________________
पत्र-पुराण __ अथानन्तर केवलीके मुखते रामचन्द्रको चरमशरीरी कहिये तद्भव मोक्षगामी सुनकर सकल राजा जय जय शब्द कहकर प्रणाम करते भये पर वंशस्थलपुरका राजा सुरप्रभ महा निर्मलचित्त राम लक्ष्मण सीताकी भक्ति करता भया। महिलनिके शिखरकी कांतिसे उज्ज्वल भया है आकाश जहां, ऐसा जो नगर वहां चलनेकी राजाने प्रार्थना करी परन्तु रामने न मानी वंशगिरिक शिखर हिमाचल के शिखर समान सुन्दर जहां नलिनी धनमें महारमखीक विस्तीर्ण शिला वहां श्राप हंस समान विराजे । कैसा है वन ? नानाप्रकारके वृक्ष अर लतानि करि पूर्ण अर नानाप्रकारके पक्षी करे हैं नाद जहां, सुगन्ध पवन चले है। भांति भांतिके फल पुष्प तिनकरि शोभित अर सरोवरनिमें कमल छल रहे हैं, स्थानक अति सुन्दर सर्व ऋतुकी शोभा जहां बन रही है, शुद्ध आरसीके तल समान मनोग्य भूमि पांच वर्णके रत्ननि करि शोभित जहां कुन्द मौलसिरी मालती स्थलकमल जहाँ अशोक वृक्ष नाग वृक्ष इत्यादि अनेक प्रकारके सुगन्ध वृक्ष फूल रहे हैं । तिनके मनोहर पल्लव लहलाट कर हैं। तहां राजाकी आज्ञा कर महा भक्तिवंत जे पुरुष तिनने श्रीरामको विराजनेके निमित्त वस्त्रनिके महा मनोहर मण्डप बनाये सेवक जन महा चतुर सदा सावधान अति आदर करणहारे मंगल रूप वाणीके बोलनहारे स्वामीकी भक्ति विष तत्पर तिनने बहुत तरहके चौड़े ऊचे वस्त्रनिके मण्डप बनाये, नाना प्रकारके चित्राम है जिनमें अर जिन पर ध्वजा फर रहे हैं मोतिनिकी माला जिनके लटके हैं, वुद्र घंटिकानिके समूह कर युक्त अर जहां मणिनिकी झालर लूच रही हैं महा देदीप्यमान सूर्यकी सी किरण थरें और पृथिवी पर पूर्ण कल रा थापे हैं अर छत्र चमर सिंहासनादि राजचिह्न तथा सर्व सामग्री धरें हैं अनेक मगल द्रव्य हैं ऐसे सुन्दर स्थल विष सुखसों तिष्ठे हैं, जहां जहां रघुनाथ पांव धरें वहाँ वहां पृथिवी पर राजा अनेक सेवा करें। शय्या प्रासन मणि सुवर्णके नानाप्रकारके उपकरण अर इलायची लवंग ताम्बूल मेवा मिष्टान्न तथा श्रेष्ठ वस्त्र अद्भुत आभूषण पर महा सुगन्ध नानाप्रकारके भोजन दधि दुग्ध घृत भांति २ के अन इत्यादि अनुपम बस्तु लावें या मांति सर्व ठौर सब जन श्रीरामको पूजें । वंशगिरि पर श्रीराम लक्ष्मण सीताके रहिवेको मण्डप रचे तिनमें किसी ठौर गीत कहीं नृत्य कहीं वादित्र वाजे हैं। कही सुकृतकी कथा होय है पर नृत्यकारिणी ऐसा नृत्य करें मानों देवांगना ही हैं। कही दान बटे हैं ऐसे मन्दिर बनाए जिनका कोन वर्षन कर सके जहां सब सामग्री पूर्ण, जो याचक आवे सो निमुख न जाय दोनों भाई सर्व भाभरणनि करि युक्त, सुन्दर वस्त्र थरें मनवांछित दानके करणहारे महा यशसे मण्डित पर सीता परम सौभा. ग्यकी धरणहारी प.पके प्रसंग रहित शास्त्रोक्त रीतिकर रहे, ताकी महिमा कहांतक कहिए। अर वंशगिरि पर श्रीर-मचन्द्रने जिनेश्वर देवके हजारों अद्भुत चैत्यालय बनवाए महाहक हैं स्तम्भ जिनके । योग्य है लम्बाई चौड़ाई ऊचाई जिनकी अर सुन्दर झरोखनि करि शोभित तोरण सहित हैं द्वार जिनके, कोट भर खाई कर मण्डित सुन्दर ध्वजानिकरि शोभित, बन्दना के करण हारे भव्यजीव तिनके मनोहर शब्द संयुक्त मृदंग वीणा वांसुरी झालरी झांझ मंजीरा शंख भेरी इत्यादि वादित्रनिके शब्दकर शोभायमान निरंतर आरम्भए है महा उत्सव जहां ऐसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org