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पा-पुराण
जाऊ ऐसी मैं सो तुमने कामके वाणनिकरि जीती यह पत्र वांच हनुमान प्रसन्न होय रथसे उतर आयकर तासे मिले जैसे काम रतिसे मिले वह प्रशानवैर भई संती श्रमू डारती तातके मरणकर शोकरत, तब हनूमान कहते भये-हे चंद्रवदनी! रुदन मत करे तेरे शोककी निवृत्ति होहु तेरे पिता परम क्षत्री महशूरवीर तिनकी यही रीति जो स्वामी कार्यके अर्थ युद्ध में प्राण तजें अर शास्त्रविणे प्रवीण हो सो सब नीके जानो हो या राज्यविणे यह प्राणी कर्मनिके उदयकर पिता पुत्र बांधवादिक सबको हणे है तातै तुम बात ध्यान तजो । ये सकल प्राणी अपना उपार्जा कर्म भोगवे हैं निश्चय मरण का कारण आयुका अंत है अर पर जीव निमित्त मात्र हैं, इन वचननिकरि लंकासुन्दरी शोकरहित भई। या भांति या सहित केसी सोहती भई जैसे पूर्णचंद्रसे निशा सोहै प्रमके समूहकर पूर्ण दोऊ मिलकर संग्रामका खेद विस्मरण होय गए दोऊनिका चित्त परस्पर प्रीतिरूप होय गया तब आकाशविङ्ग स्तम्भनी विद्याकर कटक भा अर सुन्दर मायामई नगर बसाया। जैसी सांझ की आरक्तता होय ता समान लाल देवनके नगर समान मनोहर जामें राजमहल अत्यन्त सुन्दर सो हाथी घोडे विमान रथो पर चढे बडे बडे राजा नगरमें प्रवेश करते भए । नगर ध्वजानिकी पंक्ति कर शोभित सो यथायोग्य नगरमें तिष्ठे महा उस्साहसे संयुक्त रात्रिमें शूरवीरनिके युद्धका वर्णन जैसा भया तैसा सामन्न करते भए हनूमान लंकासुन्दरीके संग रमता भया ।
... अथानन्तर प्रभात ही हनूमान चलनेको उद्यमी भए तब लंकासुन्दरी महा प्रेमकी भरी एसे कहती भई-हे कंत ! तुम्हारे पराक्रम न सहे जांय ऐसे अनेक पुरुषोंके मुख रावणने सुने होवेंगे सो सुनकर अतिखेद खिन्न भया होयगा तातें तुम लंका काहेको जावी, तब हनूमानने उसे सकल वृत्तांत कहा जो रामने वानरवंशियोंका उपकार किया सो सबोंका प्रेरा रामके प्रति उपकार निमित्त जाऊहूं। हे त्रिये ! रामका सीताका मिलाप कराऊ, राक्षसोंका इन्द्र सीताको अन्याय मार्गसे हर लेगया है, सो सर्वथा मैं लाऊंगा । तव ताने कहा तुम्हारा और रावणका वह स्नेह नाही, स्नेह नष्ट भया सो जैसे स्नेह कहिए तेल ताके नष्ट होयवे कर दीपककी शिखा नहीं रहे है तैसे स्नेहके नष्ट होयवे कर सम्बन्धका व्यहार नहीं रहे है । अब तक तुम्हारे यह व्यवहार था तुम जब लंका आवते तब नगर उछावते गली गलीमें हर्ष होता, मंदिर ध्वजावोंकी पक्तिसे शोभित होते जैसे स्वर्गमें देव प्रवेश करें तैसे तुम प्रवेश करते, अब रावण प्रचण्ड दशानन तुम में द्वषरूप है सो निःस देह तुमको पकडेगा तातें जब तिहारे उनके संधि होय तब मिलना योग्य है तब हनूमान बोले-हे विचक्षणे ! जायकर ताका अभिप्राय जाना चाहूं हूं और वह सीता सती जगत् में प्रसिद्ध है और रूर कर अद्वितीय है जाहि देखकर रावणका सुमेरु समान अचल मन चला है वह महा पतिव्रता हमारे नाथकी स्त्री हमारी माता समान ताका दर्शन किया चाहूं हूं। या भांति हनूमानने कही और सब सेना लंकासुन्दरीके समप राखी और आप तो विवेकिनीसे विदा होयकर लंकाको सन्मुख भए। यह कथा गौतमम्वामी राजा श्रेणिकत कहै है-हे राजन् ! या लोकमें यह बड़ा आश्चर्य है जो यह प्राणी क्षण मात्रमें एक रसको बोड
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