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पा-पराण विवेकी वांधे हैं । यह इंद्रिरूप तुरंग मोहरूप पताकाको धरे, पर स्त्रीरूप हरित तृणनिमें महा लोभको धरते शरीररूप रथको कुमार्गमें पाडे हैं । चित्तके प्रेरे चंचलता धरे हैं तातै चित्तको वश करना योग्य है । तुम संसार शरीर भोगनिते विरक्त होय भक्तिकर जिनराजको नमस्कार करहु । निरंतर सुमरहु । जाकरि निश्चयते संसार समुद्रको तिरहु । तप संयमरूप वाणनिकरि मोहरूप शत्रुको हण लोक के शिखर अनिाशीपुर का खंड राज्य करहु निर्भय निजपुर में निवास करहु । यह मुनिके मुक्ते वचन सुन कर राजा विजयपर्वत सुबुद्धि राज्य तज मुनि भया अर वे इतके पुत्र दोऊ भाई उदित मुदित जिनवाणी सुन मुनि होय मही में विहार करते भए । सम्मेद शिखरकी यात्राको जाते हुते मी काहू प्रकार मार्ग भूल धना जाय पडे । वह बसु. भूति विप्रका जीव महारौद्र भील भया हुना ताने देखे । अति क्रोधायमान होय कुठार समान कुवचन बोल इनको खडे र खे अर मारनको उद्यमी भया तब बडा भाई उदित मुदितसे कहता भया
हे भ्रात ! भय मत करहु । क्षमा ढालको अंगीकार करहु । यह मारवेको उद्यमी भया है सो हमने बहु। दिन तपसूक्षमाका अभ्यास किया है सो अब दृढता राखनी। यह वचन सुन मुदित बोला, हम जिनमर्गके सरवानी हमको कहा भय, देह तो विनश्वर ही है अर यह वसुभूतिका जीव है जो पिताकं वैरते मारा हुता। परस्पर दोऊ मुनि ए वार्ता कर शीरका ममत्व तज कायोत्सर्ग धार मिष्ठे । वह मारवेको आया सो म्लेच्छ कहिए भील ताके पतिने मने किया दोऊ मनि बचाए । यह कथा सुन रामने केवली प्रश्न किया-हे देव ! वाने बचाए सो वासू प्रीतिका कारण कहा ? तब केवीकी दिव्य ध्वनिविष आज्ञा भई। एक यक्षस्थान नाम ग्राम तहां सरप अर कर्षक दोऊ भाई हुने । एक पक्षीको पारधी जीवता पकड ग्राममें लाया सो इन दोऊ भाईनने द्रव्य देय छुडाया सो पक्षी मरकर म्लेक्षपति भया अर वे सुरप कर्णक दोऊ वीर उदित मुदित भए । ता परोपकारकर वाने इनको बचाए जो कोई जासे नेकी कर है सो वह भी तासे नेकी करे है अर जो काहूसूरी करे है वाहूसे बह हू बुरी करे है यह संसारी जीवनिकी रीति है तातें सवनिका उपकार ही करहु । काहू प्राणीसू बर न करना । एक जीवदया ही मोक्षका मार्ग है, दया बिना ग्रंथनिके पढ़नेसू कहा ? एक सुकृत ही सुखका कारण सो करना, वे उदित मुदित मुनि उपसर्गते छूट सम्मेदशिखरकी यात्राको गए अर अन्य हू अनेक तीर्थनिकी यात्रा करी । रत्नत्रयका आराधनकरि समाधिते प्राण तज स्वर्गलोक गए अर वह वसुभूतिका जीव जो म्लेच्छ भया हुना सो अनेक कुयोनिविष भ्रमण कर मनुष्य देह पाय तापलब्रत थर अज्ञान तपकर मर ज्योतिषी देवनिकेविर्ष अग्निकेतु नामा क्रूर देव भया अर भरतक्षेत्रके विषम अरिष्टपुर नगर जहां राजा प्रियव्रत महा भोगी ताके दो राणी महागुणवती एक कनकप्रभा दजी पदमावती सो वे उदित मुदितके जीव स्वर्गसूचयकर पद्मावती राणीके रत्नरथ विचित्ररथ नामा पुत्र भए अर कनकप्रभाके वह ज्योतिषीदेव चयकर अनुधर नामा पुत्र भया । राजा प्रियव्रत पुत्रको राज्य देय भगवान के चैत्यालयविष छह दिनका अनशन धार देह त्याग स्वर्ग लोक गया।
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