष के बड़े २ सामन्त भर वानरवंशियोंके सामन्त परस्पर जन्मान्तर के उपार्जित वैर तिनसे महा क्रोधरूप होय युद्ध करते भये । अपने जीवन में निस्पृह संक्रोधने महाक्रोध कर चिपितारको महा ऊंचा स्वरकर बुलाया बाहुवलीने मृगारिदमनको बुलाया और वितापीने विधिको बुलाया इत्यादि योथा परस्पर युद्ध करते भये र योधा अनेक मृए शार्दूलने बोदरको घायल किया अर खिपितार संकोको मारता भया अर शंभूने विशालद्युति मारा र स्वयम्भूने विजयको लोहयष्टिसे मारा श्रर विधिने विद्यापीको गासे मारा । बहुत कष्टसे या भांति योधाोंने युद्धमें अनेक योधा हते सो बहुत बेर तक युद्ध भया । राजा सुग्रीव अपनी सेनाको राक्षसोंकी सेनासे खेद खिन्न देख थाप महा क्रोधका भरा युद्ध करनेको उद्यमी भया तत्र अंजनी का पुत्र हनुमान हाथियोंके रथपर चढा राक्षसोंसे युद्ध करता भया सो राक्षसों के सामन्तोंके समूह पवनपुत्रको देखकर जैसे नाहरको देख गाय डरे तैसे डरते मये अर राक्षस परस्पर बात करते भये कि यह हनूमान वानर ज श्रज घनोंकी स्त्रीनिकू' विधवा करेगा, तब याके सन्मुख माली आया ताहि आया देख हनूमान धनुष में वारा तान सन्मुख भये विन में महायुद्ध भयः । मंत्री मन्त्रियोंसे लडने लगे, रथी रथियोंसे लडने लगे, घोडोंके असवार घोडोंके सवारोंसे लडते भये, हथियां सवार हाथियों के अमबारोंसे लडते भये । सो हनूमानकी शक्तिये माली पराङ्मुख भया । तब बजूोदर महा पराक्रती हनुमानपर दौडा, युद्ध करता भया चिरकाल युद्ध भया सो हनूमानने बजीरको स्थरहित किया, तब वह और दूजे रथपर चढ हन्मानपर दौड़ा तब हनूमानने बहुरे ताको रथरहित किया तब बहुरि पवन से अधिक है जाका ऐसे रथवरचढ हनुमानपर दौड़ा तब हनूमानने ताहि हता सो प्राणरहित भया । तब हनूमानके सन्मुख महा बलवान रावणका पुत्र जम्बूमाली आया सो आवता ही हनूमानकी ध्वजा छेद करता भया तब हनूमानने क्रोवसे जम्बूालीका वक्तर भेदा, धनुष तोड डारा जैसे. तृणको तांडें । तब मंदोदरीका पुत्र नवा वक्तर पहिर हनूमानके वक्षस्थल में तीक्ष्ण वाणोंसे वाव करता भया मो हनूमानने ऐसा जना मानो नवीन कमलकी नालिकाका स्पर्श मया । कैसा है हनुमान ९ पर्वत समान निश्चल है बुद्धि जाकी, बहुरि हनुमानने चन्द्राक्र नामा बाण चलाया Jain Education International For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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