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देते भए ।
घडतालीसा पर्व सर्वथा शुद्धमाव सर्वद्रव्य सवक्षेत्र सर्वकाल सर्वभावके ज्ञाता, निरंजन आत्मज्ञानरूप शुक्लध्यान अग्निकर अष्टकर्म वनके भस्म करणहारे अर महाप्रकाशरूप प्रतापके पुंज, जिनको इन्द्र धरणेंद्र चक्रवर्णादि पृथिवीके नाथ सब ही सेवें, महास्तुति करें, ते भगवान संसारके प्रपंचते रहित अपने आनन्दस्वभाव तिनमई अनन्त सिद्ध भए अर अनंत होंहिगे। अढाईद्वीपकविणे मोक्षका मार्ग प्रवृत्त है, एकसौ साठ महाविदेह अर पांच भरल पांच ऐरावत एकसौ सत्तर क्षेत्र तिनके
आर्यखंडमें जे सिद्ध भए घर होंहिगे तिन सबनिको हमारा नमस्कार होहु, या भरत क्षेत्रमें यह कोटि शिला, यहांते सिद्ध शिलाको प्राप्त भए ते हमको कल्याणके कर्ता होह जीवनिको महामंगल रूप, या भांति चिरकाल स्तुतिकर चित्तमें सिद्धनिका ध्यानकर सब ही लक्ष्मणको आशोर्वाद
या कोटिशिलाते जे सिद्ध भए वे सर्व तिहारा विघ्न हरें अरहंत सिद्ध साधु जिनशासन ये सर्व तुमको मंगल के करता होहु या भांति शब्द करते भए अर लक्ष्मण सिद्धनिका ध्यान कर शिला को गोडे प्रमाण उठावता भया अनेक आभूषण पहिरे भुम बंधन कर शोभायमान हैं भुजा जाकी सो भुजानिकरि कोटिशिला उठाई तब आकाशमें देव जय जय शब्द करते भए । सुगीवादिक आश्चर्य को प्राप्त भए । कोटिशिला की यात्राकर बहुरि सम्मेद शिखर गए अर कैलाशकी यात्राकर, भरतक्षेत्रके सर्व तीर्थ बंदे प्रदक्षिणा करी सांझ समय विमानमें बैठ जय जयकार करते संते रामलक्ष्मणके लार किहकंधापुर आए । आप अपने अपने स्थानक सुख ते शयन किया बहुरि प्रभात भया सब एकत्र होय परस्पर वार्ता करते भए -देखो अब थोडेही दिनमें इन दोऊ भाइनिका निष्कंटक राज्य होयगा। ये परम शक्तिको धरे हैं। वह निर्वाण शिला इनने उठाई सो यह सामान्य मनुष्य नाही, यह लक्ष्मण रावणको निसंदेह मारेगा, तब कैयक कहते भए रावणने कैलाश उठाया सो वाहका पराक्रम घाट नाहीं, तब और कहते भए ताने कैलास विद्याके बलते उठाया सो आश्चर्य नाहीं, तब कैयक कहते भए काहेको विवाद करो जगतके कल्याण अर्थ इनका उनका हित कराय देवो या समान और नाहीं, रावणते प्रार्थना कर सीता लाय रामको सौंपो, युद्धते कहा प्रयोजन है ? आगे तारकमेरु महा बलवान भए सो संगाममें मारे गये । बे तीनखंडके अधिपति महा भाग्य महापराक्रमी हुते अर औरह अनेक राजा रणमें हते गये तातै साम कहिये परस्पर मित्रता श्रेष्ठ है तब ये विद्याकी विधिमें प्रवीण परस्पर मंत्रकर श्रीरामपै आए अतिभक्तिते रामके समीप नमस्कार कर बैठे, कैसे शोभते भए जैसे इन्द्र के समीप देव सोहैं, कैसे हैं राम ! नेत्रनिको आनन्दके कारण सो कहते भए अब तुम काहे ढील करो हो, मोविना ज नकी लंकामें महादुःख करि तिष्ठे है तातें दीर्घ सोच छांडि अवारही लकाकी तरफ गमनका उद्यम करहु । तब जे सुग्रीवके जांबूनंदादि मंत्री राजनीति में प्रवीन हैं तेराम विनती करते भए--हे देव ! हमारे ढील नाही परन्तु यह निश्चय कहो सीताके न्यायवे हीका प्रयोजन है अक राक्षसनिते युद्ध करना है, यह सामान्य युद्ध नाही, विजय पावना अति कठिन है। वह भरत क्षेत्रके तीन खंडका निष्कटक रोज करे है। द्वीप समुद्रनिके विषे रावण प्रसिद्ध है
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