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पप-पुराण कर्णको कही जो तुम कहोगे सो ही होयगा । सिंहोदरको छोडा अर वजकर्णका मर सिंहोदर का परस्पर हाथ पकडाया परम मित्र किए वजकर्णको आधा राज्य दिलवाया अर जो माल लूटा हुता सो हू दिवाया अर देश धन सेना आधा आथा विभाग कर दिया वजकर्णके प्रसादकरि विद्य दंग सेनापति भया अर बजूकण राम लक्ष्मणकी बहुत स्तुति करि अपनी आठ पुत्रिनिकी लक्ष्मण से सगाई करी । कैसी है वे कन्या ? महाविनयवन्ती सुन्दर भेष सुन्दर आभूषणको वरें अर राजा सिंहोदरको आदि देय राजाओं की परम कन्या तीन सौ लक्ष्मणको दई । सिंहोदर पर बजकर्ण लक्ष्मणते कहने भए-ये कन्या अाप अंगीकार करें, तब लक्ष्मण बोले-विवाह तो तब करूंगा जब अपने भुज कर राज्य स्थान जमाऊगा पर श्रीराम तिनसू कहते भये-जो हमारे अपतक देश नाहीं हैं तातने राज भरतको दिया है तातै चन्दनगिरीके समीप तथा दचिलके समुद्रके समीप स्थानक करेंगे ता अपनी दोनों माताओं को लेने को मैं 'पाऊंगा अथवा लक्ष्मण आवेगा। ता समय तुम्हारी पृत्रिनिको हू परणकर ले आवेगा, अब तक हमारे स्थानक नाहीं। कैसे पाणिग्रहण करें जब या भांति कही, तब वे सव राजकन्या ऐसी होय गई जैमा जाडे का मारा कमलोंका वन होय जाय, मनमें विचारती मई-वह दिन कब होयगा जब हमको प्रीतमके संगम रूप रसायन की प्राप्ति होयगी अर जो कदाचित प्राणनाथ का विरह भया तो हम प्रास त्याग करेंगी इन सबका मन विरहरूप अग्निकर जलता भया। यह विचारती भई एक मोर महा औंडा गतं अर एक ओर महाभयंकर सिंह, कहा करें ? कहां जावें ? विरहरूप व्याघ्र को पतिके संगम की अाशाते बशीभूत कर प्राणनिको राखेंगी, यह चितवन करती संती अपने पिताकी लार अपने स्थानक गई। सिंहोदर बजकर्ण आदि सप ही नरपति, रघुपतिकी आज्ञा लेय पर मए, ते राजकन्या उत्तम चेष्टाकी धरणहारी माता पितादि कुटुंबसे अत्यन्त है सन्मान जिनका, पर पतिमें है चित्त जिनका, सो नाना विनोद करती पिताके घरमें निष्ठनी भई भर विद्य दंगने अपने माता पिताको कुटुंबसहित विभूतितें बुलाया तिनके मिलापका परम उत्सव किया अर बजकर के अर सिंहोदरके परस्पर अतिप्रीति बढ़ी पर श्रीरामचन्द्र लक्ष्मण अर्धरात्रिको चैत्यालयते निकलकर चल दिये। सो धीरे २ अपनी इच्छा प्रमाण गमन करे हैं अर प्रभात समय जे लोक चैत्यालयमें आए सो श्रीरामको न देख शून्य हृदय होय अति पश्चाताप करते भए । इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविषे राम लदमण कुस
बनकर्णका उपकार वर्णन करनेवाला तैतीसवां पर्व पूर्ण भया ॥ ३३॥
अथानंतर राम लक्ष्मण जानकीको धीरे२ चलाक्ते पर रमणीक वनमें विश्राम लेते भर महामिष्ट स्वादुफलों का रसपान करते क्रीडा करते रसभरी बातें करते सुन्दर चेप्टाके धरणहारे, चले २ नलकूवर नामा नगर आए। कैसा है नगर ? नानाप्रकारके रतननिके जे मन्दिर तिनके उतंग शिखरोंकर मनोहर अर सुन्दर उपवनोंकर मंडित जिनमन्दरनिकरि शोमित स्वर्ग समान निरंतर उत्सवका भरा लक्ष्मीका निवास है सो श्रीराम लक्ष्मण पर सीता नलकूवर नामा नगरके परम
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