________________
३००
पा-पुराण
अथानंतर एक दिन श्रीराम सुखसे विराजे हुते, अर पृथिवीधर भी समीप बैठा हुना, ता समय एक पुरुष दूरका चला महा खेदखिन्न आय कर नम्रीभूत होय पत्र देता भया। सो राजा पृथिवीधरने पत्र लेय कर लेखकको सौंपा लेखकने खोलकर राजाके निकट बांचा तामें या मांति लिखा हुता कि इंद्र समान है उत्कृष्ट प्रभाव जाका महालक्ष्मीवान् नमे हैं अनेक राजा जाको श्रीनन्द्यावर्त नगरका स्वामी महाप्रबल पराक्रमका धारी सुमेरुपर्वतसा अचल प्रसिद्ध शखशास्त्रविष प्रवीण सय राजनि का राजा महाराजाधिराज प्रताप कर बश किये हैं शत्रु पर मोहित करी है सकल पृथिवी जाने, सूर्य समान महाबलवान् समस्त कर्तव्यविष कुशल महानीतिवान् गुणनिकरि विराजमान श्रीमान् पृथिवीका नाथ महाराजेंद्र अतिवीर्य सो विजय नगरविर्ष पृथिवीधरको कुशल क्षेम प्रश्न पूर्वक आज्ञा करे है कि जे पृथिवीपर सामंत हैं के भण्डार सहित अर सर्व सेना सहित मेरे निकट प्रवरते हैं, आर्य खण्डके भर म्लेच्छ खंडके चतुरंग सेना सहित नानाप्रकारके शस्त्रनिके धारणहारे मेरी आज्ञाको शिरपर धारे हैं अंजनगिरि सारिखे पाउस हाथी अर पवनके पुत्रसम तीनहजार तुरंग अनेक रथ अनेक पयादे तिन सहित महापराक्रमका धारी महातेजस्वी मेरे गुणनिसे खींचा है मन जाका ऐसा राजा विजयशार्दूल आया है भर अंग देशके राजा मगध्वज रणोमि कलभ केशरी यह प्रत्येक पांच पांच हजार तुरंग अर बैसो हाथी अर रथ पयादे गिन सहित आये हैं, महाउत्साहके थारी महा न्यायविष प्रवीण है बुद्धि जिनकी अर पंचालदेशका राजा पौडू परम प्रतापको थरता न्याय शास्त्रविष प्रवीण अनेक प्रचंड बलको उत्साह रूप करता हजार हाथी अर सातहजार तुरंगनिते पर रथ पयादनिकारि युक्त हमारे पास आया है अर मगधदेशका राजा सुकेश बडी सेनाम् आया है अनेक राजानि सहित जैसे सैकडों नदिनिके प्रवाहनिको लिये रेवाका प्रवाह समुद्रविणे आवे, तैसे ताके संग काली घटा समान आठ हजार हाथी अनेक रथ पर तुरंगनिके समूह हैं, पर वजूका आयुध धारे है भर म्लेच्छोंके अधिपति सुभद्र मुनिभद्र साधुभद्र नंदन इत्यादि राजा मेरे समीप आये हैं, वजथर समान अर नाही निवारयाजाय पराक्रम जाका ऐसा राजा सिंहवीर्य आया है अर राजा बंग भर सिंहस्थ ये दोऊ हमारे मामा महाबलवान बडो सेनासू आए हैं अर वत्सदेशका स्वामी मारुदर अनेक पयादे अनेक रथ अनेक हाथी अनेक घोडनिकरि युक्त आया है अर राजा प्रौखल सौवीर सुमेरु सारिखे अचल प्रबल सेनाते आए हैं । ये राजा महापराक्रमी पृथिवीपर प्रसिद्ध देवनि सारिखे दस अक्षोहिणी दल सहित आए तिन राजानि सहित मैं बडे कटकते अयोध्याके राजा भरत पर चढ़ा हूं। सो तेरे प्रायवेकी बाट देख हूं तातें आज्ञा पत्र पहुंचते प्रमाण पयानकर शीघ्र आइयो किसी कार्यकर विलम्ब न करियो जैसे किसान वर्षाकू चाहे तैसे मैं तेरे आगमनको चाहूं हूं। या भांति पत्र के समाचार लेखकने बांचे तव पृथिवीधरने कछू कहनेका उद्यम किया तास् पहिले लक्ष्मण बोले--अरे दूत ! भरतके अर अतिवीर्यके विरोध कौन कारणते मया। तब वह वायुगत नामा दूत कहता भया । मैं सब बातोंका मरमी हूं सब चारित्र जानू हूं तब सरमण बोले हमारे सुननेकी इच्छा है वाने कहीं आपको सुननेकी इच्छा है तो सुनो एक श्रतिपद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org