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________________ - २६६ प-पुराण तुम महारूपवान तुमको देखे महाक्रोधीका क्रोध जाता रहे अर आश्चर्यको प्राप्त होय ऐसा कह कर सोचकर गृहस्थ कपिल रुदन करता भया । तब श्रीरामने शुभवचनते संतोषा अर सुशमी ब्राह्मणीको जानकी संतोषती भई बहुरि राघवकी आज्ञा पाय स्वर्णके कलशनिकरि सेवकनिने द्विजको स्त्रीसहित स्नान कराया अर आदरसों भोजन कराया । नानाप्रकारके वस्त्र अर रत्ननिके आभूषण दिए, बहुत धन दिया। सो लेकर कपिल अपने घर आया। मनुष्यनिको विस्मयका करणहारा धन याके भया। यद्यपि याके परविर्षे सब उपकार सामग्री अपूर्व है तथापि या प्रवीणका परिणाम विरक्त घर वर्ष श्रासक्त नाहीं, मनविष विचारता भया-आगे मैं काष्ठके भारका वहनहारा दरिद्री हुता, सो श्रीरामदेवने तृप्त किया। याही ग्रामविष मैं सोषित शरीर अभूषित हुता सो रामने कुवेर समन किया। चिंता दुखरहित किया । मेरा घर जीर्ण तृणका जाके अनेक छिद्रक दि अशुचि पक्षिनिकी बीटकर लिप्त अब रमके प्रसादकरि अनेक स्वर्णके महिल भए, बहुन गोधन बहुत धन काहू वस्तुकी कमी नाहीं। ह य २ मैं दुर्बुद्धि कहा किया ? वे दोऊ भाई चन्द्रमा समान बदन जिनके, कमल नेत्र मेरे घर आए हुने, ग्रीष्मक आतापकरि तप्तायमान सीता सहित, सो मैंने घरते निकासे । या बातकी मेरे हृदयविष महाशल्य है, जब लग घरविष बसू हूं तत्र लग खेद मिटे नाहीं, तातें गृहारम्भका परित्यागकर जिनदीक्षा आदरू। जब यह विचारी, तब याको वैराग्यरूप जान समस्त कुटुंबके लोक अर सुशमी ब्राह्मणी रुदन करते भए तब कपिल सबको शोकसागरविणे मग्न देख निर्ममत्व बुद्धिकरि कहता भया । कैसा है कपिल ? शिव सुखविणे है अभिलाषा जाकी, हो प्राणी हो, परिवार के स्नेहकरि अर नानाप्रकारके मनोरथनिकरि यह मूढ जीव भव तापकर जरे हैं, तुम कहा नहीं जानो हो ? ऐसा कह महा विरक्त होय दुखकर मूर्छित जो स्त्री ताहि तन पर सब कुटुंबको. तज, अठारह हजार गाय अर रत्ननिकर पूर्ण घर अर घरके बालक स्त्रीको सौंप आप सवारम्भ तज दिगम्बर भया। स्वामी अनंतमतिका शिष्य भया। कैसे हैं अनंतमति ? जगतविणे प्रसिद्ध तपोनिधि गुण शीलके सागर यह कपिल मुनि गुरुकी आज्ञा प्रमाण महातप करता भया । सुन्दर चरित्रका भार थर परमार्थ विर्ष लीन है मन जाका, वैराग्य विभूतिकर अर साधुपदकी शोभाकर मंडित है शरीर जाका। सो जो विवेकी यह कपिलकी कथा पढ़े सुने ताहि अनेक उपनासनिका फल होय सूर्य समान ताकी प्रभा होय ॥ इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविषै देवानिकर नगर बसावना अर कपिल ब्राह्मणका वैराग्य वर्णन करनेवाला पैंतीसना पर्न पूर्ण भया ॥ ३५ ॥ अथानन्तर वर्षा ऋतु पूर्ण भई । कैसी है वर्षा ऋतु, श्याम घटाकरि महा अंधकाररूप जहां मेष जल असराल वरसे अब विजु रनिके चमत्कार कर भयानक वर्षाऋतु व्यतीत भई, शरद ऋतु प्रकट भई दशों दिशा उज्वल भई तब वह यक्षाधिपति श्रीरामम् कहता मया-कैसे हैं श्रीराम ? चलवेका है मन जिनका, यक्ष कहे है-हे देव, हमारी सेवामें चूक होय सो क्षमा करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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