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पभ-पुराण अपने सेवकनिते कहती भई, यह कोई दुष्ट विद्याधर विद्या करि मेरे पतिका रूप बनाय आये है पापकर पूर्ण सो याका आदर सत्क र कोऊ मत करो। यह पापी शंकारहित जायकर सुग्रीवके सिंहासनपर बैठा अर वाही समय सुग्रीव हू आया पर अपने लोकनिको चिंतावान देखे तब विचारी मेरे घर में काहेको विषाद है, लोक मलिनवदन ठौर ठौर भेले होय रहे हैं। कदाचित् अंगद मेरुके चैत्यालयनिकी बंदनाके अर्थ सुमेरु गया न आया होय, अथवा राणीने काहूपर रोस किया होय अथवा जन्म जरा मरणकर भयभीत विभीषण वैराग्यको प्राप्त भया होय ताका सोच होय ऐसा विचारकर द्वारे पागा, रत्ननई द्वार गीत गानरहित देख, लोक मचित देखे, मनमें विचारी यह मनुष्य और ही होय गये । मंदिरके भीतर स्त्री जननिके मध्य अपनासा रूप किए दुष्ट विद्याधर बैठा देखा दिव्य हार पहिरे सुन्दर वस्त्र मुकटिकी कांति करि प्रकाश रूप तब सुग्रीव क्रोधकर गाजा जैसे वर्षाकालका मेव गाजे अर नेत्रनिके आरक्तकरि दशोंदिशा आरक्त होय गई जैसी सांझ फले तब वह पापी कृत्रिम सुग्रीव भी गाजा जैसे माता हाथी मदकर विह्वल होय तैसे कामकर विह्वल सुग्रीवों लडनेका उठा दोऊ होठ डसते श्रु कटी चढाय युद्धको उद्यमी भए तब श्री चन्द्रदि मंत्रिनिने मने किए अर सुतारा पटराणी प्रकट कहती भई यह कोऊ दुष्ट विद्याधर मेरे पतिका रूप बनाय आया है । देह पर बल अर वचननिकी कांति करि तुल्य भया है परन्तु मेरे भातारमें महा पुरुषनिके लक्षण हैं मो यामें नाहीं जैसे तुरंग और खरकी तुन्यता नाही तस मेर पातकी अर याको तुल्यता नाहीं।
या भांति राणी सुताराके वचन सुनकर भी कैएक मंत्रिनिने न मानी जैसे निर्धनका बचन थनपान न माने, सादृश्यरूप देखकर हरा गया है चिच जिनका सो सब मन्त्रिनि भेले होय मन्त्र किया पंडितनिको इतने नक वचननिका विश्वास न करना-बालक, अतिवृद्ध, स्त्री, मद्यपायी, वेश्यामक्त इनके वचन प्रमाण नाही अर स्त्रीनिके शीलकी शुद्धि रखना, शीलकी शुद्धि विना गोत्रकी शुद्धि नाहीं, स्त्रीनिको शील ही प्रयोजन है ताते राजलोकमें दोऊ ही न जाने वें, बाहिर रहें तब इनका पुत्र अंगद तो माताके वचनते इनकी पक्ष आया अर जांबूनद कहे है-हम भी इन्हीके संग रहें अर इनका पुत्र अंगज सो कृत्रिम सुग्रीवका पक्ष है अर सात अक्षोहणी दल इनमें है अर सात बामें हैं। नगरके दक्षिणके ओर. यह राखा अर बालीका पुत्र चंद्ररश्मि ताने या प्रज्ञा करी जो सुनसके महिल आवेगा दाही खडग कर मारूगा तब यह सांचा सुग्रीव स्त्रीके विरह कर व्याकुल शोकके निवारवे निमित्त खन्दूषण पै गयो सो खरदूषण तो लक्ष्मणके खडग कर हता गया बहुरि यह हनुमान पे गया, जाय प्रार्थना करी, मैं दुःख कर पंडि र हूं मेरा सहाय करो मेरारूप कर कोई पापी मेरे धरमें पैठा है, सो मोहि महाबाधा है जायर ताहि मारो, तब सुग्रीवके वचन सुन हनुमानजी बडवानल समान क्रोधकर प्रज्वलित होय अपने मंत्रिनि सहित अप्रतीपत नामा विमानमें बैठ किहकधापुर आया सो हनूमानको आया सुन वह मायामई मुग्रीव हाथी चढा लडिवेको आश सो हनूमान दोऊनिका सादृश्य रूप देख आश्चर्यको शास भया, मनमें चिंतवता भया ये दोऊ समानरूप सुग्रीव ही हैं।
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