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________________ पद्मपुराण मनुष्य विद्याधर कैसे लाकर बंदीमें डारे, मृगसे सिंहको कैसे बाधा होय ? तिलसे शिलाको पीसना अर गिडोएसे सांपका मारना पर श्वानसे गजेंद्रका हनना कैसे होय, अर लोक कहे हैं कि श्रीरामचन्द्र मृगादिककी हिंसाकरते थे सो यह बात न बने, वे ब्रती विवेकी दयावान् महापुरुष कैसे जीवोंकी हिंसा करें और कैसे अभयका भक्षण करें, और सुग्रीवका बड़ा भाई बालीको कहे हैं कि उसने सुग्रीवकी स्त्री अङ्गीकार करी सो बड़ा भाई जो बाप के समान है कैसे छोटे भाई की स्त्री अङ्गीकार करें, सो यह सर्व बात सम्भवे नाहीं इसलिये गणधर देवको पूछकर श्रीरामचंद्र की यथार्थ कथा श्रवण धारण करू', ऐसा विचार श्रेणिक महाराजने किया बहुरि मनमें विचारे हैं कि नित्य गुरुनिके दर्शन किये धम्मके प्रश्न किये तस निश्चय किए परम सुख होय है । ये आनन्द के कारण हैं ऐसा विचार कर राजा सेजसे उठे अर रानी अपने स्थान गई, कैसी है रानी जिस की कांति लक्ष्मी समान है, महा पतिव्रता र पतिकी बहुत विनयवान है और कैसा हैं राजा जिसका चित्त अत्यन्त धर्मानुरागमें निष्कम्प है। दोनों प्रभाव क्रिया का साधन करते भये अर जैसे सूर्य शरद के वादलोंसे बाहिर यावे तैसे राजा सुफेद कमल समान उज्ज्वल सुगन्ध महल से बाहिर आवते भए, उस सुगन्ध महलमें भंवर गुंजार करे हैं । इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराणको भाषाटीकाविषै श्रेणिकने रामचन्द्र रावणके चरित्र सुनने के अर्थ प्रश्न करने का विचार कीया ऐसा द्वितीय अधिकार संपूर्ण भया ॥ २ ॥ तृतीय पर्व आगे राजा सभा में या सर्व आभरण सहित सिंहासन विराजे ताकी शोभा कहिए हैं, हे भव्य ! एकाग्र चित्त करि सुणि । राजा सभा में आकर विराजे अर प्रभात समय जो बड़े बड़े सामन्त आए उनको द्वारपालने राजा का दर्शन कराया, सामंतोंके वस्त्र आभूषण सुन्दर हैं उन समेत राजा हाथी पर चढ कर नगर से समोशरणको चले । आगे बन्दीजन विरद वखानते जाय हैं, राजा समोशरण के पास पहुंचे। कैसा है समोशरण जहां अनंत महिमाके निवास महावीर स्वामी बिराजे हैं, उनके समीप गौतम गणधर निष्ठे है तच्चोंके व्याख्यान में तत्पर अर कांति में चन्द्रमाके तुल्य, प्रकाश में सूर्य के समान, जिनके कर वा चरण वा नेत्ररूपी कमल अशोक वृक्षक पल्लव ( पत्र ) समान लाल हैं पर अपनी शांतता से जगत् को शांति करे हैं, मुनियोंक समूहके स्वामी हैं । राजा दूरसे ही समोशरणको देख करि हाथीसे उतर कर समोशरण में गए, हर्ष फूल रहे हैं मुख कमल जिनके सो भगवान की तीन प्रदक्षिणा दे हाथ जोड नमस्कार कर मनुष्यों की सभा में बैठे ॥ प्रथम ही राजा श्रेणिकने श्रीगणधरदेव को 'नमोस्तु' कहकर समाधान (कुशल) पूछ प्रश्न किया । भगवन् ! मैं रामचरित्र सुनने की इच्छा करू हूं यह कथा जगत में लोगों ने और भांति त्ररूपी है इसलिए हे प्रभो ! कृपाकर संदेहरूप कीचडसे जीवनिको काढो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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