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पद्म-पुराण युद्ध में कईबार रावणका सहाई भया है यह परनका पुत्र अंजनीका सुत रावणका भानजा जमाई है । चन्द्रनखाकी पुत्री अनंगकुसुमा परणी है या एकने अनेक जाते हैं सदा लोक याके दशनको बांछे हैं चन्द्रमा की किरणवत् याकी शीति जगत फैल रही है । लंहाका धनी याहि भाईनित भी अधिक गिने है यह हनुमान पृथिवी पर प्रसिद्ध गुणनिकर पूर्ण है परन्तु यह बडा
आश्चर्य है कि भूमिगोचरियोंका दूत होगायों है । तब हनुमानने कही-तुम राजा मयकी पुत्री अर रावण की पटराणी दूती होय कर आई हो। जा पतिके प्रसादतें देवोंकेसे सुख भोगे ताहि अकार्यविष प्रवर्तते मने नाहीं करो हो और ऐसे कार्य की अनुमोदना करो हो। अपना वल्लभ विषका भरा भोजन करे ताहि नाही निवारो हो। जो अपना भला बुरा न जाने ताका जीतव्य पशु समान है और तिहारा सौभाग्य रूप सबतें अधिक और पति परस्त्रीरंत भया ताका दूतीपन करो हो । तुम सब बातनिश्षि प्रवीण परम बुद्धिमती हुती सो प्राकृत जीवनि समान अविथि कार्य करी हो । तुम अर्ध चक्रीकी महिषी कहिये पटराणी हो सो अब मैं तुमको महिपी कहिये भैंस समान जानू हूं। यह वचन हनुमानके मुखतें सुन मन्दोदरी क्रोधरूप होय बोली-अहो तू दोषरूप है, तेरा बाचालपना रिर्थक है जो कदाचित् रावण यह बान जाने कि यहां राबका दूत होय सीताप आया है तो जो काहसे न करे ऐसी तोसें करै अर जिसने रावणका बहने चन्द्र खिाका पति मारा ताके सुग्रीवादिक सेवक भए, रावणकी सेवा छ डी सो वे मन्दबुद्धि हैं, रंक कहा करेंगे ? इनकी मृत्यु निकट आई है तातें भूमिगोचरीके सेवक भये हैं । ते अति मूढ निर्लज्ज तुच्छवृत्ति कृतघ्नी वृथा गर्वरूप होय मृन्युके समीप मिष्ठे हैं।
ये वचन मन्दोदरीकं सुनकर सीता क्रोध रूप होय कहती भई-हे मदोदरी ! तू मंदबुद्धि है जो वृथा ऐसे कहे है, से मेरा पति अद्भुत पराक्रमका धनी कहा नहीं सुना है, शूरवीर अर पण्डितोंकी गोष्ठीविष मेरा पति मुख्य गाइए है, जाके वज्रावर्त धनुषका शब्द रण संग्राम में सुनकर महा रणधीर योधा भीर्य न धारे हैं। भय से कम्पायमान होयकर दूर भागे हैं अर जाका लक्ष्मण छोटा भाई लभीका निवाल शत्रुपक्षके क्षय करनेको समर्थ जाके देखते ही शत्रु दूर भाग जावें । बहुत कहिवे कर कहा ? मेरा पति राम लक्ष्मण सहित समुद्र तरकर शीघ्र ही आवै हैं सो युद्ध में थोड़े ही दिननिविष तू अपने पतिको मूवा देखेगी। मेरा पाते प्रबल पराकमका धारी है, तू पापी भरतार की आज्ञा रूप दूती होय आई। सो शिताव ही विधवा होयगी पर बहुत रुदन करेगी । ये वचन सीताके मुखतें सुनकर मन्दोदरी राजा मयकी पुत्री अति क्रोधको प्राप्त भई । अठारा हजार राणी हाथोंकर मारवेको उद्यमी मई और अति कर वचन कहती सीता पर आई तब इभान बीच प्रानकर तिनको थांभी जैसे पहाड नदीके प्रहको थाने । ते सब सीताको दुखका कारण वेदना रूप होय हनिवेको उद्यमी भई थीं सो हमानने वैद्यरूप हो । निवारी तब ये सन मन्दोदरी आदि रावण की रणी मान भंग हो रावण पैग कर है चित्त जिनके, तिनको गए हीछे हनूमान सीतासे नमस्कार कर आहारके निमित्त विनती करता भया-हे देवि ! यह सागरांत पृथिवी श्रीरामचन्द्रकी है ताते यहांका अन्न उनही
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