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पचासवां पर्व हनूमानपर आया सो हनूमानके अर बाके वाण चक्र कनक इत्य दि अनेक आयुधनिकरि परस्पर महा युद्ध भया हनूमानने अपनी विद्याकरि वाके शस्त्र निवारे जैसे योगीश्वर आत्मचिन्तवनकर परीषहके समूहकूनिवारै ताने अनेक शस्त्र चलाये सो हनूमानके एकहू न लग्या जैसे मुनिको कामका एक भी बाण न लागै जैसे तृणनिके समूह अग्निमें भस्म होय तैसे महेंद्र के पुत्रके सर्व शस्त्र हनूमानपर विफल गए अर हनूमानने ताहि पकडा जैसे सर्पको गरुड पकडे तब राजा महेंद्र महारथी पुत्रकू पकड़ा देख महा क्रोधायमान भया हनूमानपर आया जैसे सहसगति रामपर आयाहुता, हनूमानहू महा धनुषधारी सूर्यके रथ समान रथपर चढा, मनोहर है उरविष हार जाके शूरवीरनिमें महाशूरवीर नानाके सन्मुख भया सो दोउनिमें करोत कुठार खडग बाम आदि अनेक शस्त्रनिकरि पवन ा मेषकी न्याई महा युद्ध भया, दोऊ सिंह समान महा उद्धृत महाकोपर्क भरे बलवंत अग्निके कणसमान रक्तनेत्र दोऊ अजगर समान भयानक शब्द करते परस्पर शस्त्र चलावते, गर्वहास संयुक्त प्रकट हैं शब्द जिनके, परस्पर ऐसे शब्द करे हैं धिकार तेरे शूरपनेको, तू कहा युद्ध कर जाने इत्यादि वचन परम्पर कहते भए दोऊ विद्याबलकरि युक्त परम युद्ध करते बारम्बार अपने लोगनिकरि हाकार जय जयकारादिक शब्द करावते भए । राजा महेंद्र महा विक्रियाशक्तिका धारक क्रोधकर प्रज्वलित है शरीर जाका सो हनूमानपर श्रायुधनिके समूह डारता भया, भुपुंडी फरसा बाण शतध्नी मुदगर गदा पर्वतनिके शिखर शालवृक्ष चटवृक्ष इत्यादि अनेक आयुथ हनुमानपर महेंद्र चलाए सो हनूमान ध्याकुलता प्राप्त न भया जैसे गिरिराज महा मेषके समूहकरि कंपायमान न होय । जेते महेंद्र ने बाण चलाए सो हनूमानने उनको विद्याके प्रभावकरि सब चूर डारे बहुरि अपने रथतें उछल महेंद्रके रथमें जाय पडे दिग्गजकी सूड समान अपने जे हाथ तिनकरि महेंद्रकू पकड लिया पर अपने रथमें भाए, शूरवीरनिकरि पाया है जीतका शब्द जाने सर्वही लोक प्रशंसा करते भए । राजा महेंद्र हनुमान महाबलवान परम उदयरूप देख महा सौम्य वाणीकर प्रशंसा करता भया-हे पुत्र ! तेरी महिमा जो हमने सुनी हुनी सो प्रत्यक्ष देखी । मेरा पुत्र प्रसन्नकाति जो अब तक काहूने न जीता रथनपुरका म्वामी राजा इन्द्र ताकरि न जीता गया, विजियागिरिक निवासी विद्याधर तिनमें महाप्रभावसंयुक्त सदा महिमाकू धरै मेरा पुत्र सो तैने जोता और पकडा, धन्य पराक्रम तेरा, महाथीर्यको धरे तेरे समान और पुरुष नाही अर अनुपमरूप तेरा अर संगाम विष अद्भुत पराक्रम, हे पुत्र हनूमान ! तूने हमारे सब कुल उद्योत किये तू चरमशरीरी अवश्य योगीश्वर होयगा विनय आदि गुणनिकरि युक्त परम तेजली राशि कल्याणमूर्ति कम्पवृक्ष प्रकट भया है तू जगत्विष गुरु कुलका श्रिय अर दुःखरूप सूर्यकर जे ततायमान हैं तिनकू मेषसमान । या भांति नाना महेंद्रने अति प्रशंसा करी अर आँख भर आई अर रोमांच होय पाए मस्तक चूमा छातीसे लगाया तव हनुमान नमस्कार कर हाथ जोङ अति विनयकर क्षमा करावते भए एकक्षणमें और ही होय गए हनूमान कहे हैं-हे नाथ ! मैं वाल बद्धिकरि जो तिहारा अविनय किया सो क्षमा करहु अर श्रीरामका किहकंधापुर श्रावनेका सकल चांत
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