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________________ तृतीय पर्व राजा श्रेणिकका प्रश्न सुन श्रीगणथरदेव अपने दांतों की किरणसे जगतको उज्ज्वल करने गम्भीर मेघ की ध्वनि समान भगवान्की दिव्य ध्वनि के अनुसार व्याख्यान करते भए, हे राजा तू सुन, मैं जिन आज्ञा प्रमाण कहूं हूं, जिन वचन ववके कथनमें तत्पर हैं, तू यह निश्चय कर कि रावष राइस नाहीं, मनुष्य है, मांस का अाहारी नहीं, विद्याधरोंका अधिपति है;राजा विनमि के वंशमें उपजा है, लार सुग्रीवादिक बन्दर नहीं, यह बड़े राना मनुष्य हैं, विद्याधर हैं। जैसे नीव विना मंदिर का विना न होय तैसे जिन वचन रूपी मूल विना कथाको प्रमाणता नहीं होय है इसलिए प्रथम ही क्षेत्र कालादिक का वर्णन सुन अर फिर मा पुरुषोंका चरित्र जो पापका विनाशन हारा है सो सुन । ___ लोकालोक, कालचक्र, कुलकर नाभि राजा, और ऋषभदेव और भरतका वर्णन । गौतम स्वामी कहे हैं कि राजा श्रेणिक ! अनन्त प्रदेशी जो अलोकाकाश उसके मध्य सीन वात वलयसे वेष्टित तीनलोक तिष्ठे हैं । तीनलोकके मध्य यह लोक है इसमें असंख्यातद्वीप और समुद्र हैं तिनके बीच लवण समुद्र कर बेढ़ा लक्ष योजन प्रमाण यह जम्बद्रीप है, उसके मध्य सुमेरु पर्वत है वह मूलमें बज्रमणिमयी है अर ऊपर समस्त सुवर्णमयी है अनेक रत्नों से संयुक्त है संध्यासमय रक्तताको धरे है, मेघों के समूह के समान स्वर्गपर्यंत ऊंचा शिखर है। शिखर के और सौधर्म स्वर्गके बीच में एक वालका का अन्तर है । सुमेरु पर्वत निन्यानवे हजार योजन ऊचा है और एक हजार योजन स्कन्द है । अर पृथ्वीविपै तो दश हजार योजन चौड़ा है और शिखर पर एक हजार योजन चौड़ा है मानो मध्य नोक के नापने का दण्ड ही है। जम्बृद्वीपमें एक देवकुरु एक उत्तरकुरु है अर भरत आदि सप्त क्षेत्र हैं पट कु नाच-नोंसे जिनका विभाग है। जम्बू पर शालमली यह दोय वृक्ष हैं जम्बूद्वीपमें चौंतीस विजया पर्वत हैं। एक एक विजयाधर्म एकसारा विद्यायोंकी नगरी हैं एक एक नगरीको कोटि २ ग्राम लगे हैं, अर जम्बूदीप में बत्तीस विदेह एक भरत एक ऐरावत यह चौतीस क्षेत्र हैं एक एक क्षेत्रमें एक एक राजधानी है, अर जम्बूदीपमें गंगा आदिक १४ महानदी हैं अर छह भोगभूमि हैं । एक एक विजयार्धपर्वतमें दोय दोय गुफा हैं सो चौतीस विजियार्धके अडसठ गुफा हैं। षटकुलाचलोंमें अर विजया पर्वतोंमें तथा बक्षार पर्वतोंमें सर्वत्र भगवानके अकृत्रिम चैत्यालय हैं अर जम्बूवृक्ष अर शाल्मली पक्षमें भगवान के अकृत्रिम चैत्यालय हैं जो रत्नोंकी ज्योतिसे शोभायमान हैं । जम्बूद्वीपकी दक्षिण दिशाकी और राक्षसद्वीप है और ऐरावत क्षेत्रकी उत्तर दिशामें गन्धर्व नामा द्वीप है पर पूर्व विदेहकी पूर्व दिशामें वरुण द्वीप है अर पश्चिम विदेहकी पश्चिम दिशामें किन्नर द्वीप है वे चारोंही द्वीप जिन मन्दिरोंसे मण्डित हैं । जैसे एक मासमें शुक्लपक्ष पर कृष्णपक्ष यह दो पक्ष होते हैं तैसेही एक कल्पमें अवसर्पणी अर उत्सर्पणी दोनो काल प्रवृत्ते हैं, अवयर्पणी कालमें प्रथम ही सुखमा सुखमा कालकी प्रवृत्ति होय है, फिर दूसरा सुखमा, तीसरा सुखमा दुखमा, चौथा दुखमासुखमा, पांचवां दुखमा अर छठा दुखमदुखमा प्रतॆ है, तिसके पीछे उत्सर्पणी काल प्रवृते है उसकी श्रादिमें प्रथम ही छठा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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