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चौतीसवां पर्व सुन्दर वनमें आय तिष्ठे, कैसा है वह वन ? फल पुप्पनिकरि शोभित जहां भ्रमर गंजार कर हैं। पर कोयल बोले हैं। सो निकट सरोवरी तहां लक्ष्मण जलके निमित्त गए, सो ताही सरोवरी पर क्रीडाके निमित्त कल्याणमाला नाम राजपुत्री राजकुमारका भेष किए आई हुती, कैसा है राजकुमार ? महारूपवान नेत्रनिको हरणहारा सर्वे को प्रिय महाविनयवान कांतिरूप निझरनिका पर्वत श्रेष्ठ हाथीपर चदा सुन्दर प्यादे लार जो नगरका राज्य करे सो सरोवरीके तीर लक्ष्मण को देख मोहित भया । कैसा है लक्ष्मण ? नील कमल समान श्याम सुन्दर लक्षणनिका धरणहारा सो राजकुमारने एक मनुष्यको आज्ञा करी जो इनको ले आवो, सो वह मनुष्य जायकर हाथजोड नमस्कार कर कहता भया--हे धीर ! यह राजपुत्र आपत मिला चाहै है सो पधारिए, सब लक्ष्मण राजकुमार के समीप गए। सो हाथीते उतरकर कमल तुल्य जे अपने कर तिनकर लक्ष्मणका हाथ पकड़ वस्त्रनिके डेरेमें ले गगा, एक आसनपर दोऊ बैठे। राजकुमार पूछा भया आप कौन हो, कहांते आए हो ? तब लक्ष्मण कही मेरे बड़े भाई मेरे बिना एक क्षण न रहें सो उनके निमित्त अन्न पान सामग्री कर उनकी आज्ञा लेय तुमपर आऊंगा तब सब बात कहूंगा यह बात सुन राजकुमार कही जो रसोई यहां ही तैयार भई है सो यहां ही तुम अर वे भोजन करो। तब लक्ष्मणकी आज्ञा पाय सुन्दर मात दाल नानाविधि व्यंजन नवीन घृत कपूरादि सुगंध द्रव्यनिसहित दधि दुग्ध पर नानाप्रकार पीने की वस्तु मिश्रीके स्वाद जामें, असे लाड़ अर पूरी सांकली इत्यादि नानाप्रकार भोजन की सामग्री पर वस्त्र प्राभूषण माल' इत्यादि अनेक सुगंध नाना प्रकार तैयार किए पर अपने निकटवर्ती जो द्वारपाल नाहि भेजा मो जायकर सीता सहित रामको प्रणामकर कहता भया-हे देव ! या वस्त्र भवनकेविषै तिहारा भाई तिष्ठै अर या नगर के नाथने बहुत आदरते चीनती करी है। वहां छाया शीतल है अर स्थान मनोहर सो पाप कृपाकर पधारें तो मार्गका खेद निवृत्त होवे तब आप सीतासहिन पधारे जैसे चांदनीसहित चांद उद्योत करे, कैसे हैं आप ? माते हाथी समान है चाल जिनकी, लक्ष्मण सहित नगरका राजा दूर होते देख उठकर सामने आया। सीतासहित राम सिंहासनपर विराजे,. राजाने ओरती
आरकर अर्घ दिये, अतिसन्मान किया, आप प्रसन्न होय स्नानकर भोजन किया सुगन्ध लगाई।
बहुरि राजा सवको विदा किए । ए चारही रहे एक राजा तीन ए । राजा सबको कहा जो मेरे पिताके पासते इनके हाथ समाचार आए हैं सो एकांतकी वार्ता है कोई आवने न पावै जो प्रावेगा ताहि मैं मारूंगा। बडे २ सामंत द्वारे राख एकांतमें इनके आगे लज्जा तज कन्या जो राजाका भेष धरे हुती सो अपना स्त्रीपदका रूप प्रकट दिखाया। कैसी है कन्या ? लज्जाकर नम्री भूत है मुख जाका अर रूपकर मानों स्वर्गकी देवांगना है अथवा नागकुमारी है, ताकी कांतिकार समस्त मंदिर प्रकाश रूप होय गया, मानों चन्द्रमाका उदय भया,चन्द्रमा किरणोंते मंडित है याका मुख लज्जा पर मुलकनकर मंडित है मानोंयह राजकन्या साक्षात् लक्ष्मी ही है, कमलिनिके बनते माय तिष्ठी है अपनी लावण्यतारूप सागरविणे मानों मंदिरको गर्क किया, जाकी घुति आगे रन
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