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________________ আনন৷ গ पिताका जो शोक उपजा हुता ताहि कष्ट से निवार क्रोधरूप विषकी भरी तेज तुरंग जुते हैं जाके ऐसे रथपर चढी कुडलनिके उद्योतकरि प्रकाशरूप है मुख जाका, बक्र हैं भौंह जाकी, उन्कापातका स्वरूप सूर्यमंडल समान तेजधारी क्रोधके वश कर लोल हैं नेत्र जाके करताकर डसे हैं किंदूरीसमान होंठ जाने मानो क्रोधायमान शची ही है सो हनूमानपर दौडी अर कहती मई-रे दुष्ट ! मैं तोहि देखा जो तोमें शक्ति है तो मातें युद्ध कर, जो क्रोधायमान भया रावण न करे सो मैं करूंगी, हे पापी ! तोहि यममंदिर पठाऊगी, तू दिशा को भूल अनिष्ट स्थानको प्राप्त भया ऐसे शब्द कहती वह शीघ्र ही आई सो आवतीका हनूमानने छत्र उडाय दिया, तब वाने वाणनिकरि इनका धनुष तोड डारा अर शक्ति लेय चलावे ता पहिले हनूमान बीच ही शक्तिको तोड डारी तब वह विद्यावलकर गंभीर वज्रदंड यमान बाण अर फरसी बरछी चक्र शतघ्नी मूसल शिला इत्यादि वायुपुत्रके रथपर वरसाती भई जैसे मेघमाला पर्वतपर जलकी धारा वरसावे नाना प्रकारके आयुधनिक समूहकरि वाने हनूमानको वेढा जैसे मेघस्टल सूर्यको पाच्छादे तब हनूमान विद्याकी सर्व विधिमें प्रवीण महापराक्रमी ताने शस्त्रनिके समूह अपने शस्त्रनिकरि आप तक न प्रोवने दिए, तोमरादिक बाणनिकरि तोमरादिक वाण निवारे अर शक्तितें शक्ति निवारी । या भांति परस्पर अतियुद्ध भया याके वाण वाने निवारे वाके बाण याने निवारे बहुत बेरतक युद्ध भया कोई नहीं हारे सो गौतमस्वामी राजा श्रेणिकसू कहे हैं हे राजन् ! हनुमानको लंकासुन्दरी बाण शक्ति इत्यादि अनेक आयुथनिकरि जीतती भई पर कामके बाणनिकर पीडित भई । कैसे हैं कामके वाण ? मर्मक बिदारनहारे । कैसी है लंकासुन्दरी साक्षात् लक्ष्नी समान रूपवन्ती, कमल लोचन सौभाग्य गुणनिकरि गर्वित सो हनूमानके हृदयमें प्रवेश करती भई जाके कर्णपर्यंत बाणरूप तीक्ष्ण कटाक्ष नेत्ररूप धनुषतें चढ़े ज्ञान थीर्यके हरणहारे महा सुन्दर दुद्धर मनके भेदनहारे प्रवीण अपनी लावण्यताकार हरी है सुन्दरताई जिनने तर हनूमान मोहित होय मनमें विंतवता भया जो यह मनोहर आकार महाललित बाहिर तो विद्यावाण अर सामान्य बाण तिन कर मोहि भेर्दै है और आभ्यन्तर मेरे मनको काम के बाणकरि बींधे है यह मोहि वाह्याभ्यंतर हणे है तन मनको पीडे है या युद्ध में याके घाणनिकरि मृत्यु होय तो भली परन्तु याके विना स्वर्गमें जीवना मला नाही, या मांति पवनपुत्र मोहित भया अर वह लंकासुन्दरी याके रूपको देख मोहित भई, क्रूरतारहित करुणा में आया है चित जाका, तब जो हनूमानके मारिवेको शक्ति हाथमें लीनी हुती सो शीघ्रही हाथ तें भूमिमें डारदई, हनूमान पर म चलाई । कैसे हैं हनूमान ! प्रफुल्लित हैं तन अर मन जिनका अर कमल दल समान हैं नेत्र जिनके अर पूर्णमासीके चन्द्रमा समान है मुख जिनका नव यौवन मुकटमें बानर का चिह्न साक्षात् कामदेव है। लंकासुन्दरी मनमें चिंतवती भई-याने मेरा पिता मारा सो बडा अपराध किया यद्यपि द्वेषी है तथापि अनुपम रूपकर मेरे मनको हरे है जो या सहित काम भोग न सेऊ तो मेरा जन्म निष्फल है तब विहल होय एकपत्र तामें अपना नाम सो वाणको लगाय चलायो तामें ये समाचार हुते-हे नाथ ! देवनिके समूहकर न जीती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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