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सैतालीसवां पा इनमेसे कौनको मारू कछु विशेष जाना न पडे, विना जाने सुग्रीवही को मारू तो बडा अनर्थ होय । एक मुहूर्त अपने मंत्रिनिते विचारकर उदासीन होय हनुमान पाछा निजपुर गया सो हनूमानको गया सुन पुग्रीव बहुत व्याकुल भया । मसमे विवारता भया हजारों विद्या श्रमायानि करि मण्डित महावली महाप्रताप रूप वायुपुत्र सो भी सन्देहको प्राप्त भया सो बडा कष्ट, अब कोन सहाय करे अति व्याकुन होय दुःख निवारजे अर्थ स्त्री के वियोगरूप दावानल कर तप्तायमान आपके शरण पाया है आप शरणागतप्रतिपालक हैं, यह सुग्रीव अनेक गुण निकर शोभित है, हे रघुनाथ प्रसन्न होहु, याहि अपना करहु, तुम सारिखे पुरुषनिका शरीर परदुखका नाशक है ऐसे जावूनंदके वचन सुन राम लदमण अर विराथित कहते भए, धिक्कार होवे परदारारत पापी जीवनको राम विचारी मेरा अर याका दुःख समान है पो यह मेरा मित्र होयगा मैं याका उपकार करू अर यह पीछे मेरा उपकार करेगा, नहीं तो मैं निग्रंथी मुनि होय मोक्षका साथन करूंगा ऐसा विचार राम सुग्रीवसों कहते भए-हे सुग्रीव ! मैं सर्वथा तोहि मित्र किया जो तेरा स्वरूप बनाय आया है उसे जीत तेरा राज्य तोहि निह कंटक कराय दूंगा अर तेरी स्त्री ताहि मिलाय दंगा अर तेरा कार्य होचुके पाछे तू सीताकी सुध आन देना जो कहां है, तब सुग्रीव कहता भया-हे प्रभो ! मेरा कार्य भए पाछे जो सात दिनमें सीताकी सुध न लाऊं तो अग्निमें प्रवेश करूं यह बात सुन राम प्रसन्न भए जैसे चन्द्रमाकी किरण कर कुमुद प्रफुल्लित होय । रामका मुखरूप कमल फूल गया, सुग्रीवके अमृतरूा वचन सुनकर रोमांच खडे होय आए, जिनराज के चैत्यालयमें दोनों धर्ममित्र भए यह वचन किया---परसर काई द्रोह न करै बहुरि राम लक्ष्मण रथपर चढ़ अनेक सामन्तन सहित सुग्रीवके साथ किहकंगापुर आए । नगरके समीप डेराकर सुग्रीवने मायामई सुग्रीव पै दूत भेजा सो दूनको ताने फेर दिया और मायामई सुग्रीव रथमें बैठ बडी सेना सहित युद्धके निमित्त निकसा, सो दोऊ सुग्रीव परस्पर लडे । मायामई सुग्रीव अर सांचे सुग्रीवके नाना प्रकारका युद्ध भया, अंधकार होय गया दोऊ ही खेदको प्राप्त भये, धनी देर में मायामई सुग्रीवने सांचे सुग्रीवके गदाकी दीनी सो गिर पडा, तब मायामई याकों मृया जान हर्षित होय नगरमें गया अर मांक सुग्रीव मूर्छित होप पा सो परिवार के लोक डेरामें .लाए तब सचेत होय रामसों कहता भया-हे प्रभो ! मेरा चोर हाथमें आया हुता सो नगरमें जाने दिया, जो रामचन्द्रको पाय मेरा दुख न मिटे तो या समान दुख कहा ? तब रामने कही तेरा अर वाका रूप देखकर हम भेद न जाना तात तेरा शत्रु को न हता कदाचित विना जाने तेरा ही नाश होय तो योग्य नाही, तू हमारा परम भित्र है तेरे पर हमारे जिनमंदिरमें वचन हुआ है।
अथानन्तर रामने मायामई सुग्रीवको बहुरि युद्धके निमित्त बुलाया सो वह बलवान क्रोधरूप अग्नि कर जलता आया, राम स-मुख भए वह समुद्रतुल्य अनेक शस्त्रनिके धारक सुभट वेई भए ग्राह तिनकरि पूर्ण, ता समय लक्ष्मणने सांचा सुग्रीव पकड राखा जो स्त्रीके बैरसे शत्रुके सन्मुख न आए अर श्रीरामको देखकर मायामई सुग्रीवके शरीरमें जो बैताली विद्या हती सो तातें पूछकर ताके शरीरते निकसी तब सुग्रीवका आकार मिट वह साहसगति विद्या
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