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________________ पन राण है तो भी इस समान कोई नारी नाहीं । मैं जैसे होय तैसे श्रीरामसे मिलाऊ इसके और रामके काज अपना तन दूं याका और रामका विरह न देखू यह चितवन कर अपना रूप फेर मंद मंद पांव थरता हनूमान आगे जाय श्रीरामकी मुद्रिका सीताके पास डारी सो शीघ्र उसे देख रोमांच होय आये और कछू इक मुख हर्षित भया सो समीप बैठी थी जो नारी वे इसकी प्रसन्नता के समाचार जाय कर रावणको कहती भई सो वह तुष्टायमान होय इनको वस्त्र रत्नादिक देता भया और सीताको प्रसन्न वदन जान कायकी सिद्धि चिंतता भया सो मन्दोदरीको सर्व अंत:पुर सहित सीतापै पठाई सो आने नाथके वचनसे सर्व अंतःपुर सहित सीता पै आई सो सीता को मन्दोदरी कहती भई हे बाले! आज तू पसन्न भई सुनी सो तैने हमार बडी कृपा करी अब लोकका स्वामी रारण उसे अंगीकार कर जैसे देव लोककी लक्ष्मी इन्द्रको भजे । ये वचन सुन सीता कोपकर मन्दोदरीसे कहती भई-हे खेवरी, आज मेरे पति की वार्ता आई है मेरे पति प्रानन्दसे हैं इसलिये मोहि हर्ष उपजा है तब मन्दोदरी ने जानी इसे विना अन्न जल किये ग्यारह दिन हो गये सो वायसे वकै है तब सीता मुद्रिका ल्यावनहारेसे कहती भई-हे भाई ! मैं इस समुद्र के अंतर्वीप में भयानक वनमें पड़ी हूं सा कोऊ उत्तम जीव मेरा भाई समान अति वात्सल्य थारखहारा मेरे पतिकी मुद्रिका लेय आया है सो प्रगट दर्शन देवे तब हनूमान हा भव्य जीव सीताका अभिप्राय जान मनमें विचारता भया जो पहिले पराया उपकार विचारे बहुरि अति कायर होय छिप रहे सो अधम पुरुष है अर जे पर जीवको आपदामें खेद खिन्न देख पराई सहाय करे तिन दयावन्तोंका जन्म सफल है तब समस्त रावणकी स्त्री मन्दोदरी आदि देखे हैं अर दर हीसे सीताको देख हाथ जोड सीस निवाय नमस्कार करता भया, कैसा है हनूमान ? महा निशंक कांति कर चंद्रमा समान, दीप्तिकर सूर्य समान वस्त्र प्राभरण कर मण्डित रूप कर अतुल्य मुकुटमें वानर का चिह्न बन्दन कर चर्चित सर्व अंग जाका, महा बलवान बनवृषमनारासंहनन सुन्दर केश रक्त होठ कुंडलके उद्योतसे महाप्रकाशरूप मनोहर मुख गुणवान महा प्रतापसं. युक्त सीताके निकट अायता कैला शोभता भय! मानों भामण्डल लेयवेको माया है प्रथम ही अपना कुल गोत्र माता का नाम सुनाय कर बहुरि अपना नाम कहा बहुरि श्रीरामने जो कहा हुता मो सर्व कहा अर हाथ जोड विनती करी-हे साध्वी ! स्वर्ग विमान समान श्रीराम महलोंमें विराजे हैं परंतु तुम्हारे वि हरूप समुद्रमें मग्न काहू ठौर रतिको नाही पावै हैं समस्त भोगोपभोग तजे मौन धरे तिहरा ध्यान कर हैं जैसे मुनि शुद्धताको ध्यावें, एकाग्रचित तिष्ठे हैं। वे वीणाका नाद अर सुन्दर स्त्रियोंके गीत कदापि नाहीं सुने हैं अर सदा तिहारी ही कथा करे हैं तिहारे देखवेके अर्थ केवल प्राणोको धरें हैं। यह वचन हनूमानके सुन सीता आनन्दको प्राप्त भई बहुरि सजल नेत्र होय कहती भई ( सीताके निकट हनूमान महा विनयवान हाथ जोडे खडा है) जानकी बोली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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