SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - andrewwwwwwwwww तेतीसर्वा पर्व २८५ अर बालक वृद्धनिपर करुणा ही करै हैं । तब आप दयाकर कहते भर.-तुम चिंता न करो, भागे भगवानका चैत्यालय है तहां याहि छोडेंगे। ऐसा कह आप चैन्यालयमें गए जायकर श्रीराम ते कहते भए-हे देव, यह सिंहोदर आया है, आप कहो सो करें। तब सिंहोदर हाथ जोड कांपता श्री रामके पायन पडा अर कहता भया-हे देव ! तुम महाक्रांतिके धारी परम तेजस्वी हो सुमेरु सारिखे अचल पुरुषोत्तम हो मैं आपका आज्ञाकारी; यह राज्य तिहारा, तुम चाहो जिसे देवो । मैं तिहारे चरणारविंदकी निरंतर सेवा करूगा अर रानी नमस्कारकर पतिकी भीख मांगती भई अर सीता सतीके पायन परी कहती भई-हे देवी! हे शोभने ! तुम स्त्रीनिकी शिरोमणि हो हमारी करुणा करो तब श्रीराम सिंहोदरकू कहते भए मानो मेघ नाजे। . अहो सिंहोदर ! तोहि जो बजकर्ण कहे सो कर या बातकरि तेरा जीतव्य है और बात कर नाही, या भांति सिंहोदरको रामकी आज्ञा मई। ताही समय जे बजकर्णके हितकारी हुते तिनको भेन वजूकर्ण को बुलाया सो परिवारसहित चैत्यालय आया, तीन प्रदक्षिणा देय, भगवानको नमस्कारकरि चन्द्रप्रभु स्वामीकी अत्यन्त स्तुतिकर रोमांच होय आए। बहुरि वह विनयवान दोनों भाइनिके पास माया स्तुति कर शरीरकी अारोग्यता पूछना भया अर सीताकी कुशल पूछी। तब श्रीराम अत्यन्त मधुर ध्वनि कर बजकर्ण कहते भए-हे भव्य ! तेरी कुशलकरि हमारे कुशल है। या भांति बजकर्ण की अर श्रीराम की वार्ता होय है सब ही सुन्दर भेष थरे बिधु दंग आया, श्रीराम लक्ष्मणकी स्तुतिकर बजकर्ण समीप बैठा। सर्वेसमावि विद्य दंग की प्रशंसा भई जो यह बजकर्णका परम मित्र है। बहुरि श्री मिचन्द्र प्रसन्न होय बजूर्णसू कहते भए तेरी श्रद्धा महा प्रशंसा योग्य है कुबुद्धिनिके उत्पातकरि तेरी बुद्धि रंच मात्र भी न डिगी जैसे पवनके समूहकरि सुमेरुकी चूलिका न डिगे । मोहूकू देख कर तेरा मस्तक न नया सो धन्य है तेरी सम्यक्त्वकी दृढ़ गो, जे शुद्ध तचके अनुभवी पुरुष हैं तिनकी यही रीति है जो जगतकर पूज्य जे जिनेंद्र तिनको प्रणाम करें बहुरि मातक कोनको नवावे ? मकरन्द रसका आस्वाद करणहारा जो भ्रमर सो गर्दभ (गधा) की पूंजपे कैसे गंजार करे ? तु वद्धिमान है धन्य है निकटभव्य है चन्द्रमा हूंते उज्ज्वल वलकी तेरी पृथिनी विस्तरी है या भांति बजकर्णके सांचे गुण श्रीरामचन्द्रने वर्णन कीए तब वह लज्जावान् होय नीचा मुख कर रहा, श्रीरघुनाथ कहता भया-हे नाथ ! मोपर यह आपदा तो बहुत पड़ी हुती परन्तु तुम सारिखे सज्जन जगतके हितु मेरे सहाई भए । मेरे भाग्य करि तुम पुरुषोत्तम पधारे या भांति बजकर ने कही तब लदभण बोले तेरी वांछा जो होय सो करें, तब बजकर्ण ने कही तुम सारिखे उपकारी पुरुष पायकर मोहि या जगत विष कछु दुर्लभ नहीं मेरी यही विनती है मैं जिनधर्मी हूं, मेरे तणमात्र को भी पांडा की अभिलाषा नाहीं अर यह सिंहोदर तो मेरा स्वामी है तातें याहि छोडो, ये वचन बजकर्ण ने कहे तब सबके मुखते थन्य धन्य यह ध्वनि होती भई जो देखो यह ऐसा उत्तम पुरुष हे द्वष प्राप्ति भए भी पराया भला ही चाहै है। जे सज्जन पुरुष हैं ते दुर्जन हू का उपकार करें अर जे आपका उपकार करें तिनका तो करें ही करें। लक्ष्मणने वज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy