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पष-पुराण सहित पृथिवीधरके पुत्र को लार लेय सीता अर लक्ष्मण सहित नन्द्यावर्त नगरीको चले, सो शीघ्र गमनकर नगरके निकट जाय पहुंचे। वहां पृथिवीधरके पुत्रसहित स्नान भोजनकर राम लक्ष्मण अर सीता ये तीनों मंत्र करते भए : जानकी श्रीराम कहती भई--हे नाथ ! यबपि मेरो कहिवैका अधिकार नाही, जैसे सूर्य के प्रकाश होते नक्षत्रका उद्योत नाही, तथापि हे देव ! हितकी वांछाकर मैं कछु इक कहूँ हूँ जैसे बांसनितें मोती लेना तैसे हम सारिखनिते हितकी बात लेनी काहू एक बांस के बीडेवि मोती उपजे हैं। हे नाथ ! यह अतिवीर्य महासेनाका स्वामी क्रूरकर्मी भरतकर कैसे जीता जाय । तात याके जीतनेका उपाय शीघ्र चिंतवना, तुमसे पर लक्ष्मयते कोई कार्य असाध्य नाहीं तब लक्ष्मण बोले हे देवी! यह कहा कहो आज अथवा प्रभात इस अणुवी. र्यको मेरे कर हता ही जानो। श्रीरामके चरणारविंदकी जा रज ताकर पवित्र है सिर मेरा मेरे आगे देव भी टिक नाहीं सके, मनुष्य बुद्रतीर्य की तो कहा बात, जबतक सूर्य अस्त न होय ताते पहिले ही या चुद्रवीर्यको मूवा ही देखियो, यह लक्ष्मणके वचन सुन पृथिवीथरका पुत्र गर्जन कर ऐसे ही कहता भया । तब श्रीराम भौंह फेर त हि मनेकर लक्ष्मणसे कहते भए । महाथीरवीर है मन जाका हे भाई ! जानकीने कही सो युक्त है यह अतिवीर्य बलकर उद्धत है रणसंग्रामवि भरतके वश करनेका पात्र नाही, भरत याके दशवें भाग भी नाहीं । यह दावानल समान याका वह मतंग गज कहा करे, यह हाथिनिकरि पूर्ण घोडनिकर पूर्ण रथ पयदानिकर पूर्ण याको जीतने समर्थ भरत नाहीं जैसे केसरीहि महाप्रबल है परंतु विंध्याचल पर्वतके ढाहिवे समर्थ नाहीं, तैसे भरत याको जीते नाही, सेनाका प्रलय होवेगा । जहां निःकारण संगाम होय वहां दोनो पक्षानिके मनुष्यनिका क्षय होय अर यदि इस दुरात्मा अतिवीर्यने भरतको वश किया, तब रघुवंशीनिके कष्टका कहा कहना अर इन विषै संधि भी सूझे नाही, शत्रुघ्न अभिमानी बालक सो उद्धत वैरीसे दोष किया यह न्यायविष उचित नहीं । अन्धेरी रात्रिविष रौद्रभूत सहित शत्रुघ्नने दूरके दौरा जाय अतिवीर्यके कटकवि धाडा दिया, अनेक योधा मारे बहुत हाथी घोडे काम आए अर पवन सारिखे तेजस्वी हजारों तुरंग अर सातसै अंजनगिरि समान हाथी लेगया। सो तूने कहा लोगनिके मुखते न सुनी, यह समाचार अतिवीयें सुन महाक्रोधको प्राप्त भया अर अब महा सावधान है रखका अभिलाषी है अर भरत महामानी है सो यासो युद्ध छोड संधि न करे ताते तू अतिवीर्यको वशकर तेरी शक्ति सूर्यको भी तिरस्कार करने समर्थ है अर यहांते भरत हुनिकट है सो हमको श्रापान प्रकाशना जे मित्रको न जनाबें अर उपकार करें ते अद्भुत पुरुष प्रशंसा करने योग्य हैं। जैसे रात्रीका मेघ, या भांति मंत्रकर रामको अतिवीर्यके पकडनेकी बुद्धि अजी, रात्री तो प्रमाद रहित होय समीचीन लोगनिते कथाकर पूर्ण करी, सुखसों निशा व्यतीत भई, प्रात समय दोऊवीर उठकर प्रात क्रिया कर एक जिनमंदिर देखा, ताविर्ष प्रवेशकर जिनेंद्रका दर्शन किया, वहां आर्यिकानिका समूह विराजवा हुता तिनकी बंदना करी, अर आर्यिकानिकी जो गुरानी वरवर्भा महा शास्त्रकी वेत्ता सीताको याके समीप राखी, आप भगवान की पूजाकर लक्ष्मण सहित नृत्यकारणी स्त्रीका भेष कर लीलासहित राजमंदिरकी तरफ चाले, इंद्रकी अप्सरा तुल्य नृत्यकारणीको देख नगरके
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