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________________ पग-पुरणि भी प्रतिज्ञा भंग न करूं तुम मेरे द्रव्य स्वामी हो, आत्माके स्वामी नाहीं, यह वार्ता सुन सिंहोदर अति क्रोधको प्राप्त भया, नगरको चारों तरफ घेरा अर देश उजाड दिया, दलिद्री मनुष्य श्रीरामसे कहे. है-हे देव! देश उजाडनेका कारण मैं तुमसे कहा। अब में जाऊ हूँ जहांते नजदीक मेरा ग्राम है । ग्राम सिंहोरके सेवकोंने जलाया, लोगनिके विमानतुल्य घर हुते सो भस्म भए । मेरी तृण काष्ठकर रची कुटी सो भी भस्म भई, मेरे घरमें एक छज एक माटीका घट एक हांडी परिग्रह हुता सो लाऊ हूँ। मेरे खोटी स्त्री ताने क्रूर वचन कह मोहि भेजा है अर वह बारंबार ऐसे कहे है कि सूने गांवमें घरोंके उपकरण बहुत मिलेंगे सो जाकर ले आवहु सो मैं जाऊ हूँ मेरे बडे भाग्य जो आपका दर्शन भया, स्त्रीने मेरा उपकार किया जो मौहि पठाया । यह वचन सुन श्रीराम महादयावान पंथीको दुखी देख अमोलक रत्नोंका हर दिया सोपंथी प्रसन्न होय चरणारविदको नमस्कार कर हार ले अपने घर गया, द्रव्यकर राजानिके तुल्य भया । __अथानन्तर श्रीराम लक्ष्मण से कहते भए कि हे भाई ! यह जेष्ठका सूर्य अत्यंत दुस्सह जब अधिक न चढे ताते पहिले ही चलो या नगरीके समीप निवास करें। सीता तुषाकर पीडित है सो याहि जल पिलायें अर आहारकी विधि भी शीघ्र ही करें, ऐसा कहकर वहांते प्रागे गमन किया, सो दशांगन रके समीप जहां श्रीचन्द्रप्रभुका चैत्यालय मा उत्तम है तहां श्राए अर श्रीभगवानको प्रणाम के र सुखमा तिष्ठे अर आहारकी सामिग्री निमित्त लक्ष्मण गए सिंहोदरके कटक में प्रवेश करते भए । कटक्के रक्षक मनुष्य उनने मने किये तब लक्षमणने विचारी कि ये दरिद्री अर नीच कुल इनतें मैं कहा विवाद करू, यह विचार नगरकी ओर आए सो नगरके दरवाजे अनेक योधा बैठे हुते अर दरबाजेके ऊपर बज्रकर्ण तिष्ठा हुता महासावधान सो लक्षमणको देख लोग कहते भए, तुम कौन हो अर कहां कौन अर्थ आए हो ? सब लक्ष्मण कही दूग्ते आए हैं और आहार निमित्त नगर में आए हैं तब बज्रर्ण इनको अतिसुन्दर देख आश्चर्यको प्राप्त भया अर कहता भया-हे नरं त्ता! माहि प्रवेश करो, तब यह हर्षित होय गढमें गया, वज्रण बहुत आदरसू मिला अर कहता भया जो भोजन तय्यार है सो कपाकर यहां ही भोजन परो तव लसान कही बेरे गुरु जन पड़े भाई और भवज श्रीनन्द्रप्रभुके चैत्यालयमें बैठे हैं तिनको पहिले भोजन कराय मैं भोजन करूगा तब पञकर्णने कही बहुत भलीवात, तहाँ ले जाइये, उन योग्य सब सामिग्री है सो ले जानो, अाने सेवकनि हाथ ताने भांति भांतिकी सामिग्री पठाई सो लक्ष्मण लिवाय लाए। श्रीराम लक्ष्मण और सीता भोजन कर बहुत प्रसन्न भए । श्रीरान कहते भए-हे लक्षमण ! देखी बजकर्णकी बडाई जो ऐसा भो. जन कोई अपने जमाईकोहू न जिनावे सो विना परखे अपने ताई जिमाए, पीनेकी वस्तु महा मनोहर अर व्यंजन महामिष्ट यह अमृत तुल्य भोजन जाकर मार्गका खेद मिटा अर जेठके आतापकी तप्त मिटी, चांदन समान उज्वल दुग्ध महा सुगंत्र जपर भ्रमर गुंजार करें पर संदर घृत सुन्दर दधि मानों कामधेनु के स्तनानितै उपजाया दुग्ध तासे निरमाया है ऐसे भोजन ऐसे रस और ठौर दुर्लभ हैं। ता पीने पहिले अपने ताई' कहा हूता जो यह अणुव्रतका धारी श्रावक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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