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________________ द्वितीय पर्व समूह कमलोंमें विश्राम करते भये अर जेसे भगवानके वचनोंकर तीन लोकके प्राणो धर्मका साधनकर शोभायमान होय हैं तैपे मनोज्ञ तारोंके ममूहसे आकाश शोभायमान भया अर जैसे जिनेन्द्र के उपदेशसे एकांतवादियों का संशय विलाय जाय तैसे चन्द्रमाकी किरणोंसे अन्धकार बिलाय गया। लोगोंके नेत्रोंको श्रानन्दका करनहारा चन्द्रमा उद्योत समय कम्पायमान भया । मानो अन्धकारपर अत्यन्त कोप भया (भावार्थ) क्रोध समय प्राणी कम्पायमान होय हैं। अन्धकारकर जे लोक खेदको प्राप्त भए थे वे चन्द्रमाके उद्योतकर हर्षको प्राप्त भए अर चन्द्रमाकी किरणको स्पर्शकर कुमुद प्रफुल्लिा भए । इन भांति रात्रि का समय लोकोंको विश्रामका देनहारा प्रगट भया। राजा श्रेणिकको सन्ध्यासमय सामाधिकपाठ करते जिनेन्द्रकी कथा करते करते धनी रात्रि गई, सोनेको उद्यमी भया कैसा है रात्रिका समय, जिसमें स्त्री पुरुषों के हितकी वृद्धि होय है राजाके शयनका महल गंगाके पुलिन (किनारों) समान उज्ज्वल है अर रत्नोंकी ज्योति से अति उद्योत रूप है अर फूलोंकी सुगन्धी जहां झरोखोंके द्वारा आये है अर महलके समीप सुन्दर स्त्री मनोहर गीत गाय रही हैं अर महल के चौगिरद सावधान सामंतोंकी चौकी है पर अति शोभा बन रही है सेजपर अति कोमल विछौने विछ रहे हैं वह राजा भगवानके पवित्र चरण अपने मस्तकपर धारे है अर स्वप्नमें भी बारम्बार भगवान हीका दर्शन करे है पर स्वप्न में गणधर देवसे भी प्रश्न करे है इस भांति सुखसे रात्रि पूर्ण भई पीछे मेघकी ध्वनि समान प्रभातके वादित्र बाजते भए । उनके नादसे राजा निद्रासे रहित भया। प्रभात समय देह क्रिया करि राजा श्रेणिक अपने मनमें विचार करता भया कि भगवान की दिव्य ध्वनिमें तीथंकर चक्रवर्त्यादिके जो चरित्र कहे गये वह मैंने सावधान होकर सुने ! अव श्रीरामचन्द्रके चरित्र सुनने में मेरी अभिलाषा है। लौकिक ग्रन्थों में रावणादिको मांसभक्षी राक्षस कहा गया है परन्तु वे विद्याधर महाकुलवंत कैसे मद्य मांस रुपरादिका भक्षण करें । अर रावणके भाई कुम्भकरणको कहे हैं कि वह छ महीनेकी निद्रा लेता था अर उसके ऊपर हाथी फेरते अर ताते तेलसे कान पूरत तो भी छह महीनासे पहले नहीं जानता अर जब जागता तब ऐसी भूख प्यास लगती कि अनेक हस्ती महिषी (भैसा) आदि तियंच, अर मनुष्योंका भक्षण कर जाता था अर राधि रुधिरका पान करता तो भी तृप्ति नहीं होती थी अर सुग्रीव हनूमानादिकको वानर कहे हैं परन्तु वे तो बड़े राजा विद्याधर थे। बड़े पुरुषों को विपरीत कहने में पापं का बन्ध होय है से अग्नि के संयोग जैसे शीतलता न होय अर तुषार (बर्फ) के संयोग से उष्णता (गरमी) न होय । जलके मंथनसे पीकी प्राप्ति न होय अर बालूरेतके पेलनेसे तेलकी प्राप्ति न होय तैसे महापुरुषोंके चरित्र विरुद्ध सुननेसे पुण्य न होय अर लोक ऐसा कहे हैं कि देवों के स्वामी इन्द्रको रावणने जीता परन्तु यह बात न बने, कहां वह देवोंका इन्द्र अर कहां यह मनुष्य जो इन्द्र के कोप मात्रसे ही भस्म हो जाय, जाके ऐरावत हस्ती, वज्रपा आयुध, जिसकी ऐसी सामर्थ कि सर्व पृथ्वोको वश कर ले, सो ऐसे स्वर्गके स्वामी यह अन्प शक्तिका धनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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