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पल-पराण जासू थातुकीखण्ड द्वरपके शंका माने । जंबुद्वीपमें जाकी अधिक महिमा अद्भुत कार्य करणहारा सबके उरका शम्य है सो युद्ध योग्य नाहीं तातें रणकी बुद्धि छांडि हम जो कहे हैं सो करहु । हे देव ! ताहि युद्ध सन्मुख करियेमें जगतको महाक्लेश उपजे है। प्राणिनिके समूहका विध्वंस होय है। समस्त उत्तम क्रिया जगतते जाय हैं तातै विभीषण रावणका भाई सो पापकर्मरहित श्रावकबतका थारक है, रावण ताके वचनको उलंघे नाही तिन दोऊ भाइनिमें अन्तरायरहित परम प्रीति है सो विभीषण चातुर्यताते समझावेगा अर रावणहू अपशयते शंकेगा। लज्जाकर सीताको पठाय देगा तातै विचारकर रावणपै ऐसा पुरुष भेजना जो बात करने में प्रवीण होय भर राजनीतिमें कुशल होय अनेक नय जाने पर रावणका कृपापात्र हो ऐसा हेरहु सब महोदधि नामा विद्याधर कहता भया तुम कबू सुनी है लंकाकी चौगिरद मायामई यंत्र रचा है सो
आकाशके मार्गते कीऊ जाय सके नाही, पृथवीके मागते जाय सके । लंका अगम्य है महा भयानक देखा न जाय ऐसा मायामई यंत्र बनाया है सो इतने बैठे हैं तिनमें तो ऐसा कोऊ नाहीं जो लंकामें प्रवेश करे तातै पवनंजयका पुत्र श्रीशेल जाहि हामान कहे हैं सो महाविद्याबलवान पराक्रमी प्रतापरूप है ताहि जांचो. वह रावण का परममित्र है अर पुरुषोत्तम है सो रावणको समझाय विघ्न टारेगा तब यह बात सबने प्रमाण करी । हनूमान निकट श्रीभूतनामा दत शीघ्र पठाया । गौतमस्वामी राजा श्रेणिकते कहे हैं-हे राजन् ! महाबुद्धिमान होय अर महाशक्ति को धरें होय अर उपाय करे तो भी होनहार होय सोही हाय जैसे उदयकालमें सूर्यका उदय होय ही तैसे जो होनहार सो होय ही । इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविष कोटिशिलाका
उठाबनेका व्याख्यान वर्णन करनेबाला अडतालीसवां पर्ण पूण भया ॥४॥
अथानन्तर श्रीभूतनामा दूत पवनके वेगते शीघ्र ही आकाशके मार्गसों लभीका निवाम जो श्रीपुरनगर अनेक जिन भवन तिनकरि शोभित तहां गया जहां मंदिर सुवर्ण रत्नमई सो तिनकी माला करि मण्डित कुन्दके पुष्प समान उज्जवल सुन्दर झरोखनिकरि शोभित मनोहर उपवनकर रमणीक सो दूत नमर की शोभा अर नगरके अपूर्व लोग देख आश्चर्य को प्राप्त भया बहरि इन्द्र के महल समान राजमंदिर तहां की अदभुत रचना देख थकित होय रहा। हनूमान खरदषणकी बेटी अनंगकुसमा रावण की भानजी ताके खरदूषण का शोक , कर्मके उदयकरि शुभ अशुभ फल पावे ताहि कोई निवारिसे शक्त नाही , मनुष्यनिकी कहा शक्ति देवनिहकरि अन्यथा न होय । दूतने द्वारे आय अपने प्रागमनका वृत्तान्त कहा सो अनंगकुसमाकी मर्यादा नामा द्वारपाली दतको भीतर लेयगई। अनंगकुममा ने सकल वृत्तांत पूछा सो श्रीभूतने नमस्कारकर विस्तारसे कहा , दण्डकान में श्रीराम लक्ष्मणका भावना , सम्बूक का बध , खग्दूषणते युद्ध बहुरि भले भले सुभटनिसहित खरदूषण का मरण , यह वाती सुन अनंगकुस्मा मूर्खाको प्राप्त भई वष चन्दन के जलकरि सींच सचेत करी, अनंगकुसमा अश्रुपात डारती विलाप करती भई
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