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तेती सणा पी
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वर्षाकाल में विजुरी चमत्कार समय मेरा जन्म भया, तातैं मेरा विद्युदंग नाम धरा सो मैं अनुक्रमसे नव यौवनको प्राप्त भया । व्यापारके अर्थ उज्जे गया तहां कामलता वेश्याको देख अनुरागकर व्याकुल भया । एक रात्रि तायूं संगम किया, सो वाने प्रीतिके बंधन कर बांध लिया जैसे पारधी मृग को पांसिसे बांधे, मेरे बापने बहुत वर्षोंमें जो धन उपार्जा हुता सो मैं ऐसा कुपूत वेश्याके संग कर पटमासमें सब खोया जैसे कमल में भ्रमर आयुक्त होग तैस तामें श्रासक्त भया, एक दिन वह नगरनायिका अपनी सखीके समीप अपने कुण्डलनिकी निंदा करती हुती सो मैं सुनी तब तासे पूछी, ताने कही धन्य है राणी श्रीवरा महामौभाग्यवती ताके कानन में ऐसे कुण्डल हैं जैसे काके नाहीं, तब मैंने मनमें चितई कि यदि मैं राणीके कुंडल हर कर याकी आशा पूर्ण न करू तो मेरे जीने कर कहा ? तब कुण्डल हानेको मैं अंधेरी रात्रि में राजमंदिर में गया जो राजा सिंहोदर कोप हो रहा था श्रर राणी श्रीधरा निकट बैठी हुनी सो राणीने पूछी हे देव ! आज निद्रा का ते न अवै हैं ? तब राजा कही हे राणी मैं बज्रकर्ण को छोटेसे मोटा किया, घर मोहि सिर न नवावै सो वाहि जब तक न मारू' तबतक आकुलता के योगसे निद्रा कहां आवै एते मनुष्यनि निद्रा दूर ही भागे 'अपमान से दग्ध अर कुटुंबी निर्धन, शत्रुने आय दवाया और जीतने समर्थ नाहीं और जाके चित्तमें शल्य तथा कायर घर संसारते विरक्त' इन्तैं निद्रा दूर रहे यह बार्ता राजा पर राणी करी में सुनकर ऐसा हो गया मानों काहूने मेरे हृदय में वज्रकी दीनी । सो कुंडल लेबेकी बुद्धि तज यह रहस्य लेय तेरे निकट आया अब तू वहां मत जाइयो कैसा है। तू जिनधर्म में उद्यमी है पर निरंतर साधु का सेवक है । अंजनगिरि पर्वतसे हाथी मद भरे तिन पर चढे योधा वक्तर पहिरे र महा तेजस्वी तुरंगनिके असवार चिलते पहिरे महाक्रूर सामन्त तेरे मारवेके अर्थ राजाकी आज्ञा ते मार्ग रोके खडे हैं तातैं तू कृपाकर अब वहां मत जाय । मैं तेरे पायन पर हूं। मेरा वचन मान, अर तेरे मन में प्रतीति नाहीं तो अब देख वह फौज आई घूरके पटल उठे हैं महा शब्द होते आये हैं यह विद्युदंगके वचन सुन वज्रक परचक्रको आवते देख याको परममित्र जान लार लेय अपने गढ़विषे तिष्ठा । सिंहदर के सुभट दरवाजे में आावने न दिये तत्र सिंहोदर सव सेना लार ले चढ याया सो गढ गाढा जान अपने कटकके लोक इनके मारवेके डरसे तत्काल गढ लेने की बुद्धि न करी, गढके समीप डेरे कर वज्र के समीप दूत भेजा सो अत्यन्त कठोर वचन कहता भया । तू जिनशासन के गर्वकरि मेरे ऐश्वर्यका कंटक भया, जे घरखोवा यति तिने तोहि बहकाया, तू न्यायरहित भया, देश मेरा दिया खाय, माथा अरहंतकी नवावे, तू मायाचारी है तातें शीघ्र ही मेरे समीप आयकर मोहि प्रणाम कर, नातर मारा जायगा यह वार्ता दूतने वर्ण से कही तब वज्रकर्ण जो जवाब दिया सो दूत जाय सिंहदरम् कहे है है नाथ ! वज्रककी यह वीनती है जो देश मोहि स्त्रीसहित धर्म द्वार देयं काढ देवो, मेरा कि जिनेंद्र मुनि र जिनवाणी इन बिना औरको नमस्कार न करू,
नगर भण्डर हाथी घोडे तुमसे उजर नाहीं परंतु
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सब तिहारे हैं सो लेहु मैं यह प्रतिज्ञा करी है सो मेरा प्राण जाय तो
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