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बयालीसा प
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करता भया । महाभाग्य पक्षीके जो श्री रामकी संगति पाई। रामके अनुग्रहते अनेक चर्चा धार erant महाश्रद्धानी भया । श्रीराम ताहि प्रति लढ़ावें चन्दनकर चर्चित है अंग जाका स्वर्णकी किंकणी कर मण्डित रत्नकी किरणनिकरि शोभित है शरीर जाका, ताके शरीर में रत्न हेमकर उपजी किरणनिकी जटा ताते याका नाम श्रीगमने जटायू धरा । राम लक्ष्मण सीताको यह प्रतिप्रिय, जीती है इसकी चाल जाने महा सुन्दर मनोहर चेष्टाको घरे रामका मन मोहता भया । तावन और जे पक्षी वे देखकर आश्चर्य को प्राप्त भए। यह व्रती तीनों संध्याविषै सीता के साथ भक्तिर नम्रीभूत हुआ अरहन्त सिद्ध साधुनिकी बन्दना करे । महा दयावान् जानकी जटायू पक्षी पर अतिकृपाकर सावधान भई सदा याकी रक्षा करे। कैसी है जानकी १ जिनधर्मते है अनु राग जाका । वह पक्षी महा शुद्ध अमृत समान फल अर महा पवित्र सोधा अन्न निर्मल छाना जल इत्यादि शुभ वस्तु का आहार करता भया । पक्षी अविधि छोड विधिरूप भया, श्री भगवानकी Heat अति लीन जनककी पुत्री सीता जब ताल बजावे अर राम लक्ष्मण दोऊ भाई तालके अनुसार तान लावें तब यह जटायू पक्षी रविसमान है कांति जाकी परम हर्षित भया ताल अर तानके अनुसार नृत्य करे ॥
इति श्रीरमिणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वाचनिकागि जटायू का व्याख्यान गर्णन करनेवाला इकतालीसवां पर्व पूर्ण भया ॥ ४९ ॥
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अथानन्तर पात्र दान के प्रभावकर राम लक्ष्मण सीता या लोकमें रत्न हेमादिसम्पदा कर युक्त भए । एक सुवर्णमई रत्नजडित अनेक रचना कर सुन्दर ताके मनोहर स्तम्भ रमणीक वाड बीच विराजवेका सुन्दर स्थानक अर जाके मोतिनिकी माला लूम्बे सुन्दर झालरी सुगंध चंदन कपूरादि कर मंडित जामें सेज आपन वादित्र वस्त्र सर्व सुगंध कर पूरित ऐसा एक विमान समान अद्भुत रथ बनाया जाके चार हाथी जुड़ें ताविषै बैठे राम लक्ष्मण सीता जटायू सहित रमणीक वनविष विचरें, जिनको काहूका भय नाहीं, काहूकी घात नाहीं, काहू ठौर एक दिन का ठौर पंद्रह दिन काहूं ठौर एक मास मनवांछित क्रीडा करें। यहां निवास करें अक यहाँ निवास करें, भैसी है अभिलाषा जिनके, नवीन शिष्यकी इच्छा की न्याईं इनकी इच्छा अनेक ठौर विचरती भई । महानिर्मल जे नीकरने तिनको निरखते ऊंची नीची जायगा टार समभूमि निरखते ऊचे वृक्ष निको उलंघकर धीरे धीरे आगे गए, अपनी स्वेच्छा कर भ्रमण करते ये वीर वीर सिंह समान निर्भय दंडकवन के मध्य जाय प्राप्त भए । कैसा है वह स्थानक कायरनि क्रू भयकर जहां पर्वत विचित्र शिखिरके धारक जहां रमणाक नीझरने झरें । जहांते नदी निकसें - मोतिनके हार समान उज्ज्वल जल जहां अनेक वृक्ष बंड पीपल, बहेडा पीलू सरसी बड़े बड़े सरल वृक्ष धवल वृक्ष कदंव तिलक जातिके वृक्ष लोंद वक्ष अशोक जम्बूवृक्ष पाटल आम्र आंवला अमिली चम्पा कण्डीरशालि वृक्ष ताड वृक्ष प्रियंगू सप्तच्छद, तमाल न गक्ष नन्दीवृक्ष अर्जुन जाविकं वृच पलाश वृक्ष मलियागिरि चन्दन केसरि भोजवृक्ष हिंगोट वृक्ष काला अगर र सुफेद
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