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बापुराण
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होंय । सुग्रीवने सब नगरकी शोभा कराई हाट बाजार उजाले। मंदिरनि पर ध्वजा चढाई रत्ननि के तोरणनिकर द्वार शोभित किये हनुमान के सब सन्मुख गए, सबका पूज्य देवनिके न्याई नगर में प्रवेश किया / सुर्य व के मंदिर आये सुग्रीवने बहुत आदर किया पर श्रीरामका समस्त वृत्तांत कहा तब ही सुग्रीवादिक हनूमान सहित परम हर्षको धरते श्रीरामके निकट श्राये सो हनूमान रामको देखता भया, महासुंदर सूक्ष्म स्निग्ध श्याम सुगन्ध चक्र लंबे महामनोहर हैं केश जिनके सो लक्ष्मीरूप बेल तिनकरि मंडित महा सुकुमार है अंग जिनका सूर्य समान प्रतापी, चंद्र समान कांतिधारी अपनी कांतिकर प्रकाशके करणहारे नेत्रनिको आनन्दके कारण महा मनोहर अति प्रवीण आश्चर्यकारी कार्यके करण हारे म नो स्वर्ग लोकते देव ही आए हैं दैदीप्यमान निर्मल स्वर्ण कमलके गर्भ समान है प्रभा जिनकी सुन्दर नेत्र सुन्दर श्रवण सुन्दर नासिका सर्वांग अंग सुन्दर मानों साक्षात् कामदेव ही हैं, कमल नयन, नव यौबन चढ़े धनुष समान भौंह जिनकी, पूर्णमासीके चंद्रमा समान बदन, महा मनोहर मूंगा समान लाल होंठ कुन्दके समान उज्ज्वल दंत, शंख समान कंठ, मृगेन्द्र समान साहस सुंदर कटि सुंदर वक्षस्थल महाबाहु श्रीवत्सलक्षण दक्षिणावर्त गम्भीरनाभि आरक्त कमल समान कर चरण महाकमल गोल पुष्ट दोऊ जंघा र कछुवेकी पीठ समान चरण के अग्रभाग महाकांतिको घरे अरुण नख अतुल वल महायोवा महागंभीर महाउदार समचतुरस्र संस्थान वज्रवृषभ नाराच' संहनन मानों सर्व जगत्रयकी सुंदरता एकत्र कर बनाये हैं महाप्रभाव संयुक्त परन्तु सीता के वियोग कर व्याकुल चित, मानों शर्च रहित इन्द्र विराजे हैं अथवा रोहिणीराहेत चंद्रमा विष्ठे है । रूप सौभाग्य कर मंडित सर्व शास्त्रनिके वेसा महाशूरवीर जिनकी सर्वत्र कीर्ति फैल रही है महा बुद्धिमान गुणवान ऐसे श्रीराम तिनको देखकर हनुमान आश्चर्यको प्राप्त मया । तिनके शरीर की कांति हनुमान पर जा पडी, प्रभाव देखकर वशीभूत भया, पत्रनका पुत्र मनमें विचारता भया—ये श्रीराम दशरथ के पुत्र भाई लक्ष्मण लोक श्रेष्ठ याका आज्ञाकारी, संग्राममें जाके चंद्रमा समान उज्ज्वल चत्र देख साहसगतिकी विद्या वैताली ताके शरीरतें निकस गई अर इन्द्र हू मेने देखा है परंतु इनको देखकर परम आनन्द संयुक्त हृदय मेरा नम्रीभूत भया या भांति आश्चर्यको प्राप्त भया अंजनीका पुत्र, श्रीराम कमल लोचन ताके दर्शनको आगे आया अर लक्ष्मणने पहिले ही रामते कह राखी हुती सो हनूमानको दूरहीतें देख उठे, उरसे लगाय मिले, परस्पर अति स्नेह भया, हनूमान अविनय कर बैठा श्रीराम सिंहासन पर विराजे, भुजवधनकर शोभित हैं जिनकी, महा निर्मल नीलाम्बर मण्डित राजनके चूडामणि महा सुंदर द्वार पहिरे ऐसे सोहैं मानों नक्षत्रनि सहित चन्द्रमा ही है अर दिव्य पीतां वर धारे हार कुण्डल कर्पूरादिक संयुक्त सुमित्रा के पुत्र श्रीलक्ष्मण कैसे सोहे हैं मानो विजुरी सहित मेघ ही है अर बानर वंशिनिका मुकट देवनि समान पराक्रम जाका, राजा सुग्रीव कैसा सोहै मानो लोकपाल ही है अर लक्ष्मण के पीछे बैठा विरावित विद्यावर कैसा सोहै मानो लक्ष्मण नरसिंहका चक्ररत्न ही है, रामके समीप हनूमान कैसा शोभता मया जैसे पूर्ण चन्द्र
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