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________________ हिरेपनवां पर्ण हे भाई, मैं दुःखके सागरविष पडी हूं अशुभके उदयकरि, पतिके समाचार सुन तुष्टायमान भई तोहि कहा हूँ ? तब हनूमान प्रणामकर कहता भया--हे जगत्पूज्ये, तिहारे दर्शन ही से मोहि महा लाभ भया तब सीता मोती समान आंसुनिकी बूंद नाखती हनूमानसे पूछती भई-हे भाई, यह मगर ग्राह आदि अनेक चलचरोंकर भरा महा भयानक समुद्र ताहि उलंवकर तू कैसे आया अर सांच कहो मेरा प्राणनाथ तेंने कहां देखा पर लक्ष्मण युद्धविष गया हुता सो कुशल क्षेमसे है अर मेरा नाथ कदाचित् तोहि यह संदेशा कहकर परलोक प्राप्त हुवा होय अथवा जिनमार्गविष महा प्रवीण सकल परिग्रहका त्यागकर तर कन्ता होय अथवा मेरे वियोंगसे शरीर शिथिल होय गया होय अा अंगुरीतें मुद्रका गिर पडी होय यह मेरे विकल्प हैं, अब तक मेरे प्रभुका तोसों परिचय न हुता सा कौन भांति मित्रता भई सो सब मोसू विशपताकर कहो । तब हनूमान हाथ जोड सिर निवाय कहता भया-हे देवी, सूर्यहास खड़ग लक्ष्मण को सिद्ध भया और चन्द्रनखाने धनीपै जाय धनीको क्रोध उपजाया सो खरदूषण दण्डकवनविष युद्ध करने को आया अर लक्ष्मण उमसे युद्ध करनेको गऐ सो तो सव वृत्तांत तुम जानो हो बहुरि रावण आया पर आप श्रीरामके पास विराजती हुतीं सो रावण यद्यपि सर्व शास्त्रका वेत्ता हुता अर धर्म अधर्मका स्वरूप जाने हुना परंतु आपको देखकर अविवेकी होय गमा समस्त नीति भूल गया, बुद्धि जाती रही तिहारे हरनेके कारण कपट र सिंहनाद किया सो सुनकर राम लक्ष्मणपै गए अर यह पापी तुमको हर ले आया बहुरि लक्षाण रामसू कही-तुम क्यों आए, शीघ्र जानकीपै जावो तब आप स्थानक आए तुमको न देखकर म्ह खेदखिन्न भए । तिहारे इंढनेके कारण वनविष बहुन भ्रमे बहुरि जटायुको मरते देखा तब त हि नमोकार मंत्र दिया अर चार आराधना सुनाय सन्यास देय पक्षीका परलोक सुधारा बहुरि तिहारे विहिवर महादुखी सोचसे परे अर लक्ष्मण ख दूषगका हन राम आया, धर्य बंधाया अर च द्रोदयका पुत्र विराधित लक्ष्मणसे युद्ध ही विष आय मिला हुला ६हुरि सुग्रीव राम मैं आया अर साहसमति विद्याधर जो सुग्रीवका रूपकर सुग्रीवकी स्त्रीका अर्थी भया हुता सो रामको देख साहसगतिकी विद्या जाती रही सुग्रीवका रूप मिटगया अर साहसनति रामसे लडा सो साहसगति को रामने मारा सुग्रीवका उपकार किया तब सबने मोहि बुलाय रामसू मिला। अब मैं श्रीरामका पठाया तिहारे छुड इचे अर्थ यहां आया हूं, परस्पर द्ध करना निःप्रयोजन है कार्यकी सिद्धि सर्वथा नयकर करना अर लंकापुरीका नाथ दयावान है विनयवान् है धर्म अर्थ कामका वेत्ता है कोमल हृदय है सौम्य है वक्रतारहित है सत्यवादी महाधीरवीर है सो मेरा वरन मानेगा तोहि रामपै पठावेगा। याकी कीर्ति महा निर्मल पृथिवीमि प्रसिद्ध है और यह लोकापवादतें डर है तब सीता हर्षित होय हनूमानसे कहती भई-हे कपिध्वज, तो सरीखे पराक्रमी धीरवीर विनयवान मेरे पतिके निकट केतक हैं ? तब मन्दोदरी कहती मई-हे जानकी, तें यह कहा समझकर कही। तू याहि न जाने है तातें ऐसा पूछे है या सरीखा भरतक्षेत्रमें कौन है या में यह एक ही है। यह महासुभट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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