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उनचासणा पण हाय पिता, हाय भाई ! तुम कहां गए एक बार मोहि दर्शन देवो वचनालाप कर महा भयानक वनमें भूमिगोचरिनि तुमको कैसे हते ? या भांति पिता और भाईके दुःखकरि चन्द्रनखाकी पुत्री दुखीभई सो महा कष्टकरि सखिनिने शांतिताको प्राप्त करी अर जे प्रवीण उत्सम जन हुते तिन बहुत संबोधी तब यह जिन मार्ग में प्रवीण समस्त संसार के स्वरूप को जान लोकाचारकी रीति प्रमाण पिता के मरण की क्रिया करती भई बहुरि दूत को हनुमान महाशोक के भरे साल वृतांत पूछते भए । तब इनको सकल वृत्तांत कहा सो हनूमान खरदूषण के मरणकरि प्रति क्रोधको प्राप्त भया । भौंह टेढी होय गई , मुख अर नेत्र रक्त भए , तब इतने कोप निवारिवेके निमित्त मधुर स्वरनिकरि वीनती करी-हे देव ! किहकंधापुर के स्वामी सुग्रीव तिनके दुख उपजा, सो तो अाप जानो ही हो । साहसगति विद्याधर सुग्रीव का रूप बनाय माया ताते पीडित भया सुग्रीव श्रीराम के शरण गया , मो राम सुग्रीव का दुख दूर करवे निमित्त किहकथापुर आए प्रथम तो सुग्रीव अर बोके युद्ध भया सो सुग्रीव करि वह जीता न गया। बहुरि श्रीरामके अर वाके युद्ध भया सो राम को देख बैताली विद्या भाग गई तब वह साहसगति सुग्रीव के रूपरहित जैसा हुता तैसा होय गया । महायुद्ध विर्षे रामने ताहि मारा सुग्रीवका दुःख दूर किया यह बात सुन हनुमानका क्रोथ दूर भया । मुखकमल फूला, हर्षित होय कहते भए
अहो श्रीरामने हमारा यहा उपकार किया। सुग्रीवका कुल अकीर्तिरूप सागरमें इबै था सो शीघ्रही उद्धारा, सुवर्णक कलस समान सुग्रीवका गोत्र सो अपयश रूप ऊहे कूपमें डूबता हुता श्रीराम सन्मतिके धारकने गुणरूप हस्तकरि काढा । या भांति हनूमान बहुत प्रशंसा करी भर सुख के सागरमें मग्न भए अर हनूमानकी दूजी स्त्री सुग्रीवकी पुत्री पद्मरागा पिताके शोकका अभाष सुन हर्षित भई ताके बडा उत्साह भया । दान पूजा आदि अनेक शुभ कार्य किये । हनूमानके घरमें अनंगकुममाके घर खरक्षण का शोक भया अर पद्मरागाके सुग्रीवका हर्ष भया । या भाति विषमताको प्राप्त भये घरके लोग तिनको समाधान कर हनूमान किहकंधापुरको सन्मुख भये । महा शुद्धिकर युक्त बडी सेना हनूसान चाला, आकाशमें अधिक शोभा भई महा रस्नमई हनूमान का विमान ताको किरणनिकर सूर्यकी प्रभा मंद होय गई। हनूमानको चालता सुन अनेक राजा लार भए जैसे इन्द्रकी लार बडे बडे देव गमन करें आगे पीछे दाहिनी वाई और अनेक राजा चाले जाय हैं विवाधानिके शब्द कर आकाश शब्द मई होय गया। आकाशमामी अश्व अर गज तिनके समूह कर आकाश चित्राम होय गया । महा तुरंगनिकर संयुक्त ध्वजानि कर शोभित सुंदर रथ तिनकर आकाश शोभायमान भासता भया अर उज्ज्वल छत्रनिके समूह कर शोभित आकाश ऐसा भासे मानों कुमुदनिका वन ही है अर गम्भीर दुन्दुभीके शन्दनि कर दशों दिशा ध्वनि रूप होय गई, मानों मेघ गाजे है अर अनेक वर्णके आभूषस तिनकी ज्योतिके समूह कर श्राकाश नाना रंग होय गया मानो काहू चतुर रंगरेजाका रंगा वस्त्र है हनुमानके वादित्रनिका नाद सुन कपिवंशी हर्षित भए जैसे मेघकी ध्वनि सुन मोर हर्षित
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