SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ पंध्र-पुराण अथानन्तर समुद्र समान रावणकी सेनाको देख नल नील हनूमान जामवंत आदि अनेक विद्याधर रामके हित रामके कार्य को तत्पर महा उदार शूरवीर अनेक प्रकार हाथियोंके रथ चढ़े कटकतें निकसे । जयमित्र, चंद्रप्रभ, रतिवर्द्धन, महेंद्र, भानुमंडल, अनुधर, दृढरथ, प्रीतिकंठ, महावल, समुन्नतबल, सर्वज्योति, सवप्रिय, बलसर्वसार, सर्वद शरमभर, अभ्रष्टि, निविष्ट संत्रास, विघ्नसूदन, नाद, बरबर, कलट, पालन, मंडल, संग्राम, चपल इत्यादि विद्याधर नाहरोंके रथ चढ निकपे । विस्तीर्ण है तेन जिनका नाना प्रकारके आयुथ धरे अर महासामंतपनेका स्वरूप लिए, प्रस्तार हिमवान गंग पिय लव इत्यादि सुपट हाथियोंके रथ चढ़ नि से । दुष्ट पूर्णचन्द्र विधिसागर घोष प्रियविग्रह स्कंध चंदन पादप चंद्रकिरण अर प्रतिघात महाभैरव कीर्तन दुष्टसिह कटष्ट समाधि बहुल हल इन्द्रायु। गतत्रास संकटमहार ये नाहरनिके रथ चढे निकसे । विद्युतकर्ण बलशील सुपक्ष धन धन संमेद विचल साल काल क्षत्रवर अंगज विकाल लाल कंकाली भंग भंगोमिः उरचित उत्तरंग तिलक कील सुषेण तरल करतवली भीमरव धर्म मनोहरमुख सुबप्रपत मर्दक मनसार रत्नजडी सिवभूषण दूषण कौल निघट बिराधित मनूरण खनिक्षेम बेला आक्षेपी महाधीर नक्षत्र लुब्ध संग्राम विजय जय नक्षत्रमाल क्षोद अतिविनय इत्यादि घोडोंके रथ चड़े निकसे। कैले हैं रथ ? मनोरथ समान शीघ्र वेगको धरे अर विद्युत वाहन मरुद्वाह स्थाणु मेघवाहन रबियाण प्रचंडालि इत्यादि नाना प्रकारके वाहनोंपर चढ़े युद्ध की श्रद्धाका धरे हन्मानके संग किसे अर विभाषण. रावणका भाई रत्नप्रभ नामा विमानपर चढ़ा, श्रीरामका पदी अति शोभता भया अर युधावर्त बसंत कांत कौमुदि नंदन भूरिकोलाहल हेड भावित साधुवत्सल अर्थचंद्र जिन प्रेमसागर सागर उरग मनोग्य जिन जिनपति इत्यादि योवा नाना वर्णाक विमानों पर चढे महाप्रवल सन्नाह कहिए बखतर पहिर युद्धको निकसे । राम चन्द्र लक्ष्मण सुग्रीव हनूमान ये हंस विमान चढे, जिनके आकाशविर्षे शोभते भए । रामके सुभट महा मेघमाला सारिखे नाना प्रकारके वाहन चढे लंकाके सुभटोंसे लडनेको उद्यमी भए, प्रलय कालके मेष समान भयंकर शब्द शंख आदि वादित्रनिके शब्द होते भए, जंझा भेरी मृदंग कंपाल धुधुमंदय आमलताके हुंकार दूकान ऊ'दर हे गुज काहल वीणा इत्यादि अनेक बाजे बाजते भए अर सिंहोंके तथा हाथियोंक घाडोंके भैंसोंके रथाके ऊंटों मृगों पक्षियोंके शब्द होते भए । तिनसे दशों दिशा व्याप्त भई । जब राम रावणकी सेना का संघट्ट भया तब समस्त लोक जीवन के संदेहको प्राप्त भए । पृथिवी कंपायमान भई, पहाड कांपे, योधा गर्वके भरे निग से निकसे । दोनों कट अति प्रवल लखिवेमें न अावें । इन दोनों सेनामें युद्ध होने लगा. सामान्य चक्र करोंत कुठार सेल खड्ग गदा शक्ति वाण भिडिपाल इत्यादि अनेक आयुधोंसे परस्पर युद्ध होता भया । योधा हेलाकर योवानोंको बुलावते भए, कैसे हैं योद्धा ? शस्त्रोसे शोभित हैं भुजा जिनकी अर युद्ध का है सर्व साज जिनके ऐसे योधावों पर पडते भए । अति वेगसे दौड, पर सेनामें प्रवेश करते भए, परस्पर अति युद्ध भया । लंकाके योधाओंने वानरवंशीयोंके प्रवल योधा दवाये जैसे सिंह गनोंको दबावे । बहुरि वानरवशियोंके प्रवल योधा अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy