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________________ पद-पुराण कुहनियोंसे पछाडे कैयक मुष्टि प्रहारकरे चूर्ण कर डारे कयकों के केश पकड पृथ्वीपर पाडि. मारे कैयकोंको परस्पर सिर भिडाय मारे, या भांति अकेले महाबली लक्ष्मणने अनेक योथा विध्वंस किये तब और बहुत सामंत हाथी घोडोंपर चढे वखतर पहिरे लक्ष्मणकी चौगिरद फिर नानाप्रकारके शस्त्रनिके धारक, तब लक्ष्मण जैसे सिंह स्यालनिको भगावै तैसे तिनको भगावता भया । तब सिंहोदर कारी घटा रामान हाथीपर चढकर अनेक सुभटनिसहित लक्ष्मणते लडनेको उद्यमी मया, अनेक योधा मेघ समान लक्ष्मण रूप चंद्रमाको वेढने भए सो सब योधा ऐसे भगाए जैसे पवन पाकके डोडोके जे फफूदे तिनको उडावे ता समय महायोधानिकी कामिनी परस्पर वार्ता कर हैं, देखो यह एक महासुभट अनेक योधानिकर बेढा है परन्तु यह सबको जीते है कोई याको जीतिवे समर्थ नाही, धन्य याके माता पिता इत्यादि अनेक वार्ता सुभटनिकी स्त्री करे हैं भर लक्ष्मण सिंहोदरको कटकसहित चढा देख गजा थम उपाडा कर कटकके सम्मुख गए जेसे अग्नि वनको भस्म करें तैसे कट के बहुत सुभट विध्वंस वि.ए पर जो दशांगनगरके योधा नगरके दरवाजे ऊपर बजणके समीप बैठे हुते सो फूल गए हैं नत्र जिनके, स्वामीसे कहते भए-हे नाथ ! देखो यह एक पुरुष सिहोदरके कलकते लडे है, ध्वजा रथ छत्र भग्न कर डारे परम ज्योतिका धारी है, खड्ग समान है कांति जाकी, समस्त कटकको ब्याकुलतारूप भ्रमरमें डारा है, सब तरफ सेना भागी जाय हैं जैसे सिंहते मृगनिके समूह भागें अर भागते हए सुभट परस्पर बतलावें हैं कि वक्तर उतार धरो, हाथी छोडो, घोडे, गदा साडेमें डार देवो, ऊचे शब्द न करो, ऊचा शब्द सुनकर शस्त्रके धारक देख यह भयानक पुरुष आय मारेगा। अरे भाई ! यहांते हाथी लेजावो कहां थम राखा है, गैल देऊ । अरे दुष्ट सारथी ! काहे रथको थाम राखा है। अरे घोडे आगे करी यह आया यह आया या भांतिके वचनालाप करते महावष्टको प्राप्त भए सुभट संग्राम तज आगे भागे जाय रहे हैं। नपुंसक समान हो गए । यह युद्धमें क्रीडाका करणहारा कोई देव है तथा विद्याधर है काल है अक वायु है यह महाप्रचण्ड सब सेनाको जीतकर सिंहोदरको हार्थासे उतार गलेमें वस्त्र डार यांध लिए जाय है जैसे बलदको पांव थनी अपने घर ले जाय यह वचन बजकर्णके योधा बजकर्णसे व हते भए तब वह कहता भया-हे सुभट हो! बहुत चिंताकर कहा ? धमके प्रसादते सब शांत होयगा अर दशंग नगरकी स्त्री महलनिके ऊपर बैठी परस्पर वार्ता करे हैं -रे सखी ! देखो या सुभटकी अद्भ सचेष्टा, जो एक पुरुष अकेला नरेंद्रको बांधे लिये जाय है । अहो धन्य याका रूप ! धन्य याकी कांति, थन्य याकी शक्ति, यह कोई अतिशयका धारी रुषोत्तम है। धन्य हैं वे स्त्री, जिनका तह जगदीश्वर पति हुआ है तथा होयगा अर सिंहोदरकी पटराणी बाल तथा वृद्धनिसहिन रोवती संती लक्ष्मणके पांवनि पडी अर कहती भई-हे देव ! याहि छोड देवो हमें भरतारकी भीख देयो । अब तिहारी आज्ञा होयगा सो यह करेगा, तालमण कहते भरे यह आगे बडा वृक्ष है ता बांध याहि लटकाऊंगा तब वाकी राणी हाथ जोड बहुत विनती करती भई-हे प्रभो! आप रोस भए हो तो हमें मारो, याहि छांडो कृपा करो, प्रीतमका दुख हमें मत दिखावो, जे तुम सारिखे पुरुषोत्तम हैं वे स्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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