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सत्तावनवां पर्ण मंडित शुक अर सारण चांद सूर्य सारिखे गज अर घीभत्स तथा वज्रान बज्रभूति गम्भीरनाद नक्र मकर वज्रयोष उग्रनाद मुन्दर निकुम्भ कुंभ संध्याक्ष विभ्रम क्रूर माल्यवान खर निश्वस जम्बू माली शिखि वीर उद्वर्तक महायल यह सामंत नाहरोंके रथचढे निकसे अर वज्रोदर शक्रप्रभ कृतान्त विकटोदर महारवि अशनिघोष चन्द्र चन्द्रनख मृत्युभीषण वज्रोदर धूम्राक्ष मुदित विद्यज्जिह महा मारीच कनक क्रोधन थोमण द्वन्द्व उद्दम डिंडि डिडिम डिभव प्रचंड डमर चंड कुंड हलाहल इत्यादि अनेक राजा व्याघ्रोंके रथ चढे निकसे । वह कहै मैं आगे रहूँ वह कहे मैं आगे रहूं। शत्रुके विध्वंस करनेको है प्रवृत्त बुद्धि जिनकी, विद्याकौशिक विद्याविख्यात सर्पवा हू महाधुति शंखप्रशंख राजभिन्न अंजनप्रम पुष्पचूड महारक्त घटाश्रु पुष्पखेचर अनंगकुम्म कामाव स्मरायण कामाग्नि कामराशि कनकप्रभ शशिमुख सौम्यबक्त्र महाकाम हेमगौर यह पवन सारिखे तेज तुरंगों के रथ पर चढे निकसे घर कदंब विटप भीम भीमनाद भयानक शार्दूल सिंह बलांग विद्यदंग न्हादन चपल चोल चंचल इन्यादि हाथियोंके रथ चढे निकसे । गौतम स्वामी राजा श्रोणक कहे हैं-हे मग गाधिपति ! कहां लग सामगों के नाम कहें सबनिमें अग्रेसर अढाईकोडि निर्मलपंशके उपजे राक्षसोंके कुमार देवकुमार तुल्य पराक्रमी प्रसिद्ध हैं यश जिनके सकलगुणों के मंडल युद्धको निकसे, अर महा बलवान मेधवाहन कुमार इन्द्र समान रावणका पुत्र अतिप्रिय इ. न्द्रजीत सो भी निकसा । जयंतसमान धीरबुद्धि कुम्भकरण सूर्यके विमान तुन्य ज्योति प्रभव नामा विमान ता विष प्रारूढ त्रिशूलका आयुथ थरं निकसा अर रावण भी सुमेरुके शिखर तुल्य पुष्पक नामा अपनेविमान पर चढ इन्द्र तुल्य पराक्रम मियका सेना कर आकाश भूमिको आच्छादित करता संता दैदीप्यमान आयुधोंको धरै सूर्य समान है ज्योति जाकी सोहू अनंक सामंतनिसहित लंकासे वाहिर निकसा । ते सामन्त शीघ्रगामी बहुरूपके धरणहारे वाहनों पर चढे, कैयकोंके गंथ कैयकों के तुरंग कैयकोंके हाथी कैयकोंके सिंह तथा शूरसांभर बलय भैसा उठ मीढा मृग अष्टापद इत्यादि स्थल के जीव अर मगर मच्छ आदि अनेक जलके जीव अर नाना प्रकारके पक्ष। तिनका रूप धरे देवरूपी बाहन तिनपर चढे अनेक योधा रावणके साथ निकसे । भामंडल अर सुग्रीव पर रावणका अतिक्रोष जो राक्षसवंशीनसों युद्धको उद्यमी भए । रावणको पयान करते अनेक अपशकुन भए । तिनका वर्णन सुनो-दाहिने तरफ शन्यकी कहिए सेही मंडलको बांधे भयानक शब्द करती प्रयाणको निवारण करे है अर गृद्ध पक्षी भयंकर अपशब्द करते आकाशविषै भ्रमते मानों रावणका क्षय ही कहे हैं । अन्यहूं अनेक अपशकुन भए स्थलके जीव आकाशके जीव व्याकुल भए क्रूर शब्द करते भए रुदन करते भये, यद्यपि राक्षसोंके समूह सव ही पंडित हैं, शास्त्रका विचार जानें हैं तथापि शरवीरताके गर्वकर मृढ भए महासेनासहित संग्रामके अर्थी निकसे । काँके उदय जीवनिका जब काल आवे हैं तब अवश्य ऐसा ही कारण होय है। कालको इन्द्र भी निवारिवे शक्त नहीं औरनकी कहा. बात ? वे राक्षसवंशी योधा बडे २ वलवान युद्धविष दिया है चित्त जिनने, अनेक बाहनोंपर चढे नाना प्रकारके आयुध धरे अनेक अपशकुन भए तो भी न गिने, निर्भय भए रामकी सेनाके सन्मुख पाए । इति श्रीरविषेणाचार्यविरवित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ ताकी भाषा वचनिकाविणै रावणकी सेना लंकासे
निकास युद्धके अर्थ आबनेका व्याख्यान करनेवाला सत्तावनवा पर्व पूर्ण भया ।।५७॥ .
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