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उनसठ पर्व योधयोंका भंग देखकर राक्षसोंके योधाओं को हणते भए अर अपने योधाओं को धीर्य बंधाया । वानरवंशियोंके आगे लंकाके लोकों को चिगते देख बडे २ स्वामी भक्त रावणके अनुरागी महा बज्ञसे मण्डित हाथियोंके चिन्हकी हैं ध्वजा जिनके, हाथियोंके रथ चढ़े, महा योधा हस्त प्रहस्त वानरवंशियोंपर दोड़े अर अपने लोगों को धीर्य बंधाया- हो सामंतो ! भय मत करो । हस्त प्रहस्त दोनों महा तेजस्वी वानरवंशियोंके योधाओं को भगावते भए तब बानरवंशियोंके नायक महाप्रतापी हाथियोके रथ चढ़े महा शूरवीर परम तेजके धारक सुग्रीवके काकाके पुत्र नल नील महा भयंकर क्रोधायमान होय नाना प्रकारके शस्त्रनि कर युद्ध करनेको उद्यमी भए । अनेक प्रकार शस्त्रोंसे घनीवेर युद्ध भया दोनों तरफसे अनेक योधा मुवे, नलने उछलकर हस्तको हता र नीलने प्रहस्तको हता । जब यह दोनों पड़े तब राक्षमों की सेना पराङ मुख भई, गौतमस्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं - हे मगधाविपते ! सेनाके लोक सेनापति जब लग देखें तत्र लग ही ठहरें अर सेनापति के नाश भये सेना बिखर जाय जैसे मालके टूटे अरहटकी घडी बिखर जाय पर सिर विना शरीर भी न रहे । यद्यपि पुरानाधिकारी वड़े राजा सब बातमें पूर्ण हैं तथापि विना प्रधान कार्यकी सिद्धि नाहीं, प्रधान पुरुषों का संबंधकर मनवांछित कार्यकी सिद्धि होय है और प्रधान पुरुषोंके विना मन्दताको भजे हैं जैसे राहु के योगसे सूर्यको आच्छादित भये किरगोका समूह मन्द होय है ।
इति श्रीरविशेणाचायविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनवाविषै हस्त प्रहस्तका मरण गर्णन करनेवाला अठावननां पर्व पूर्ण भया ॥ ५८ ॥
अथानन्तर राजा श्रेणिक गौतम स्वामीसे पूछता भया - हे प्रभो ! हस्त प्रहस्त जैसे सामंत महाविद्यामें प्रवीण हुते बडा आश्चर्य है नल नीलने कैसे मारे ? इनके पूर्वभवका विरोध है क याही भवका ? तब गणधर देव कहते भए - हे राजन् कर्मनिकर बंधे जीव तिनकी नाना गति हैं, पूर्व कर्म के प्रभावकर जीवोंकी यही रीति है जाने जाको मारा सो वह हू ताको मारनहोरा है अर जाने जाको छुडाया सो ताका छुडावनहारा है । या लोकमें यही मर्यादा है । एक कुशस्थल नामा नगर वहां दोय भाई निर्धन, एक माताके पुत्र ईंधक अर पल्लव ब्राह्मण खेतीका कर्म करें, पुत्र स्त्री आदि जिनके कुटुम्ब बहुत स्वभावहीसे दयावान साधुनिकी निंदातें पराङमुख सो एक जैनी मित्रके प्रसंगत दानादि धर्मके धारक भए अर एक दूजा निर्धन युगल सो महा निर्दई मिथ्यामार्गी हुते राजाके दान बटा सो विप्रो में परस्पर कलह भया सो इंधक पल्लवको इन दुष्टोंने मारा सो दानके प्रसादतैं मध्यभोग भूमिमें उपजे दोय पल्यकी श्रायुपाय ए सो देव भए अर वे क्रूर इनके मारणहारे अधर्म परणामनिकर मूत्रे सो कालिंजर नामा वनमें स्या भए मिध्यादृष्टि साधुनिके निंदक पापी कपटी तिनकी यही गति है बहुरि तिर्यंचगति में चिरकाल भ्रमण कर मनुष्य भए सो तापसी भए, वढी हैं जटा जिनके, फल पत्रादिकके आहारी
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